झारखंड में जैसे-जैसे रघुबर सरकार की अलोकप्रियता जग जाहिर होती जा रही है वैसे-वैसे राज्य के भाजपा झारखंड इकाई अपनी रणनीति बदलने से नहीं चूक रही। सोशल मीडिया में आम जनों द्वारा रघुबर सरकार के विरुद्ध निकाले जा रहे भड़ास इसका उदाहरण हो सकता है। बेशक़ सीएनटी/एसपीटी अधिनियम में संशोधन के प्रयास, भूमि अधिग्रहण संशोधन, स्थानीयता की नीतियों में गड़बड़ी कर 75 फीसदी बाहरियों को नौकरी देने जैसे तमाम जनविरोधी क़दमों के कारण भाजपा सरकार का सामाजिक आधार लगातार घटा है। इसका ताज़ा उदाहरण पारा शिक्षकों के प्रति बदले रवैये के रूप में देखा जा सकता है।
इसके अलावा रघुबर सरकार के सत्ता में आने के बाद से झारखंड में बेरोज़गारी, महँगाई, भूख और खेती जैसे संकट के अभूतपूर्व रफ़्तार से बढ़ने ने भी इस असन्तोष को हवा दी है। पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें आपस में रेस लगाती दिखी हैं, डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरते कीमत के कारण आयात महँगे हुए हैं जिसका सीधा असर महँगाई पर पड़ा है। कुछ उपचुनावों में भाजपा झारखंड इकाई की हुई हार भी इसकी गवाही देती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि फ़र्ज़ी आँकड़े दिखाकर विकास का ढोल चाहे जितना पीट लिया जाये, असलियत में इस सरकार के दावे दुनिया भर में मज़ाक का विषय बन चुका हैं।
झारखंड के लोगों द्वारा इनके इस खुली डकैती एवं जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ उठते आवाज़ को देख कर भाजपा एवं इनके अनुषंगी दल घबराने लगे है। ज्यों-ज्यों इनकी घबराहट बढती जा रही है त्यों-त्यों भाजपा झारखंड इकाई अपनी रणनीति के तौर पर रघुबर दास का फोटो अपने बैनरों-पोस्टरों से घटाते हुए मोदी जी का फोटो चिपकाने के प्रयास में जुट गयी है। इसका ताजा उदाहरण हम गिलुआ के वक्तब्य में देख सकते हैं जिसमे उन्होंने कहा है कि पारा शिक्षकों के मामले खुद भाजपा निबटना चाहती है। चुनाव सिर पर है और इनका कोई भी जुमला काम नहीं आ रहा है इस स्थिति में ठगों का यह गिरोह फिर से झारखंडी नेताओं के साथ-साथ मोदी जी के नाम आगे करने में जुट गया है। इनका प्रयास है कि रघुबर दास से झारखंडी आवाम का ध्यान हटा मोदी पर केन्द्रित किया जाय।