झारखंड में इन दिनों फासीवादियों के उन्माद अगर उतार पर दिख रही है तो, मुख्य वजह झामुमो कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के शुरुआत से ही रघुबर सरकार को उनकी गलत नीतियों के अक्स तले आड़े हाथो लेना रही है। इन्होंने झारखंडी जनता को लगातार आगाह किया कि इस सरकार ने यहाँ की अर्थव्यव्स्था की स्थिति खस्ताहाल कर रखी है। साथ ही यह भी बताया कि भाजपा ने लचर व्यवस्था व सत्ता के नशे में चूर हो राज्य के अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। नोटबन्दी और जीएसटी की मार का असर अब तक जारी है जिससे गरीब मज़दूर, छोटे किसान व छोटे व्यापारियों की तबाही का सिलसिला बरकरार है। औद्योगिक विकास की दर में भी कोई विचारणीय बढ़ोतरी नहीं हुई। बैंकों के एनपीए की समस्या ने अन्य राज्यों की भांति झारखंडियों का भी जीना दुश्वार किया।
कहने की ज़रूरत नहीं कि सतह पर दिखने वाले तमाम लक्षणों के मूल में भाजपा की लचर व्यवस्था व पूँजीपतियो से अन्योन्याश्रित संबंध के जद में झारखंड लाना रहा है, यह भी इन्होंने ही जनता को बताने का प्रयास किया। इन्होंने भूमि अधिग्रहण से लेकर ठेका मजदूर अधिनियम संशोधन से लेकर जंगल के कानूनों में संशोधन तक, 11 बनाम 13 राज्यों से लेकर झारखंड के संस्थानिक नियुक्तियों से लेकर पतन तक व तामाम कर्मचारी वर्गों के समस्याओं तक, सरकार के जनविरोधी फ़ैसलों जैसे स्कूल बंदी से लेकर शराब बिक्री से लेकर धार्मिक उन्माद तक और दलित-आदिवासी-मूलवासी-अल्पसंख्यक- गरीब से लेकर मौजूदा सरकार द्वारा थोपी गयी स्थानीय निति से लेकर ज़मीन लूट से लेकर जंगल कटाई से उत्पन्न प्रदुषण की जद तक न सिर्फ अपनी आवाज बुलंद की बल्कि विकट परिस्थितितों में पूरे झारखंड की परिक्रमा कर आवाम के दुखों से दो-चार होते हुए उन्हेह मौजूदा सरकार के जनविरोधी नीतियों को बताया।
बहरहाल, हेमंत जी ने झारखंड के वनखण्डों से होते हुए देश-दुनिया में घटित घटनाक्रम के अक्स तले एक अनुभवी राजनीतिज्ञ की भांति ठोस व मजबूत लकीर तो जरूर खींची है। इसमें कोई शक नहीं कि कई मायनों में हेमंत सोरेन तमाम झारखंडियों के सवालों के साथ एक ऐतिहासिक सन्धिबिन्दु पर खड़े हुए जहाँ से झारखंड के भविष्य निर्भर करता है। निर्भर तो यह भी करता है कि, हम फ़ासीवादियों की घटती लोकप्रियता से सन्तुष्ट हुए बिना इनके जनक और पोषक, इनके चहेते पूंजीपतियों को झारखंड की धरती से भगाने के लिए, पुरे फासीवादियों के गुर्ग के ताबूत में आखि़री कील ठोंकने में सफल होना ही पड़ेगा।