राष्ट्रीय नेताओं को भरोसा, मोदी सरकार की गलत नीतियों को सामने लाने में हेमन्त सोरेन का साथ है जरूरी

झारखंड मुक्ति मोर्चा भले ही एक क्षेत्रीय दल हो, लेकिन बीजेपी की खोखली विचारधारा पर सबसे पहला चोट 2019 में इसी दल ने दिया. और 2021 में बंगाल चुनाव में निभाया महत्वपूर्ण भूमिका. राष्ट्रीय नेताओं को हेमन्त पर बढ़ा भरोसा

बंगाल चुनाव में ममता का हेमंत से समर्थन मांगना, कोरोना से जंग में पीएम को लिखे सामूहिक पत्र और संयुक्त किसान मोर्चा के विरोध में सहयोग ने देश की राजनीति में हेमंत की उपयोगिता को ला दिया है सामने, राष्ट्रीय नेताओं को बढ़ा भरोसा

रांची: 2014 की तुलना में, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार गिरती जा रही है. पश्चिम बंगाल चुनाव में मोदी जी के लीड प्रचारक होने के बावजूद, बीजेपी की करारी हार तथ्य की तस्दीक करती है. देश का आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ना, बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल के मूल्यों  में बेतहाशा बढ़ोतरी और केंद्र की जन विरोधी नीतियां जैसे कई मुख्य वजहों के बीच, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुशल नेतृत्व क्षमता भी एक महत्वपूर्ण कड़ी रही है. 

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुशल नेतृत्व का खामियाजा भाजपा को लगातार 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव से उठाना पड़ा है. हालांकि, तेजस्वी यादव इनके अनुभव का उपयोग बिहार चुनाव में नहीं कर सके. लेकिन ममता दीदी ने बंगाल चुनाव में हेमंत सोरेन की अनुभवों का उपयोग बखूबी किया. सांप्रदायिक ताकतों को रोकने में कारगर, मुख्यमंत्री की ईमानदार विचारधारा का असर बंगाल के ग्रामीण व एससी-एसटी क्षेत्रों में बखूबी दिखा. नतीजतन, बंगाल में भाजपा को मिली करारी हार में, इनकी उपयोगिता को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.

मसलन, ईमानदार व कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कद, देश की राजनीति में लगातार बढ़ है. और देश में इनकी प्रबंधन क्षमता की ही गूँज है कि राष्ट्रीय स्तर के पार्टियों का भरोसा आज हेमंत सोरेन पर न केवल बढ़ा है, इनका साथ भी जरुरी समझा गया है. और मोदी सरकार की गलत नीतियों को जनता के सामने लाने के लिए, देश के तमाम विपक्षी बड़े नेता युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साथ चाह रहे हैं.

बीजेपी को सत्ता से हटाकर हेमंत सोरेन ने झारखंड राजनीति में छोड़ी गहरी छाप

हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा भले ही आज एक क्षेत्रीय दल के रूप में देश में पहचान रखती है. लेकिन 2019 के अंत में जिस कुशलता से बीजेपी की रघुवर सरकार को इन्होंने अपनी ज़मीनी विचारधारा के बदौलत सत्ता से बेदखल किया. निश्चित रूप देश भर में हताश हो चुकी सेक्युलर राजनीति के लिए उदाहरण हो सकता है. और देश भर में बतौर कार्यकारी अध्यक्ष के कर्तव्य के रूप में एक अनूठी छाप भी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खूबियों में से एक है कि वह भाजपा के जनविरोधी विचारधारा की लबादे को उतार कर बखूबी जनता के समक्ष सच प्रस्तुत करते हैं.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन में कई खूबियां हैं – जैसे मुसीबतों को पीठ नहीं दिखाते. अपने महापुरुषों के विचारधारा को हतियार बना ये विरोधियों के समक्ष चट्टान की भांति खड़े हो जाते हैं. इनकी विचारधारा स्पष्ट है जो जनता के बीच अपनी पेंट आसानी से बना लेती है. ये कभी अपने लक्ष्य से न डिगते हैं और न ही पलटते हैं. झारखंड की महान संस्कृति इनमें रची-बसी महसूस होती है. इनमे लालू यादव की भांति गठबन्धन को आकार देने की भी क्षमता मौजूद है. जन समस्याओं के प्रति इनका समर्पण, ज़मीन से जुड़ी विकास की रेखा खींचने की ललक इन्हें बड़ा नेता बनाता है. 

नतीजतन, देश के सभी पार्टियों के बीच हेमंत सोरेन लोकप्रिय हुए हैं. विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बतौर जेएमएम कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कांग्रेस और आरजेडी से गठबंधन बनाया और चुनाव में भाजपा को पटखनी दी. भाजपा के खुली प्रलोभन व सौतेला रवैए के बावजूद, ये गठबंधन को कुशलता के साथ आगे भी ले जा रहे हैं. और झारखंड में विकास की बुनियादी लकीर भी बखूबी खींच रहे हैं. जिससे बीजेपी विचारधारा के समक्ष झारखंड में अपनी ज़मीन बचाने का सवाल खड़ा हो गया है.  

ममता दीदी ने मांगी मदद, तो सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए आगे बढ़ उन्हें दिया समर्थन 

युवा हेमंत की लोकप्रियता का ही असर था कि पश्चिम बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने हेमंत सोरेन से मदद मांगी. और पत्र व फ़ोन के माध्यम से हेमंत सोरेन से पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए आग्रह किया. मुख्यमंत्री ने पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन व केंद्र कमेटी की सहमति से ममता बनर्जी को समर्थन देने का ऐलान किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि देश के संवैधानिक मूल्यों पर सांप्रदायिक ताकतों को काबिज होने से रोकने के लिए ममता बनर्जी को समर्थन देने का निर्णय उन्होंने लिया है.

पीएम को कोरोना से जंग के लिए सुझाव देने में विपक्ष द्वारा हेमंत से ली गयी मदद 

राष्ट्रीय नेताओं को भरोसा

कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए बीते दिनों 12 मई को देश के कई दिग्गज राष्ट्रीय नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा. पत्र पर विपक्षी दलों के 12 नेताओं के हस्ताक्षर थे. इसमें भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मदद ली गयी. पत्र में कोविड-19 से जंग करने के उपायों को लेकर पीएम को 9 सुझाव दिये गये. इसमें फ्री सामूहिक टीकाकरण अभियान शुरू करने, सेंट्रल विस्टा परियोजना को निलंबित करने के अलावा सभी बेरोजगारों को प्रति महीने 6,000 रुपए देने और जरूरतमंदों को फ्री अनाज 

देने की बात प्रमुखता से शामिल थी.

अब संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में मांगी गई है हेमन्त से मदद 

राष्ट्रीय नेताओं ने 23 मई को एक बार फिर हेमंत सोरेन से किसान मुद्दों पर समर्थन मांगी. मुख्यमंत्री ने किसान मुद्दे का स्वागत करते हुए आगे बढ़ समर्थन दिया. यह समर्थन आगामी 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन के लिए मांगा गया है. दरअसल केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर किसानों के प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के उपलक्ष्य में संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का निर्णय लिया है.

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