भाजपा का नामकरण या नाम परिवर्तन की राजनीति- देश को असल मुद्दों से भटकना

रांची : केंद्र की भाजपा सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी व लेजेंड मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखने की घोषणा की है. इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय हॉकी में मेजर ध्यानचंद सबसे प्रतिष्ठित नाम है और उनके नाम पर खेल पुरस्कार की घोषणा पर किसी को भी आपत्ति होनी भी नहीं चाहिए. वैसे भी नेताओं के नाम पर स्टेडियम, पार्क, चौराहे, प्रेक्षागृह वितृष्णा ज़्यादा जगाते हैं. और देश का सर्वोच्च खेल सम्मान देश के सबसे बड़े खिलाड़ी के नाम पर होना अच्छी शुरुआत हो सकती है.

लेकिन, जिस मंशे के तहत राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखा गया, उसमें भाजपा विचारधारा की बदनियति झलकती है. क्या यह नहीं हो सकता था कि मेजर ध्यानचंद के नाम पर एक और बड़े खेल पुरस्कारों की घोषणा की जाती? क्योंकि, इत्तिफ़ाक़न हालिया दिनों में दो स्टेडियम दो भाजपा नेताओं के नाम समर्पित किया जाना स्पष्ट रूप से साबित करता है. अहमदाबाद का क्रिकेट स्टेडियम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर और फिरोजशाह कोटला स्टेडियम अरुण जेटली के नाम कर किया गया है.

फिरोजशाह कोटला स्टेडियम अरुण जेटली के नाम करने पर बिशन सिंह बेदी ने किया था तीखा विरोध

ज्ञात हो, अरुण जेटली के नामकरण पर देश के महानतम क्रिकेटरों में से एक- बिशन सिंह बेदी ने इसका तीखा विरोध किया था. लेकिन, इतने खुले विरोध पर भी सरकार द्वारा कोई जवाब तक न देना क्या इसी मंशे को साबित नहीं करती. अगर कांग्रेसमुक्त भारत बनाने का मतलब तमाम विपक्षी नेताओं की जगह बीजेपी के नेताओं की मूर्तियां व नामपट्ट लगाना है तो यह भी एक तरह का समान पद्धित है. बहरहाल,देश में गंभीरता से विचार होना चाहिए कि किसी को याद रखने का, सम्मानित करने का, तरीक़ा क्या हो. 

संदेह नहीं कि भाजपा ने शहरों, सड़कों और अब स्टेडियम का नाम बदलने में जो उत्साह दिखाया है. उसे केवल देश को वास्तविक मुद्दों से भटकाने का प्रयास भर मान जा सकता है. दरअसल, भाजपा खुद को देश की सबसे बड़ी देशभक्त पार्टी मानती है. नामकरण या नाम परिवर्तन या मूर्ति और फोटो लगाने-हटाने के पीछे बीजेपी की दृष्टि सांप्रदायिक संकीर्णता के अलावा राजनीतिक प्रतिशोध का एक प्रारूप है.

मसलन, भाजपा को मतलब ध्यानचंद को सम्मानित करने से अधिक राजीव गांधी को हटाने भर की  है. भाजपा-संघ के लिए प्रतीकात्मक लड़ाइयां हमेशा अहम होती हैं. क्योंकि, अपनी इस राजनीतिक पद्धति के अक्स तले वह समाज में विभेद कर पाता है. हॉकी या हो या अन्य कोई खेल, नीतियों के तहत बुनियादी सुविधाओं का इंतज़ाम करना भाजपा के लिए मुश्किल काम है, एक पुरस्कार किसी खिलाड़ी के नाम करके खेलप्रेमी बन जाना उसके लिए आसान काम है.

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