झारखण्ड के 1.36 लाख करोड़ रुपये के बकाया भुगतान का आश्वासन केंद्र ने कई मौकों पर दिया. लेकिन अब केन्द्रीय कोयला मंत्री बकाया अदाएगी से यूटर्न लेते दिख रहे. बाबूलाल जी फिर चुप.
रांची : देश के प्रधानसेवक पर आमतौर पर लोकतांत्रिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करने व झूठे बोल बोलने के आरोप लगते रहे हैं. ध्रूव राठी व अन्य नामचीन पत्रकारों के रिपोर्ट व ब्लॉग प्रधानसेवक के झूठ के पर्दाफास का सच लिए है. अब केन्द्रीय मंत्री भी उन्हीं की राह पकड़ चले हैं. अग्निपथ योजाना के मद्धेनजर देश इस सच से भी रूबरू हुआ कि प्रधानसेवक के कार्यप्रणाली के अक्स में केन्द्रीय मंत्रियों को उनके मंत्रालय का पता नहीं होता. उनके मंत्रालय पर पीएमओ का नियंत्रण अधिक होता है.
ज्ञात हो, झारखण्ड में केंद्र के कोयला कंपनियों का 1.36 लाख करोड़ रुपये बकाया है. यह बकाया जमीन अधिग्रहण, कोयला रॉयल्टी और कॉमन कॉज से सम्बंधित है. हेमन्त सरकार में लगातार केंद्र सरकार से इस बकाए के भुगतान की मांग होती रही है. सीएम हेमन्त सोरेन का कई पत्राचार व बैठकें इस सच का साक्ष्य लिए है. लेकिन केंद्र सरकार की सामंती नीतियां के अक्स में अब तक बकाए का भुगतान नहीं हुआ है, यही वर्तमान सच है. जिससे झारखण्ड में विकास का मार्ग अवरुद्ध हुआ है.
केंद्र सरकार के द्वारा हाल के वर्षों में कोयला क्षेत्र में कई नीतियों में पूंजीपतियों हित में बदलाव हुए हैं. जिसका कोयला कंपनियों के बकाए भुगतान पर सीधा असर पड़ा है. इसका दंश झारखण्ड जैसे गरीब व एससी, एसटी, पिछड़ा व गरीब बाहुल्य राज्य को भुगतना पड़ा है. पहले तो केंद्र ने कई मौकों पर भुगतान को लेकर आश्वासन दिए. लेकिन अब केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रलाद्ध जोशी के बयान से प्रतीत होता है कि केंद्र ने अब झारखण्ड के बकाया राशि को अदा ना करने का मूड बना लिया है.
केंद्री कोयला मंत्री पर झूठ बोलने और जनता को गुमराह करने का आरोप
झारखण्ड के कोयले की रॉयल्टी और कोल कंपनियों द्वारा अधिग्रहित जमीन के मुआवजे के भुगतान पर कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी अब सीएम हेमन्त के मांग को ही आधारहीन बता दिया है. और उन्होंने अपने बयान की पुष्टि के लिए कोई सबूत भी पेश नहीं की है. मसलन, केंद्रीय कोयला मंत्री के बयानों को लेकर झारखंडियों में आक्रोश देखा जा रहा है. वह उनपर पर झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगा रहे है. और उनसे माफी मांगने के साथ बकाया भुगतान करने की मांग कर रहे है.
ज्ञात हो, नीति आयोग की बैठक में सीएम हेमन्त सोरेन के द्वारा स्पष्ट कहा गया था कि केंद्र की कोयला कंपनियों के द्वारा अधिग्रहित जमीन का मुआवजा और कोयले की रॉयल्टी की राशि राज्य को नहीं दिया ज रहा है. कोल कंपनियों पर केवल मुआवजा राशि बकाया करीब 80 हजार करोड़ है जिसमें अब तक केवल 2532 करोड़ ही सरकार और रैयतों को दिए गए हैं. ऐसे में कोयला मंत्री को साक्ष्य के साथ बताना चाहिए कि क्या निति आयोग के समक्ष पेश आंकड़े झूठे हैं?
मसलन, झारखण्ड मुक्ति मोर्च के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्या का दोटूक कहना कि कोयला मंत्री झारखण्ड को भ्रम में डालने का काम न करें. यह इस राज्य का हक अधिकार का पैसा है. यहाँ के रैयतों ने अपने बाप-दादाओं की बहुमूल्य ज़मीने देश के विकास के लिए कष्टपूर्ण स्थिति में दी है. सिस्टम हमें भी पता है. नीति आयोग के सामने राज्य सरकार ने अपने बकाए को विस्तार से रखा है. इसलिए राज्य को सिस्टम समझाने के बजाय वह तत्काल राशि का भुगतान करें.