झारखण्ड : 21 सालों में करीब 16 साल भाजपा – आजसू सत्ता में रही, 1932 के खतियान पर स्थानीय नीति लाने का नहीं किया कोई प्रयास…
रांची : झारखण्ड की राजनीति में 1932 खतियान का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है. विपक्ष 1932 के खतियान के आधार पर हेमन्त सरकार से स्थानीय नीति लाने की मांग कर रहे हैं. यदि 1985 के आधार पर स्थानीयता परिभाषित करने वाली पार्टी 1932 की मांग करती है ती जाहिर है उनकी मांग में राजनीति छिपी है और सरकार को अस्थिर करना चाहती है. ज्ञात हो, राज्य गठन के 21 सालों में करीब 16 साल भाजपा-आजसू (आज का विपक्ष) सत्ता में रही है. लेकिन उनके द्वारा 1932 आधारित के खतियान पर स्थानीय नीति लाने के बजाय 1985 को आधार बनाया गया.
भाजपा-आजसू की सरकार ने 1985 के आधार पर स्थानीय नीति लाकर राज्य में बाहरियों के लिए रोजगार का द्वार जरूर खोल दिया. जिससे राज्य के मूलवासी-आदिवासियों को बड़ा नुकसान हुआ. यहीं कारण है कि मुख्यमंत्री यह तो मानते हैं कि 1932 का खतियान राज्य के आदिवासी-मूलवासी के अस्मिता की पहचान है. पर वे इस तरह की कोई भी नीति बनाने से पहले उच्च न्यायालय के निर्णयों का अध्ययन जरूर करना चाहते हैं.
मुख्यमंत्री नहीं चाहते, भाजपा की तरह उनकी सरकार से आदिवासी-मूलवासी छला महूसस करे.
झारखण्ड विधानसभा के बजट सत्र 2022-23 के दूसरे दिन 1932 के आधार पर स्थानीय नीति लाने के विपक्ष के सवाल पर सीएम हेमन्त सोरेन ने जोरदार हमला बोला. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आदिवासी-मूलवासी को लेकर गंभीर है. और विपक्ष की स्थानीयता के बहाने राजनीति लाभ का सच बताया. हेमन्त सोरेन ने कहा कि स्थानीय नीति लागू करने के मामले में सरकार गंभीर है.
पूर्व की रघुवर दास सरकार ने भी इसे परिभाषित भी किया था. लेकिन हाईकोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया. ऐसे में वर्तमान सरकार अब कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद ही निर्णय लेगी. दरअसल, मुख्यमंत्री के बयान संकेत दिए हैं कि वे नहीं चाहते कि राज्य के आदिवासी-मूलवासी के छल हो, जैसा पूर्ववर्ती सरकार में हुआ था. वह ऐसे स्थानीय नीति नहीं बनाना चाहते हैं, जो कोर्ट के दायरे में हो और राज्य की तमाम जनता को दीर्घकाल तक लाभ पहुंचाए.
1932 के वंशज ही झारखण्ड के असल निवासी
झारखण्ड गठन के बाद से ही इसकी मांग हो रही है. 1932 खतियान का मतलब है कि 1932 के वंशज ही झारखण्ड के असल निवासी माने जाएं. 1932 के सर्वे में जिसका नाम खतियान में चढ़ा हुआ है, उसके नाम का ही खतियान आज भी है.
भाजपा ने दो बार बनायी स्थानीय नीति, 2002 की नीति से पनपी हिंसा में हुई मौतें
सर्वविदित है कि राज्य गठन के बाद तत्कालीन भाजपा के सीएम बाबूलाल मरांडी सरकार में 2002 में राज्य की स्थानीयता को लेकर डोमिसाइल नीति लाया गया. हालांकि इसे लेकर राज्य में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. जगह-जगह हुए हिंसा में लोगों की मौत हुई. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जिसे कोर्ट ने अमान्य घोषित कर रद कर दिया. दूसरी बार भाजपा के ही रघुवर दास सरकार ने 2018 में राज्य की स्थानीयता नीति घोषित कर दी. इसमें 1985 के समय से राज्य में रहने वाले सभी लोगों को स्थानीय माना गया.
जेएमएम की सोच अलग, 1932 के आधार पर पार्टी की है मांग
भाजपा की सोच से अलग सत्तारूढ़ झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की हमेशा से 1932 के खतियान के आधार पर ही स्थानीय नीति लाने की मांग होती रही है. बी शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो हमेशा इसकी वकालत करते रहे हैं कि स्थानीय नीति का आधार 1932 का खतियान होगा. भाजपा के 1985 के स्थानीय नीति का कोई आधार नहीं है.