न राजधर्म निभाया न लोकधर्म, झारखंडी भाजपाई उत्पात में भगवा हुआ बदनाम

कौन हैं महारथी। जन सेवक। शान्ति दूत। लोटा-पानी संघ। झारखंडी मानसिकता। फासीवादी। पूंजीपति चाकर। या कुछ और… झारखंड विधानसभा में भगवा लिबास में लिपटी मानसिकता कौन हैं। हर ज़हन में उठने वाले एहसास खुद ही नाम करण कर सकते हैं। लेकिन, बुद्धिजीवी व एक पत्रकार के लिये तो -लोकतंत्र की हत्या और सनातन का विपरीत व्याख्या, बस यही एहसास हो सकता है। 

जनता भाजपाई कुरुक्षेत्र में महँगाई के मार से लथ-पथ पड़ी है। और झारखंडी सत्ता से राहत की उसकी आस को धार्मिक उत्पात के मद्देनज़र दमन हो। और देश के शांति के रंग भगवा को उसकी कीमत चुकानी पड़े, जो खुलकर उभरा। निस्संदेह सोचने का वक़्त हो सकता है। क्यों बजट पढ़े जाने से पहले यह विरोध? कहीं कोई सच का सतह पर उभरने का खौफ तो नहीं सता रहा…

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