JPSC : हेमन्त सत्ता में मूल युवाओं की चिंता बीजेपी को क्यों लगता है मजाक

झारखण्ड JPSC : पूर्व OBC सीएम रघुवर दास JPSC जांच पर स्पष्टीकरण न दे क्यों कर रहे हैं मुद्दे से भटकाने का प्रयास? क्या बीजेपी नहीं देना चाहती थी आदिवासी-मूलवासी को लाभ? क्या बीजेपी नेता के ऐसे बयान केवल गृहमंत्री आगमन को संरक्षण देना भर है?  

रांची : झारखण्ड विधानसभा में सीएम हेमन्त सोरेन के द्वारा स्पष्ट कहा गया कि राज्य में विपक्ष की राजनीति भारत सरकार के संस्थानों के चुट्कों पर निर्भर हो चुकी है. ज्ञात हो, JPSC की पहली व दूसरी परीक्षा के पास आउट अभियार्थियों के अंक में छेड़-छाड़ का आरोप लगा है, इसकी सीबीआइ जांच हो रही है. मसलन, कुचालों के मद्देनजर उस वक़्त की बीजेपी सरकार व तत्कालीन सीएम मूलवासी छल के मद्देनजर कटघरे में खुद ही आ खड़े हुए हैं. 

JPSC : हेमन्त सत्ता में मूल युवाओं की चिंता बीजेपी को क्यों लगता है मजाक

फिर भी सामन्तवाद की पराकाष्ठा है कि राज्य के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी वर्तमान सीएम को ज्ञान दे रही है कि देश को आगे बढ़ाने वाले लोग अर्थात बीजेपी इण्डिया पूरे देश के सर्वांगीण विकास के बारे में सोचती है. जिसके अक्स में छिपा एक मात्र सन्देश हो सकता है कि क्यों बीजेपी सरकार में मूलवासियों से छल कर बाहरियों को तरजीह दी जाती रही. और हेमन्त शासन में मूलवासियों को तरजीह दिया जाना क्यों बीजेपी को युवाओं के साथ भद्दा मजाक लगता है. 

बीजेपी के पूर्व OBC सीएम रघुवर दास स्पष्टीकरण न दे मुद्दे को कट ऑफ़ मार्क के आसरे छिपाने का प्रयास 

एक तरफ JPSC के द्वारा सीबीआइ को सूचित किया जाता है कि उसके स्ट्रोंग रूम से बीजेपी शासन में हुए सिविल परीक्षा के इंटरव्यू बोर्ड में शामिल विशेषज्ञों का नाम पता गायब है. सम्बंधित परीक्षा के महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब हैं. मसलन, सीबीआइ को नियुक्ति घोटाला की जांच में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. यह जानकारी सीबीआइ के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश की गयी है. फिर भी बीजेपी पाक साफ़ है. कैसे?

तमाम परिस्थितियों के बीच इस मुद्दे पर बीजेपी के पूर्व OBC सीएम रघुवर दास के द्वारा स्पष्टीकरण देने के बजाय पूरे मुद्दे कट ऑफ़ मार्क के आसरे छिपाने का प्रयास हुआ है. जबकि केन्द्रीय बीजेपी की सत्ता कट ऑफ़ मार्क को लेकर खुद का खुद को हरिश्चंद्र दिखाने प्रयास हुआ है. जो बीजेपी नेताओं की नैतिकता व बीजेपी की नीतियों की नियत स्पष्ट रूप झारखण्ड के मूलवासियों के समक्ष पेश कर सकती है.

बीजेपी सरकार JPSC परीक्षा कराने में नाकाम रही या कराना ही नहीं चाहती थी 

  • प्रथम JPSC परीक्षा : 2004
  • द्वितीय JPSC परीक्षा : 2005 
  • तृतीय JPSC परीक्षा : 2006-2009 
  • चतुर्थ JPSC परीक्षा : 2010-2012 
  • पांचवीं JPSC परीक्षा : 2013-14 
  • छठी सिविल सेवा परीक्षा : 2014-15 में शुरू, अभी तक पूरी नही हो पाई है.

झारखण्ड : बाबूलाल मरांडी जी की काबिलियत, ज्ञान का भंडार व झारखण्ड व राज्य के मूलवासी-आदिवासी के प्रति गंभीरता इससे भी आंकी जा सकती है कि बतौर सीएम वह अपने कार्यकाल में JPSC की एक भी परीक्षा तक नहीं करवा पाए. साथ बीजेपी 20 वर्षों में छठी JPSC को भी क्यों पूरा नहीं कर पाई.

क्या हेमन्त सरकार को ज्ञान देने के बजाय उन्हें इस गंभीर सवाल पर बाबूलाल मरांडी, पूर्व OBC सीएम रघुवर दास सरीखे बीजेपी नेताओं को स्पष्टीकरण नहीं देना चाहिए. जबकि प्रत्येक वर्ष JPSC होनी चाहिए थी. मसलन, सपष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि बीजेपी चाहती ही नहीं थी राज्य में JPSC हो और मूलवासियों को लाभ मिले. 

सीबीआइ को बीजेपी शासन में हुए JPSC परीक्षा में मिली भारी गड़बड़ी 

ज्ञात हो, प्रकाशित ख़बरों के अनुसार सीबीआइ जांच में पता चला है कि बीजेपी शासन में हुए JPSC परीक्षा की प्रथम सिविल परीक्षा की कापियों में ओवर राइटिंग व काट-छांट हुए हैं. कॉपियों में पहले मिले नम्बरों को काट कर बढ़ाया गया है. इंटरव्यू में भी भारी गड़बड़ी का पता चला है. सीबीआइ के स्टेटस रिपोर्ट में प्रथम व द्वितीय JPSC आंसर सीट की दुबारा जांच की बात कही गयी है. जिसके लिए न्यायालय से 4 माह का वक़्त भी दिया गया है.

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