प्रधानमन्त्री आवास योजना की आड़ में सरकार ने ग़रीब बस्तियों पर ढाए क़हर

प्रधानमन्त्री आवास योजना के तहत भी सरकार झुग्गीवालों को पक्के मकान न दे पायी

मोदी सरकार के विकास और “अच्छे दिनों” की सच्चाई आज हम सबके सामने है। न तो मोदी सरकार बेरोज़गारों को रोज़गार दे पायी, न ही आम आबादी को महँगाई से निज़ात दिला पायी और न ही झुग्गीवालों को पक्के मकान ही दे पायी। मोदी सरकार ने 2014 में चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में कुछ काली (स्याही) झुग्गी की जगह पक्के मकान देने का वायदा के तौर पर खर्च किया था, लेकिन इसके उलट सत्ता में आने के बाद से झारखंड समेत देश भर में अपने चहेते पूँजीपतियो को ज़मीन मुहैया कराने के हवास में देश के गरीब आवाम आबादी के घरों को बेदर्दी से उजाड़ा दिया।

आवास एवं भूमि अधिकार नेटवर्क (हाउसिंग एण्ड लैण्ड राइट्स नेटवर्क) की फ़रवरी 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में अकेले 2017 में ही राज्य एवं केन्द्र सरकारों द्वारा 53,700 झुग्गियों को ज़मींदोज़ किया गया जिसके चलते 2.6 लाख से ज़्यादा लोग बेघर हो गये। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में हर घण्टे 6 घरों को तबाह किया गया। ख़ुद आवास एवं भूमि अधिकार नेटवर्क की रिपोर्ट यह कहती है कि ये आँकड़े सिर्फ़ उन घटनाओं से हासिल हो पाये हैं जो शोध में उनके सामने आयी। न जाने कितनी घटनाएँ दर्ज ही नहीं हुई। इस समस्या को लेकर मोदी सरकार किस क़दर उदासीन है कि झुग्गियों को ज़मींदोज़ करने से पहले और न ही बाद में इन झुग्गीवालों के पुनर्स्थापन के लिए कोई क़दम नहीं उठायी।

यह सब तब अंजाम दिया जा रहा है, जब मोदी सरकार 2022 तक प्रधानमन्त्री आवास योजना के तहत सबको घर देने की डींग हाक रही है। लोगों को पक्के मकान देना तो दूर की बात है, सरकार ने उनकी मेहनत की पाई-पाई से जोड़कर खड़ी की गयी झुग्गियों को अतिक्रमण हटाने व सौन्दर्यीकरण के नाम पर जायज़ ठहराते हुए तोड़ दिए। इन घटनाओं बीच सवाल यह है कि शहर आख़िर बनता किससे है? साहेब ने 2014 चुनाव से पहले जिन झुग्गीवालों की बस्तियों में जाकर वोट मांगे, जीतने के बाद वही झुग्गियाँ उन्हें शहर की गन्दगी प्रतीत होने लगी। अतिक्रमण के नाम पर 40 से 50 साल से एक झुग्गी-बस्ती में रह रहे लोग, जिनके पास वहाँ के वोटर कार्ड से लेकर बिजली का बिल सब है, को कितनी आसानी से रातो-रात खदेड़ दिया गया

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