उत्तरी छोटानागपुर संघर्ष यात्रा और हेमंत सोरेन

उत्तरी छोटानागपुर संघर्ष यात्रा में हेमंत सोरेन का बढ़ता क़द 

“कहीं गैस का धुआं है, कहीं गोलियों की बारिश

शब-ए-अहद-ए-कमनिगाही तुझे किस तरह सुनाएं”    …जालिब

बात जालिब के मशहूर शेर से शुरू करते हैं, जालिब वो शायर थे जिन्होंने हर्फ़-ए-सदाक़त लिखा, बग़ावत लिखी, हर उस मसले पर लिखा जो जुल्मियों को  विचलित करता रहा, नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन झारखंड संघर्ष यात्रा के दौरान ठीक वैसी ही भूमिका में दिख रहे हैं। जिससे ‘सब कुछ ठीक है’ कहने वाले हुकुमत अपने झूठ को बेनक़ाब होता देख परेशान हैं, वो हत्थे से उखड़ गई और जबतक वे अपना मुशायरा रोकते झारखंड के इस माटिपुत्र ने अपने संघर्ष यात्रा के दौरान झारखंड के हालात की असल तस्वीर कोलहान, दक्षिणी छोटा नागपुर, पलामू और अब उत्तरी छोटा नागपुर प्रमंडल के जनता के बीच पेश कर दी हैं सत्ता द्वारा दिखाए जा रहे राज्य के फ़र्ज़ी सूरतेहाल से इंकार करते रहने की ज़िद से ये न सिर्फ आवाम के बीच लोकप्रिय हुए बल्कि जिम्मेदार मुख्यमंत्री के रूप में इन्हें प्रदेश ने स्वीकारा भी

उत्तरी छोटा नागपुर प्रमंडल के रामगढ़, हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, धनबाद एवं बोकारो जिले भाजपा के गढ़-क्षेत्र माने जाते हैं। परन्तु इन क्षेत्रों में उत्तरी छोटानागपुर संघर्ष यात्रा के दौरान उमड़े वतनपरस्त जन सैलाब कहीं न कहीं साबित करता है कि यहां के आवाम भाजपा शासन में लोकतांत्रिक तानाशाह गिरोह द्वारा सबसे अधिक सताये गए हैं इन क्षेत्रों के गरीबों के हक़ पर डाका डालने की रवायत लोकतांत्रिक ढंग से आक्रामकता से जारी रही है। 13/11 के नियोजन नीति के भेंट चढ़ने वाले इस क्षेत्र  की सबसे बड़ी समस्या विस्थापन है। DMFT / CSR / MGNREGA योजनाओं के क्रियान्वयन में  ग्राम सभा की अनदेखी सबसे अधिक हुई है। कोयले के संपूर्ण कारोबार पर भाजपा के लोग अपनी आधिपत्य जमाये हुए हैं और आये दिन इनके विधायक व्यापारियों को डराते धमकाते रहते है। पूरे देश को अपने कोंख से कोयला देने वाला यह क्षेत्र के हिस्से केवल प्रदूषण प्राप्त हुआ है।

पिछले आम-चुनाव में इन क्षेत्रों ने भाजपा को झोली भर कर सांसद विधायक दिए परन्तु दल की चालाकी तो देखिये एक भी मंत्री पद इन क्षेत्रों को नहीं मिला। इन क्षेत्रों में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक तो हाशिये पर थे ही परन्तु भाजपा ने बढ़ई/कुम्हार/नट/कोयरी/कहार/घटवार/कुर्मी जैसे समाज को भी हाशिये पर धकेलने से नहीं चूकी। राशनकार्ड में निहित तमाम गरीबों के आधार कार्ड होने अनिवार्य है परन्तु सरकारी आंकड़े के अनुसार इस क्षेत्र के लगभग 26 फीसदी कार्डधारियों के नाम आधार से लिंक नहीं हैं। ऐसे में भोजन के अधिकार से इसी क्षेत्र के सबसे अधिक गरीब वंचित हैं।

मसलन, इन तमाम नाइंसाफियों के खिलाफ़ हेमंत सोरेन आज इंसानी संघर्ष का चेहरा हैं, झारखंडी पैबस्त बेजुबानों के एक आवाज़ हैं ये ज़ुल्म, ज़्यादती, मुफ़लिसी और गैर-बराबरी की शिकार जनता के दर्द को महसूस कर उसे उतनी ही शिद्दत से लफ़्ज़ों में ढाल लोगों के बीच परोसने में सफल हुए है इस समय झारखंड में हेमंत जी दुनिया के उन चंद लोगों की जमात में खड़े नज़र आते हैं जो बेहद ज़रूरी हैं इंसानियत के लिए ऐसे ही लोग सत्ता के नशे में चूर किसी हुक्मरान को ज़मीन दिखा सकते हैं और इस काम को ये उत्तरी छोटानागपुर संघर्ष यात्रा के दौरान बखूबी अंजाम दे रहे हैं   

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