जाति जनगणना-चित्पावन कमंडल से बिहार ने निकाले मंडल के आंकड़े 

बिहार जाति जनगणना से पता चला कि राज्य की आबादी का 27.1% पिछड़ा. 36% ईबीसी. 19.7% अनुसूचित जाति. 1.7% अनुसूचित जनजाति हैं. यह देश की भी तस्वीर हो सकती है.

रांची : भारत बुद्ध जैसे महाज्ञानी की धरती है. और उसी बुद्ध देव को अपना प्रिय मानने वाले महान लोकतांत्रिक जम्बुद्वीप के सम्राट असोक की भी धरती है. वहीँ विश्व को बुद्ध जैसा महागुरु देने वाला यह देश मनु संहिता के कोढ़ के अक्स में जाति प्रधान देश होने का सच लिए अंग्रेजों की गुलामी तक का इतिहास ढो रहा है. तो वहीँ समाज के मानसिक एजुटता के अक्स में इस देश को अपनी आज़ादी पर भी गर्व है. वर्तमान में यह एक देश लोकतांत्रिक है जो मनुवाद मानसिकता से लड़ने का सच लिए है.

जाति जनगणना-चित्पावन कमंडल से बिहार ने निकाले मंडल के आंकड़े 

मनुसंहिता के अक्स में 1000 वर्षों से यह देश जाति व्यवस्था की त्रासदी को जी रहा है. देश अपने साहित्य के इतिहास को ही मूल इतिहास मान बैठा है. उंच-नीच से केवल समाज ही नहीं साहित्य से लेकर शब्दकोष तक ग्रसित हैं. नतीजतन, यह देश अपने लोकतांत्रिक शाखा-प्रशाखा जैसे राजनीति, सरकारी संस्थान, सरकारी अनुदान पर खड़े प्राइवेट संस्थान में केवल 5% मनुवादी विचारधारा की पैंठ तले 85% आबादी की अशिक्षा और भागीदारीरहित त्रासदी के सच को जी रहा है. 

आरएसएस-मोदी सत्ता की तानाशाही कार्यप्रणाली में मनुवाद की पराकाष्ठा 

वर्तमान मोदी सत्ता के कार्यप्रणाली में आदिवासी, दलित, ओबीसी, महिला त्रासदी और अल्पसंख्यक तक के त्रासदीय मुद्दों में सदन में केवल निशिकांत दुबे जैसे मनुवादी नेता का बोलने का सच लिए है. संवैधानिक पदों एवं भारतीय संस्थानों में केवल मनुवादी मानसिकता की उपस्थिति में भारत का 85% बहुसंख्यक मोदी सत्ता के कॉर्पोरेट के लूट के अक्स में महंगाई, बेरोजगारी, सांप्रदायिक तनाव आर्थिक-सामाजिक विसंगतियों के सच को जी रहा है. 

ऐसे में जाति जनगणना ही एक मात्र विकल्प है जो देश को वास्तविक स्थिति की जानकारी दे सकता है. और जनता के दृष्टिकोण से देश को गढ़ सकता है, विकास कर सकता है. लेकिन देश में आरएसएस-मोदी सत्ता का यह भी सच उभरा कि जाति जनगणना के नाम से ही उसकी साँसे फूल जाती है. वह जाति जनगणना के बिलकुल विरुद्ध है. जिसका ताजा उदाहरण नितीश के नेतृत्व में बिहार राज्य में होने वाले जाति जनगणना कार्यक्रम को रोकने में उसकी सक्रियता है. 

जाति जनगणना की जरुरत जाति व्यवस्था का पोषण नहीं बल्कि खात्मे में कारगर 

भारत के सामाजिक आर्थिक असमानता के प्रकटीकरण में स्पष्ट हो चला है कि अनुसूचित जातियों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति सवर्ण समुदायों से बेहद निम्न है. देश में इनकी सामाजिक आर्थिक असमानता पराकाष्ठा पर है. ऐसे में भारत उत्पन्न सामाजिक अनयाय, सुरक्षा और आर्थिक असमानता को व्यवस्थित करने के लिए जाति जनगणना अत्यंत आवश्यक है. इससे सरकार को जातियों के बीच सामाजिक-आर्थिक असमानताएं की गहराई का पता चलेगा. और वह प्रभावी उपाय कर सकेगी.

इण्डिया गठबन्धन के अंग बिहार सरकार संपन्न कराया जाति जनगणना 

विपक्ष के रूप उपस्थित इण्डिया गठबंधन के अंग बिहार सरकार ने राज्य में जाति जनगणना कराने में ऐतिहासिक सफलता पाई है. कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने तो इसे देश का एक्सरे करार दिया है. और हेमन्त सोरेन जैसे आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक नेता इस विचार के साथ खड़े हैं. मसलन, जाति जनगणना का उद्देश्य जाति व्यवस्था को समाप्त करना है, न कि बढ़ावा देना. चूँकि जाति भेदभाव के नीव में आर्थिक लूट ही सर्वोपरी है. मसलन, आर्थिक सबलता उंच-नीच को समाज से दूर करेगा.

बिहार का जाति जनगणना देश के लिए महत्वपूर्ण क्यों? 

नितीश-लालू के नेतृत्व में संपन्न बिहार का जाति जनगणना देश में विभिन्न जातियों के आंकड़े का अनुमान प्रस्तुत करता है. और केन्द्रीय सत्ता की व्यवस्था के मद्देनज़र महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान करता है. इस जनगणना से पता चला है कि बिहार की आबादी का 27.1% पिछड़ा वर्ग है. 36% अति पिछड़ा (ईबीसी) वर्ग है. 19.7% अनुसूचित जाति हैं. 1.7% अनुसूचित जनजाति हैं. यह जानकारी सरकारों को राजनीति-संस्थानिक भागीदारी समेत लक्षित विकास कार्यक्रमों को विकसित करने में मदद करेगी.

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