सरकार द्वारा फेंकी गयी योजनाओं के आंकड़ों के पीछे की हकीकत

मोदी सरकार के आंकड़ों की सचाई  

सरकार ने जानबूझकर आंकड़ों के पैमाने व उन्हें जुटाने के तरीके ऐसे बनाये जिसके प्रसारण के बाद भी आंकड़े को लेकर आमजनों में भ्रम बरकरार रहे। इसे कुछ यूँ समझते है – एक तरफ तो साहेब की सरकार ने बेरोज़गारी के तमाम आँकड़ों को दबाने का प्रयास करते हुए लेबर ब्यूरो के रोज़गार सर्वेक्षण पर रोक लगा दी। फिर राष्ट्रीय नमूने सर्वेक्षण संगठन के बेरोज़गारी के आँकड़ों को बहाने बना प्रकाशित करने से इंकार कर दिया। लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रीय पतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के रिपेार्ट लीक हो गयी जिससे पता चला कि देश में बेरोज़गारी दर पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़कर 6.1 प्रतिशत पार कर चुकी है।

वहीं दूसरी तरफ सरकार ने जो आंकड़े पेश किये उसे टटोलने से पता चलता है कि, साहेब ने अपने कार्यकाल में कुल 164 योजनायें शुरू की जिसमें 112 को कल्याणकारी बताया गया। सरकार का कहना है कि लगभग 100 करोड़ के पार लोगों तक योजना पहुँच गयी -जैसे, जन धन योजना -34 करोड़ 70 लाख लोगों तक, किसान निधि योजना -12 करोड़ 10 लाख लोगों तक, सौभाग्य योजना -2 करोड़ 50 लाख लोगों तक, उज्ज्वला योजना -7 करोड़ 10 लाख लोगों तक, आवास योजना -1 करोड़ 50 लाख लोगों तक, मुद्रा योजना -13 करोड़ 45 लाख लोगों तक, अटल पेन्शन योजना -1 करोड़ 25 लाख लोगों तक, आयुष्मान योजना -10 करोड़ 20 लाख लोगों तक, इन्द्रधनुष योजना -18 करोड़ 50 लाख लोगों तक, प्रधानमंत्री बीमा फसल योजना -4 करोड़ 70 लाख लोगों तक … फेहरिस्त लंबी है। मसलन, सरकार ने आंकड़े प्रसारित कर कहा कि उन्होंने योजनाये लगभग 45 करोड़ किसान मजदूर व 50 करोड़ महिलाओं तक, मतलब देश के कुल 90 करोड़ वोटरों तक योजनाओं को पहुंचा चुकी है। जाहिर है जब सबने योजना का लाभ लिया तो फिर वोट भी इन्हें देंगे।

अगर ऐसी स्थिति सच में बन रही है तो फिर तमाम विपक्ष देश में व्यर्थ ही परेशान हो रहे हैं। जनता तो 100 फीसदी वोट देकर साहेब को चुनने वाली है। लेकिन साहेब ने आंकड़ों की बाजीगरी में यह नहीं बताया कि लोगों को इन योजनाओं में मिले लाभ का अनुपात क्या रहा, जिसमे चारों ओर विज्ञापनों जैसी दीवार खड़े करने में गोयबल्स की थ्योरी को पीछे छोड़ते हुए तकरीबन 20 हजार करोड़ उड़ा दिए गए गए। और जेटली-शाह जैसे लोग भाषणों-ब्लॉगों में आंकड़ों को फेंककर साहेब के कसीदे पढ़ सके। जेटली जी ने अपने चौथे ब्लॉग में खास तौर पर मुद्रा योजना ( यह वही योजना है जिसके तहत शाह ने पकौड़े तलने को रोजगार बताया था) का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि प्रधान मंत्री मुद्रा योजना में दिए गए लोन से 54 फीसदी एससी /एसटी /ओबीसी व कुल लाभार्थी के 72 फीसदी महिलायें लाभान्वित हुई और लेबर ब्यूरो के आँकड़ों के प्रसारण पर सरकार रोक लगा देती है। जबकि हर कोई जानता है कि मुद्रा योजना के तहत जो लोन दिए गए उसका औसत 22 हजार रुपया है और कुल मुद्रा योजना का 80 फीसदी ही है।

बहरहाल,शीर्ष पर बैठा हुआ व्यक्ति इतना क्यों अँधा हो जाता है कि वह ज़मीन पर देख ही नहीं पाता कि आखिर वहां हो क्या रहा है। और सत्ता हारने के डर से उसे जानता को लुभाने से लेकर भरमाने तक जो भी करना पड़े, क्यों न उन्हें झूठ की श्रृंखला ही ना रचना पड़े, रचता है। खुद को भगवान के अवतार तक बता देता है, लेकिन धरातल का सच तो कुछ और कहानी बयान करती दिखती है कि यहाँ लोग बेहाल हैं और पूंजीपति मालामाल

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