झारखण्ड : पारा शिक्षक व पोषण सखी के हितों से ज्यादा जरुरी रघुवर दास के लिए एक फिल्म को टैक्स फ्री कराना क्यों?

झारखण्ड : बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास के लिए पारा शिक्षक और पोषण सखी के हितों से ज्यादा जरुरी एक फिल्म को टैक्स फ्री कराना क्यों है? केंद्र ने पारा शिक्षकों का बजट कम किया, पोषण सखी की राशि बंद की. लेकिन साहेब को इसकी चिंता नहीं… क्या अभी भी पुराने धड़े पर कायम हैं बीजेपी नेता

बाहरी मूल के नेताओं के सोच से अलग मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन राज्य के समस्याओं के प्रति गंभीर

रांची : देश की राजनीति में इन दिनों एक फिल्म “कश्मीर फाइल्स” चर्चा का केंद्र बनी हुई है. देश भर में भाजपा नेता इस फिल्म का महिमामंडन कर रहे हैं और फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग कर है. ज्ञात हो, जम्मू-कश्मीर में एक वर्ग विशेष के लोगों की त्रासदीय जीवन पर बनी फिल्म है. जिसके कई ऐतिहासिक पहलू हैं जो निश्चित रूप से देश के लिए विशेष महत्त्व रखते हैं. लेकिन, भाजपा द्वारा इस मुद्दे को जबरन हवा देना केवल गंभीर समस्याओं से देश का ध्यान भटकाना भर है. जीवंत उदाहरण हम झारखंड जैसे गरीब प्रदेश में देख सकते है.

गरीबी के मद्देनजर केन्द्रीय नीतियों के संकुचन में झारखण्ड राज्य कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास की सोच साफ़ दर्शाता है कि उन्हें राज्य की गंभीर जन समस्याओं, गरीबी से कोई लेना-देना नहीं है. ज्ञात हो, राज्य में ब-मुश्किल परिवार का पेट पालने वाले कुछ अनुबंध कर्मचारी वर्ग मानदेय को लेकर परेशान है. क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा इनके बजट में राशि की कटौती की गयी है.

सीधे शब्दों में कहें तो केंद्र द्वारा इन वर्गों का मानदेय को बंद कर दिया गया है. लेकिन, साहेब रघुवर दास को न इनकी चिंता बीते कल थी और न ही आज है. इन्हें चिंता है तो केवल संबंधित फिल्म को टैक्स फ्री कराने की. ताकि केन्द्रीय जन विरोधी नीतियों पर पर्दा डाला जा सके. सच ही कहा जाता है बाहरी को घर की चिंता नहीं होती है. उन्हें केवल अपनी झोली भरने से मतलब होता है.  

केंद्र ने पोषण सखी का मानदेय किया बंद, पारा शिक्षकों के बजट में भी की कटौती

बीते दिनों ही बजट सत्र में रहस्य उजागर हुए कि केंद्र की भाजपा सरकार ने पोषण सखी का मानदेय पूरी तरह से बंद कर दिया है. महिला और बाल विकास मंत्री जोबा मांझी द्वारा स्पष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार से पोषण सखियों का मिलने वाला मानदेय को बंद कर दिया गया है. केंद्र ने सारी जिम्मेदारी राज्य पर डाल दी है. राज्य अपने संसाधन के बल पर इस योजना को चाहें तो चला सकते हैं. 

यही नहीं केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए पारा शिक्षकों के मानदेय के मद में मिलने वाली राशि में भी 5 प्रतिशत की कटौती की है. चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में पारा शिक्षकों के मानदेय के लिए कुल 878.91 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत हुआ था, जिसमें वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग 43.94 करोड़ की कटौती कर 834.97 करोड़ की गयी है. 

रघुवर को पोषण सखी बहनों और पारा शिक्षकों से ज्यादा चिंता फिल्म को टैक्स फ्री कराने की है. 

बीते दिनों पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने कुछ सिपहसलारों के साथ राजधानी के एक थियेटर में ”कश्मीर फाइल्स” मूवी देखी. मूवी देखने के बाद उन्होंने सीएम हेमन्त सोरेन को झारखण्ड में सम्बंधित फिल्म को टैक्स फ्री करने का आदेश सुनाया है. उनका दलील है कि ऐसा होने से अधिक लोग कश्मीर की सच्चाई जान सकेंगे. लेकिन बाहरी मानसिकता के ठप्पा पाने वाले साहेब ने कभी राज्दोय के भाई-बहनों के समस्याओं पर केंद्र को शब्द न कहे.

जिस राज्य के लिए पोषण सखियों का मानदेय और पारा शिक्षकों के बजट में कटौती केंद्र की नीतियां करे. वहां किसी फिल्म को टैक्स फ्री करना आर्थिक दृष्टिकोण से आत्महत्या करने के बराबर हो सकता है. और रघुवर दास जैसे नेता को राज्य के भाई-बहनों की हित में बात न कर फिल्म टैक्स फ्री कराने में दिलचस्पी लेना, उसके सोच पर गंभीर सवाल खड़े करते है. 

मुख्यमंत्री वाले गुमान में ही जी रहे रघुवर, हेमन्त सरकार पोषण सखी व पारा शिक्षकों को नहीं होने देगी परेशान 

असल में, रघुवर दास से मानवता की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है. क्योंकि वह मन और वचन से आज भी तानाशाही मुख्यमंत्री वाले गुमान में ही जी रहे हैं. वे भूल गये हैं कि उनकी इसी तानाशाही सोच के अक्स में न केवल भाजपा ने बल्कि उन्हें भी राज्य में करारी हार का स्वाद चखना पड़ा है. उनके फ़ासी सोच को न तो पोषण सखी बहनें भूल सकती है न ही पारा शिक्षक भाई. जबकि हेमन्त सोरेन के सोच में, सरकार की कार्यप्रणाली में राज्य के तमाम वर्गों की समस्याओं के प्रति चिंता दिखती है. ज्ञात हो, अनुपूरक बजट में पोषण सखियों के हित में 38 करोड़ का बजट प्रावधान. केंद्र के बजट कटौती के बावजूद पारा शिक्षकों के मानदेय में कोई कटौती न करने के पक्ष में हेमन्त सरकार का फैसला तथ्य को मूल रूप से स्पष्ट करता है.

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