झारखण्ड : सीएम हेमन्त के नीतियों के आसरे ही झारखण्ड सामंती मकड़जाल को सिरे से सुलझा नारकीय जीवन से बाहर आ सकता है. इसलिए उसे अपने सीएम पर भरोसा रखना ही होगा.
रांची : झारखण्ड आन्दोलन के अक्स में राज्य के महापुरुषों का गरीब व भोले जनता को सुखमई जीवन देने के लिए बेमिसाल संघर्ष का एक गौरवशाली इतिहास है. जिसने यह भी साबित कि हर झारखंडी शांति और सौहार्दमई जीवन का पक्षधर है. यही इस राज्य की एक मात्र सांस्कृतिक, पारंपरिक, ऐतिहासिक व सामाजिक पहचान भी है. और हर मूल झारखंडी का अपने राज्य की इस महान विशेषता पर गर्व होना स्वाभाविक है. जो कई मौकों पर स्पष्ट तौर पर दिखता भी रहा है.
झारखण्ड में पूर्व के सामंती सत्ताओं द्वारा कई सामंती मकड़जाल बुने गए
झारखण्ड गठन के बाद यहाँ स्थापित सामन्ती सत्तातियों के नीतियों का आखिरी सच राज्य के लोगों का जीवन नारकीय बनाने जा जुड़ा. सामन्तवाद की ज़मीन लूट मंशा को कानूनी जामा पहनाने के अक्स में सीएनटी-एसपीटी एक्ट पर हमला, विस्थापन, राज्य को दो भाग में विभाजित करना, लैंड बैंक, झारखण्ड मोमेंटम, आदिवासियों को नक्सल करार देना. सरकारी पट्टा निरस्त करना, ग्रामसभा के अस्तिव का दरकिनार, 1985 स्थानीय नीति जैसे कई सामंती मकड़जाल बुने गए.
आदिवासी, दलित, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की एक मात्र आशा शिक्षा को ध्वस्त किया गया. स्कूलों को मर्जर के आड़ में बंद किया गया. यहाँ तक कि आरक्षित व गरीब छात्रों के स्कॉलरशिप तक को रोका गया. राज्य में उद्योगिक विकास ठप किया गया. लघु, छोटे व मझौले उद्योग को सिरे से ख़ारिज किया गया और अनुबंध नियुक्तियों की शुरुआत की गई. ताकि आरक्षित वर्गों को आरक्षण व इतिहास भान के लाभ को रोका जा सके. पिछड़ों के आरक्षण को पूरी तरह ख़ारिज ही कर दिया गया.
झारखण्ड को नारकीय परिस्थिति से बाहर निकालने को जूझते सीएम हेमन्त
जिसके अक्स में पलायन, मानव तस्करी, बाहरी वर्चस्व, बेरोजगारी, गरीबी, महिला उत्पीड़न, खनीज लूट, शोषण, कुपोषण, सरकारी संस्थानों को लचर होना, खाली खजाना जैसी त्रासदी झारखण्ड की नई पहचान बनी. कमोवेश यही स्थिति पूरे देश की हो चली है. लेकिन, तमाम त्रासदिय परिस्थितियों के बीच बतौर सीएम, हेमन्त सोरेन झारखण्ड को उसके अटल सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक पहचान के साथ नारकीय परिस्थिति से बाहर निकालने के दिशा में जूझते दिखे हैं.
ज्ञात हो, सीएम हेमन्त ने राज्य की जनता का हाथ न कोरोना काल में छोड़ा और ना ही अब छोड़ा है. सीएम की कुशलता ठोस विकल्प के साथ राज्य में स्थापित तमाम मकड़ जाल को उसके शुरुआती सिरे से सुलझाने का सच लिए है. जिसके अक्स में पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी जैसे अनुबंध कर्मियों का ठोस हल निकला है. राज्य के कर्मचारियों, जेपीएसी, आरक्षित वर्गों के ऋण, महिला सशक्तिकरण, खेल-खिलाड़ी, किसान-किसानी व नक्सल जैसे चिर समस्याओं का हल निकल रहा है.
हेमन्त के शासन में शिक्षा, चिकित्सा समेते सभी क्षेत्रों में हो रहा इमानदार कार्य
सीएम हेमन्त के शासन में शिक्षा, चिकित्सा समेते सभी क्षेत्रों में इमानदार कार्य हो रहा है. स्कूल ऑफ़ एक्सीलेंस, सभी मार्गों पर एम्बुलेंस की तैनाती, बेटियों को मुफ्त शिक्षा देने की कवायद, स्कालरशिप, कई प्रकार के भत्ता, सर्वजन पेंशन, किशान पाठशाला, किसान ऋण माफ़ी, सरकार आपके द्वार, रिक्त पदों पर नियुक्तियां इसके स्पष्ट उदाहरण हो सकते हैं. साथ ही 1932 स्थानीय निति, आरक्षण बढोतरी बिल, सरना धर्म कोड बिल, मोबलिंचिंग निवारण क़ानून बिल, नई खेल व उद्योग नीति भी इसी कड़ी के ही उदाहरण भर हैं.
बहरहाल, कहते हैं कि मोटे तवे में रोटी मीठी बनती है वह भी बिना जले. चूँकि झारखण्ड में कई बड़ी जन समस्याएं हैं. बिना प्राथमिकता तय किये इसका समाधान संभव नहीं. सीएम का चुनौतियों के बीच जन व्यवस्था को बिना हिलाए समस्या समाधान का प्रयास काबिले तारीफ है. ऐसे नाजुक दौर में झारखण्ड को समझना ही होगा कि चलता पग मंजिल पर अवश्य पहुँचता है. और चलते पग को अकबकाहट में रोकना मंजिल से विमुख होना है. कार्यों को देखते हुए कहा जा सकता है कि जनता को अपने सीएम पर भरोसा रखना ही होगा.