भाजपा अपने लिए अलग और दूसरों के लिए अलग तराजू रखती है! जो उनका शासन राम राज और दूसरों का जंगल राज करार देती है
लातेहार में, भाजपा जिला महासचिव सह चतरा सांसद प्रतिनिधि की 5 जुलाई को अज्ञात अपराधियों ने हत्या कर दी थी। निश्चित रूप से यह कानून और व्यवस्था का मामला हो सकता है। लेकिन एक सरकार का आकलन उसके द्वारा किए गए जांच प्रक्रिया की समीक्षा पर आधारित हो सकता है। लेकिन भाजपा ने सीधे तौर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि झारखंड में जंगल राज लौट आया है। जो महज मजाकिया भर हो सकता है।
मुख्यमंत्री निवास के सामने ही हत्या हुई वह राम राज!
उदाहरण के लिए, जब हम देश भर में देखते हैं, तो कुछ और निकलता है। जैसे झारखंड में जब भाजपा की रघुवर सरकार थी। ऐसे कई मामले सामने आए जिनके लिए जांच या समाधान तब नहीं किया गया। मुख्यमंत्री निवास के सामने ही हत्या हुई। राँची लालपुर के व्यस्त बाजार में, अपराधी बैंक लूट लेते हैं और आसानी से बच निकलते हैं। पलामू प्रमंडल में कई हत्याएँ होती है। लेकिन अपराधियों को सामने नहीं लाया गया। शायद इसे जंगल राज नहीं राम राज कहा जाता है!
जब एक मजबूर पिता अपनी बेटी के दोषियों को पकड़ने के लिए सरकार से गुहार लगाता है, तो मुख्यमंत्री स्वयं उसे दुत्कार कर भगा देते हैं। लिंचिंग के नाम पर सरे आम उसी राज में हत्याएँ होती है, लेकिन अपराधियों को दंडित करने के बजाय, भाजपा नेता उन्हें माला पहनाते हैं और गले लगाते हैं। शायद यह राम राज था, जंगल राज नहीं! जज लोया व गौरी लंकेश जैसे कितनों की हत्या हो गयी। जिसके गुनाहगार अब तक सामने नहीं लाये जा सके हैं।
मसलन, झारखंड ख़बर का लेख न तो किसी सरकार का पक्षधर है और न ही अपराध की वकालत करता है। यह केवल यह सवाल करता है कि यदि भाजपा की विचारधारा दूसरों पर आरोप लगाने के समय ऐसी घटनाओं को जंगल राज करार देती है, तो अपने लिए अलग और दूसरों के अलग तराजू क्यों रखती है ? क्यों भाजपा आईने में अपना अक्स नहीं देखती ? क्यों भाजपा खुद यह नहीं मानती है कि उसका शासन राम राज पर नहीं, बल्कि जंगल राज पर आधारित है!