भाजपा के नेताओं द्वारा पूरे मामले को बाहरी बनाम झारखंडी बनाने का प्रयास, जिससे झारखंड की राजनीति का दो फाड़ हो …सच ही लिखते हैं राष्ट्री कवि “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है”
झारखंड प्रदेश के भाजपा नेताओं के बयानों से यह सिद्ध हो रहा कि उन्हें क़ानून की डगर पर चलने वाली पुलिस नहीं बल्कि गले में सांप लटका कर रघु भजन करने वाली पुलिस चाहिए। जब कोई नेता अपनी नैतिकता को गिरवी रख देता है, तो उसकी रीढ़ की हड्डी निकाल ली जाती है। फिर वह केवल एक हाड़-मॉस का पुतला भर रह जाता है। फिर उसे न कुल का बोध होता है और न ही अपनी संस्कृति का ही भान रह जाता है। उसके आका जैसे नचाते हैं वह वैसे ही नाच दिखाने लगता है।
कुछ ऐसा ही हाल फिर से हाफ-पैंट पहने वाले माननीय बाबूलाल जी में देखने को मिल रहा है। यह अनायास नहीं हो सकता कि वह बार-बार सोशल मीडिया पर लाइव आकर खुद को निर्दोष व भीड़ तंत्र के लठैतों को आन्दोलनकारी करार दे रहे हैं। इसमें तनीक भी अचम्भा नहीं कि वह एक नेता से सीबीआई बन गए हैं। क्योंकि झारखंड पुलिस व उसके खुफिया तंत्र जिसे साजिश करार दे रही है उसे माननीय बाबूलाल जी बार-बार जन आक्रोश करार देने का असफल प्रयास कर रहे हैं। बीच-बीच में कभी यह भी कह देते हैं कि कुछ असामाजिक तत्व इस भीड़ में हो सकते हैं इससे इनकार नहीं।
भाजपा द्वारा मामले को बाहरी बनाम झारखंडी बनाने का प्रयास
यदि वह सीबीआई बन गए हैं तो बताएं कि सच क्या है। कौन है भैरव सिंह? क्या रिश्ता है उसका भाजपाइयों के साथ? बाबूलाल जिस प्रकार उग्रवादियों का पक्ष रख रहे है इससे न्याय तो कतई नहीं झलकता बल्कि वह पूरे मामले को बाहरी बनाम झारखंडी बनाने का प्रयास करते दीखते है। क्या उनकी मति मारी गयी है या उनके भीतर चेतना समाप्त हो गयी है। जब पुलिस मामले का अनुसंधान कर रही है तो अनुसंधान करने दें। बीच में उनका वकालत करना मामले के पीछे की सच्चाई को साफ़ दर्शा जाता है और साथ ही रघुवर दास के काफिले पर हुए हमले का सच भी।
बहरहाल, राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ऐसे समय में कितना प्रशांगिक हो जाता है :
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है…
राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर
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