भाजपा द्वारा किये गए आदिवासियों के बेदख़ल जैसे अत्यचार के खिलाफ झामुमो का जोरदार धरना प्रदर्शन
पहले से ही आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन, चारागाह, गाँव के तालाब और साझा सम्पत्ति वाले संसाधनों पर जो भी थोड़े बहुत अधिकार थे, वे भी विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) और खनन, औद्योगिक विकास, सूचना प्रौद्योगिकी पार्कों आदि से सम्बन्धित अन्य ”विकास” परियोजनाओं की आड़ में लगातार निशाने पर रहे हैं। देश के यही वे भौगोलिक क्षेत्र भी हैं जिनको नक्सल-प्रभावित बता सरकार की सैन्य या अर्द्ध-सैनिक हमले करने की योजना थी, वहाँ खनिज, वन सम्पदा और पानी जैसे प्रचुर प्राकृतिक स्रोत हैं, और ये इलाके बड़े पैमाने पर अधिग्रहण के लिए अनेक कॉर्पोरेट के निशाने पर रहे हैं।
आदिवासियों व मूल निवासियों को पहले से ही डर था कि भाजपा सरकार इनके क्षेत्रों में उद्योगपतियों के प्रवेश और लूटने की सुगमता के लिए ज़ोरदार हमला करेगी जो सच साबित हुआ। केंद्र सरकार ने आदिवासियों के अधिकारों वाले कानून के बचाव के लिए तीन जजों की पीठ के सामने 13 फरवरी को अपने वकीलों की पेशी ही नहीं की। इसी वजह से पीठ ने राज्यों को आदेश दिया कि वह 27 जुलाई तक उन सभी आदिवासियों को बेदखल कर रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपे। अब ज़ाहिर है कि 11 लाख लोग बेदख़ल हो शहरों को जाएंगे और शहरों में ग्रामीण इलाकों के मुकाबले खेती तो होती नहीं, ऐसी स्थिति में इन आदिवासियों के पास भीख मांगने के अलावा कोई और रास्ता क्या बचेगा? जबकि सुप्रीम कोर्ट की ही टिप्पणी है कि “आदिवासियों की जमीन हड़पने के कारण पैदा हो रहे हैं नक्सली”।
झारखंड में सरकार के इस काले कदम के खिलाफ (आदिवासियों के बेदख़ल) झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जोरदार विरोध किया है। नेता प्रतिपक्ष सह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने अपने झारखंड संघर्ष यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार को जोरदार तरीके से घेरा है। इनका सीधा कहना है कि भाजपा नहीं चाहती कि हम आदिवासी व मूल निवासी इज्जत से अपनी जिन्दगी बसर करें। ये अपने आकाओं के सिक्कों के खनक के प्रति इतने वफादार निकले कि देश के 11 लाख परिवार व झारखंड के 28 हज़ार परिवारों के भविष्य के साथ इन्होंने खिलवाड़ कर दिया। इसी के विरोध में झारखंड में 25 फरवरी को राज्य के तमाम जिलों के झामुमो इकाईयों ने एक साथ जोरदार तरीके से धरना प्रदर्शन किया।
बहरहाल, विश्वव्यापी मन्दी की मार झेल रहे मोदी जी के आकाओं को उबरने के लिए इन इलाकों के खनिज सम्पदा के लूट की सख़्त ज़रूरत भी है। ऐसे में जाहिर है कि नरेन्द्र मोदी जी बड़े पूँजीपति वर्ग के सबसे चहेते चेहरे होंगे। और मुनाफ़े की गिरती दर को रोकने के लिए अपनी राज्यसत्ता द्वारा आम जनता का दमन करने के अलावा इस सरकार और इनके चहेते पूंजीपतियों के पास और कोई रास्ता भी नहीं बचता है। मसलन, यही है भाजपा के तथाकथित देशभक्ति के मायने, जिसमें इस सरकार का ‘राष्ट्र’ के हित और अहित का सीधा मतलब अपने चहेते पूंजीपतियों के नफ़े-नुकसान के हिसाब से होता है और ज़रूरत पड़ने पर अपनी ही जनता के ख़िलाफ़ युद्ध करना है, उस पर अत्याचार करना भी इनके लिए ‘राष्ट्रहित’ ही कहलाता है।