आखिर क्यूँ रघुबर दास के खिलाफ दायर याचिका पर जांच एजेंसी कठघरे में ?

झारखण्ड के हाई कोर्ट में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ याचिका (पीआइएल) दायर की गयी है। यह याचिका रघुबर दास जी के द्वारा निजी फर्म ‘MEINHARDT’ को परामर्श शुल्क के रूप में दिए गए 26 करोड़ रुपये में मानदंड के उल्लंघन के आरोप पर आधारित है। रघुबर दास उस वक़्त अर्जुन मुंडा के सरकार में शहरी विकास विभाग संभाल रहे थे।

याचिकाकर्ता दुबे ने याचिका दायर करने के बाद कहा कि 2005 में सरकार ने रांची में ‘ऑर्ग स्पेन लिमिटेड’ (ORG SPAN ltd) कंपनी को 5 करोड़ में सीवरेज और ड्रेनेज के लिए DPR तैयार करने का काम सौंपा था। आधे से अधिक काम पूरा हो जाने के बाद उस वक़्त के तत्कालीन शहरी विकास मंत्री रघुबर दास ने बीच में सिंगापुर की मेन्हार्ट कंपनी लिमिटेड को यह काम सौंप दिया, जिसका इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था।

इस पीआईएल में आगे तर्क दिया गया है कि सरयू राय की अध्यक्षता वाली विधानसभा समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में रघुबर दास जी को दोषी ठहराया था। साथ ही किसी खास कंपनी को एकतरफा काम सौंप जाने के फैसले पर सवाल भी उठाया था। इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करने वाले ने एक पीआईएल भी दायर की जिसे बाद में सतर्कता ब्यूरो को  जांच के लिए भेजा गया था।

दुबे ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि सतर्कता ब्यूरो की तकनीकी समिति ने अपनी जांच में यह पाया कि फर्म निर्धारित कार्य को पूरा करने वाली उपयुक्त एजेंसी नहीं थी। साथ ही समिति ने सतर्कता आयुक्त से मामले में एफआईआर दर्ज करने के आदेश की मांग की परन्तु स्वीकृति आदेश नहीं दिया गया और इसलिए एफआईआर दर्ज नहीं हो सकी। आयुक्त ने तीन साल से अधिक समय तक फाइल को लंबित रखा। साथ में दुबे ने यह भी कहा कि रघुबर दास की मदद करने वाले आईएएस अधिकारी राजबाला वर्मा और जेबी तुबिद को मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें मदद के लिए पुरस्कृत किया गया।

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