अपनी गलतियों को छुपाने के लिए भाजपा हमेशा गैर भाजपा शाषित प्रदेशों को बनाती है फ़र्ज़ी निशाना

जहाँ एक आदिवासी मुख्यमंत्री पिछले सरकार की ख़ामियों को खत्म कर नई नियुक्ति नियमावली बना रहे हैं, नियुक्ति व्यवस्था तेज कर रहे तो भाजपाई इसे पचा नहीं पा रहे. और अपनी गलतियों को छिपाने के लिए #jharkhand_berojgar_diwas जैसे प्रोपोगेन्डा का सहारा ले रही है.

झारखंड में एक आदिवासी मुख्यमंत्री, जहाँ भाजपा की पिछली रघुवर सरकार की ख़ामियों व प्रवासी आधारित नीतियों को खत्म कर, नई नियुक्ति नियमावली बना रही है. नियुक्ति व्यवस्था तेज कर रही तो झारखंड के भाजपाई इसे पचा नहीं पा रहे. क्योंकि झूठ की बुनियाद पर खड़ी भाजपा की राजनीतिक इमारत को ढहढहा कर गिरने का खतरा उत्पन्न हो गया है. ऐसे में भाजपा-संघ के समक्ष भ्रम फैला कर झारखंडी युवाओं को बरगलाने के सिवा कोई ओर विकल्प शेष नहीं बचता है. 

मसलन, सिर्फ अपनी गलतियों को छुपाने के लिए भाजपा हमेशा गैर भाजपा शाषित प्रदेशों, खास कर झारखंड को, क्योंकि यहाँ एक आदिवासी मुख्यमंत्री फ़र्ज़ी निशाना बनाती है. इस बार भी झारखंड में वह ऐसा कुछ ही करते देखे जा रहे है. #jharkhand_berojgar_diwas जैसे हैसटेग भी इसी प्रोप्गेंडे का हिस्सा भर है.

मोदी सरकार नीतियों ने छात्रों-युवाओं के भविष्य पर भयानक कुठाराघात किया

देश की मोदी सरकार की छात्र-युवा विरोधी नीतियों ने छात्रों-युवाओं के भविष्य पर भयानक कुठाराघात किया. युवा अभी इससे उबरे भी नहीं थे कि कोरोना संक्रमण की पहली-दूसरी लहर के कुप्रबंधन ने युवाओं की कमर तोड़ दी है. वर्ग विभाजित समाज में मोदी नीतियों के अक्स तले जहाँ  संक्रमण शोषित वर्ग पर कहर ढाती रही वहीं शोषकों के लिए यह अवसर बन कर उभरा. एक-एक कर सरकारी नौकरियों में कटौती. सरकारी विभागों को औने-पौने दामों में पूँजीपतियों को सौपने. प्राइवेट सेक्टर में छँटनी-तालाबन्दी. श्रम कानूनों को तोड़-मरोड़ कर प्रभावहीन करने आदि का सिलसिला शुरू हुआ. 

नतीजतन, नौकरियों में रहे युवाओं ने अपनी नौकरी गंवाई. पहली लहर के दौरान लगभग 12 करोड़ युवाओं ने नौकरी गंवाई. जिनकी नौकरी बची भी, वह कम वेतन पर काम करने को मजबूर है. मोदी सरकार चुनाव-सरकार बनाने बिगाड़ने का खेल खेलती रही. और एक बार फिर छँटनी-तालाबन्दी ने करोड़ों युवा व श्रमिकों की नौकरियाँ निगल ली. राज्यों को उसके भरोसे छोड़ दिया गया. गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ केंद्र के भेद-भाव रवैये ने राज्यों की हालत खराब की. जिम्मेदारी लेने के बजाय मोदी सत्ता अपनी विफलताओं का ठीकरा गैर भाजपा शासित राज्यों के मत्थे मढने का खेल, गोदी मीडिया व आईटी सेल के माध्यम से खेलती रही.

17 सितंबर, मोदी के जन्म दिवस – #NationalUnemploymentDay व #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस ट्रेंड हुआ 

ज्ञात हो, देश व युवा संघ-भाजपा के लूट मंशे से अब अवगत हो चुके हैं. इसका उदाहरण हमें प्रधानमंत्री मोदी के जन्म दिवस के दिन देखने को मिला. जब गोदी मीडिया व भक्त 17 सितंबर, को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 70वें जन्मदिन के मौके पर, रात 12 बजे से ही #HappyBdayNaMo, #PrimeMinister #NarendraModiBirthday और #NarendraModi सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने के प्रयास में लगे थे. तो वहीं दूसरी तरफ देश के युवा वर्ग #NationalUnemploymentDay व #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस को ट्रेंड कर रहे थे. जो नमो सरकार के लिए किसी झटके से कम नहीं था.

#NationalUnemploymentDay ट्रेड करने की मुख्य वजहें  :

  1. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अप्रैल-जून तिमाही में देश की जीडीपी में 23.9 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की, जो पिछले 40 वर्षों में सबसे भारी गिरावट है.
  2. सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के आँकड़ों के अनुसार छह सितंबर में भारत की शहरी बेरोज़गारी दर 8.32 फ़ीसदी के स्तर पर चली गई.
  3. सेंटर फ़ॉर इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक़, लॉकडाउन के एक महीने में क़रीब 12 करोड़ लोगों ने काम से हाथ गंवा चुके हैं. अधिकतर असंगठित और ग्रामीण क्षेत्र से हैं.
  4. सीएमआईई के आकलन के मुताबिक़, वेतन पर काम करने वाले संगठित क्षेत्र में 1.9 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां लॉकडाउन के दौरान खोई हैं.
  5. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और एशियन डेवलपमेंट बैंक की एक अन्य रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 30 की उम्र के नीचे के क़रीब चालीस लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नौकरियाँ महामारी की वजह से गंवाई हैं. 15 से 24 साल के लोगों पर सबसे अधिक असर पड़ा है.

झारखंड भाजपा को 2 वर्ष व 8 वर्ष का अंतर क्यों नहीं पता  

ऐसे में झारखंड भाजपा द्वारा भाजपा आईटी सेल  झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के जन्म दिवस पर बेरोजगारी के नाम पर शोर मचाना, केवल बदले की भावना व तुष्टीकरण की राजनीति भर है. झारखंड के भाजपा नेताओं को यह तक ज्ञात नहीं है कि 17 सितम्बर का वाक्या, देश भर के युवाओं की एक विफल प्रधानमंत्री के 8 वर्ष के कार्यकाल में घोर अन्धकार में धकेलने की खीज भर थी. यह उनकी अभिव्यक्ति थी. 

हेमन्त सोरेन के कार्यकाल को अभी 2 वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं. उनका तमाम कार्यकाल कोरोना प्रबंधन में ही बीता. उन्होंने अपने मंत्री खोए. उनके मंत्री मौत से लड़कर वापस आये. उनके शासनकाल में एक भी मौत भूख से नहीं हुई. लॉकडाउन की अवधि में भी गरीबों को काम मिला. उनके कार्यकाल में जनकल्याण के मद्देनजर कई योजनाओं की शुरुआत हुई. वर्तमान में भी वह युवाओं के भविष्य को लेकर तेजी से कार्य कर रहे हैं. लेकिन, भाजपा व संघ विचारधारा को कहाँ इससे मतलब होता है. भाजपा को मतलब होता है तो केवल उन मुद्दों से जो उन्हें सत्ता तक पहुंचाए. ताकि उनका मनुवादी सोच पर आधारित लूट का साम्राज्य फैलता रहे. 

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