झारखण्ड के इतिहास में पहली बार निकल रहे हैं सिरे से मूल समस्याओं के स्थाई हल

निसंदेह हेमन्त सरकार में झारखण्ड राज्य के चिरकालीन ज्वलंत समस्याओं को नीतियों के आसरे स्थाई तौर पर सुलझाने का काम तेजी से हो रहा है

रांची : झारखण्ड एक संसाधन संपन राज्य है. अलग झारखण्ड के 20 वर्षो के इतिहास में पहला मौका है जब मौजूदा शासन में राज्य के भविष्य मद्देनज़र बुनियादी नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं. झारखण्डी मानसिकता, आदिवासी-मूलवासी की सरकार, ग़रीबों की सरकार, हेमन्त सरकार जो मर्जी नाम दें, निसंदेह इस सरकार में राज्य के चिरकालीन ज्वलंत समस्याओं को नीतियों के आसरे स्थाई तौर पर सुलझाने का काम तेजी से हो रहा है. साथ ही राज्य की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं के मद्देनज़र भी ठोस नीतिगत फैसले लिए गए है. राज्य को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को नयी सोच के साथ नए सिरे से नीतियों की आसरे गढ़ने का प्रयास हुआ है.

उदाहरण के तौर पर जेपीएससी नियमवाली का गठन, पारा शिक्षकों की चिरकालीन समस्या का स्थाई हल, राज्य के तमाम अनुबंध कर्मियों की समस्या को सुलझाने की दिशा में कार्य होना. विद्यालयों में आधारभूत संरचना की कमी को दूर के दिशा में लीडर और मॉडल स्कूल खड़ा करने का फैसला. राज्य में पर्यटन नीति-खेल नीति को उतारना और तमान नीतियों से रोज़गार को जोड़ने हेतु नयी उद्योग नीति से जोड़ने की सोच, राज्य के गरीबी को छूती योजनाएं, महिला सशक्तिकरण के मद्देनज़र पलाश जैसे ब्रांड के आसरे बाजार उपलब्ध कराने की सोच, राज्य में कृषि को उन्नत बनाने की दिशा में बढ़ते कईकदम निश्चित रूप से तथ्य की पुष्टि करती है.

मुख्यमंत्री ने स्वयं सदन में कहा है कि उनकी सरकार जनता से किये वादे पूरा करेगी

ऐसे में मुद्दों के अभाव में राज्य का विपक्ष केवल साम्प्रदायिकता को हवा देना और जनता को भ्रमित करने के प्रयास से इतर कुछ और कर पाने में अक्षम दिखती है. मौजूदा दौर में राज्य का विपक्ष मूलवासी के हिमायती होने का चोला ओढ़ 1932 के मद्देनज़र जनता को उकसाते दिख रहे हैं. लेकिन राज्य की मौजूदा हेमन्त सरकार तमाम अटकलों को दरकिनार कर धैर्य पूर्वक दृढ़ता के साथ राज्य के भविष्य को गढ़ने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रही है. ज्ञात हो, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने स्वयं सदन में कहा था कि उनकी सरकार जनता से किये वादे पूरा करेगी और जनता के आकांक्षाओं पर खरी उतरेगी.

ज्ञात हो, राज्य में लम्बे दौर से विस्थापन एक गंभीर समस्या रही है. राज्य में भरी संख्या में आदिवासी-मूलवासी व गरीब जनता विस्थापित है. वह अपने ही राज्य में, अपनी ही ज़मीन पर बेगाने हैं. इन्हें कानून मुआवजा तक ढंग से नहीं मिला है. साथ ही राज्य की जनता सीएनटी -एसपीटी के उल्लंघन के भी शिकार हैं. और शेष लोगों के पास ही 1932 के दस्तावेज़ उपलब्ध है. ऐसे में राज्य की जनता के अधिकारों के मद्देनज़र विस्थापन से सम्बंधित मामलों को सुलझाना गठबंधन सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. 

लेकिन, सरकार इस दिशा में धैर्य पूर्वक गंभीर चिंतन-मंथन कर रही. सरकार तमाम समस्याओं का स्थाई हल निकाले हुए स्थानीयता की दिशा मज़बूती के साथ बढ़ रही है. तमाम परिस्थितियों बीच मूल जनता विपक्ष के उकसावे में ना आते हुए सरकार पर भरोसा रखें. सरकार राज्य की जनता की है और उसकी आकांक्षा व दुःख-दर्द राज्य की जनता के आकांक्षाओं व दुःख-दर्द से वह अलग नहीं है. जनता को पूर्व के अनुभवों से सीख लेना चाहिए और उकसावे में आकर विपक्ष के मंशे को बल नहीं देना चाहिए.     

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