देश में देखा जाये तो जनता की गरीबी और सत्ता की रईसी के चर्चे राम मनोहर लोहिया ने नेहरु दौर में उठाये थे। उस वक़्त बहस 3 आना बनाम 15 आना, मतलब देश की जनता जब 4 आने में जिंदगी बसर करने को मजबूर थी तब नेहरू जी 25000 अपने खर्च में उड़ा देते थे। उस वक़्त लोहिया का कहना था कि जो व्यक्ति 25000 रुपये रईसी में उड़ा देता वह गरीबों के बारे भला क्या सोंचेगा। ऐसे में सवाल यह है कि वर्तमान सत्ता में गरीबी रेखा के नीचे के लोग महज 28 से 35 रूपए में जिन्दगी बसर कर रहे है। तो दूसरी तरफ उस वक़्त के कसौटी पर मौजूदा प्रधानमंत्री के रईसी को उन्हीं के आंकड़ों के अक्स में देखें तो पता चलता है कि नेहरु का वक़्त तो वाकई बहुत पीछे छुट गया।
याद कीजिये मोदी जी 2014 में कहते थे कि उनको 60 बरस दिए हमें 60 महीने दे दीजिये, दे भी दिए गए। लेकिन इन 60 महीनों के दौर के आंकड़े बताते हैं कि मोदी जी ने कुल 22 महीने 6 दिन -लगभग 565 दिन यानि 18 महीने 23 दिन विदेश यात्रा में और 105 दिन यानि 3 महीने 11 दिन गैर सरकारी यात्राओं पर रहे। हर यात्रा पर औसतन खर्च 22 करोड़ के हिसाब से कुल 20 अरब 12 करोड़ खर्च किये। यह किसका पैसा था? क्या साहब नहीं जाते कि यह उनका पैसा उनका नहीं बल्कि देश की जनता के खून-पसीने की कमाई थी।
एक आरटीई जवाब के अनुसार मोदी जी ने सभी योजनाओं के प्रचार को छोड़ कर केवल निजी प्रचार-प्रसार में प्रिंट मीडिया, न्यूज़ चैनल व आउट डोर प्रचार जैसे होर्डिंग पर कुल 43 अरब 43 करोड़ 26 लाख 15 मई 2018 तक खर्च किये। जबकि देश के प्रसार भारती सरीखे समांतर प्रचार तंत्र (जिसमे कमोवेश सरकार ही के गुणगान होते हैं) के तमाम DD चैनल ग्रुप पर 44 अरब 9 करोड़ का खर्च किये, आल इण्डिया रेडिओं सरीखे माध्यमों पर 28 अरब 20 करोड़ 56 लाख साथ ही डीएवीपी व डीएफपी पर 140 करोड़ उड़ा दिए। इतना ही नहीं मोदी जी के प्रचार के लिए दो ऑटो प्रचार माध्यम भी नमो चैनल (नमो का अर्थ ही मोदी है) व कंटेंट चैनल भी भरी खर्च कर अस्तित्व में लाये गए।
बहरहाल, आज की मेनस्ट्रीम मीडिया केन्द्र सरकार और संघ-बीजेपी के दिये आँकड़ों को जस का तस वेद वाक्य की तरह ऐसे ही नहीं फैलाती रहती है। आज मेन स्ट्रीम मीडिया के लिए सरकार का बोला हुआ हर वाक्य वेद वाक्य हो गया है। इन परिस्थितियों के बीच अगर नेहरु को खर्च के हर मायने में पीछे छोड़ने वाली मोदी जी अगर अपने विकास न कर पाने के ठीकरे को लेकर नेहरु को दोष देते रहते हैं तो इस सरकार के दिवालियेपन को आसानी से समझा जा सकता है।