झारखण्ड: हेमन्त सरकार के सरना/आदिवासी धर्म कोड और SC, ST व OBC आरक्षण विधेयक पर झारखण्डी जनता को गुमराह कर सुदेश महतो का राजनीतिक रोटी सेंकने का प्रयास.
दोनों प्रस्तावों पर झारखण्ड की राजनीति पार्टियों की वर्तमान स्थिति
- झारखण्ड हित के कई महत्वपूर्ण विधेयकों को धरातल पर उतारने के लिए हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में झामुमो, कांग्रेस और राजद सामूहिक रूप से केंद्र सरकार से लड़ रही लड़ाई.
- आजसू का गठबंधन केंद्र की उसी सरकार से है जो झारखण्ड के अधिकारों पर कुंडली मार कर बैठने का सच लिए है. आजसू का इन विधेयकों को लेकर कभी अपने सहयोगी बीजेपी पर प्रेशर नहीं बनाने का सच आज तक लिए है. ऐसे में बीजेपी के चुप्पी के अक्स में आजसू सुप्रीमों का इन विधेयों को लेकर बयान झारखण्डी जनता को गुमराह करने करने का प्रयास नहीं तो और क्या? ज्ञात हो, आजसू ने यही राजनीति पद्धति 1985 के वक्त भी अपने था.
- क्या वक्त आ गया है कि आमित महतो व जयराम महतो सरीखे उभरते महतो युवा नेताओं एका बना स्वर्गीय विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो, जगरनाथ महतो जैसे महान नेताओं की नीतियों के आसरे महतो राजनीति को नई लोकतांत्रिक पहचान दें?
2024 चुनाव में क्या हेमन्त के जन सवालों से भाजपा-आजसू मुश्किल में?
रांची : झारखण्ड में बीजेपी के सहयोगी आजसू पार्टी का अधिवेशन संपन्न हुआ. जिसमें आदिवासी /सरना धर्म कोड और एसटी-एससी-ओबीसी आरक्षण बढोतरी प्रस्ताव पास किए गए. यह वह प्रस्ताव हैं जिसे हेमन्त सरकार के अगुआई में झारखण्ड विधानसभा के विशेष सत्र में पारित कर केंद्र की बीजेपी को भेजा गया था. लेकिन तमाम प्रकरण में आजसू का सच झारखण्ड हित में बीजेपी पर प्रेशर बनाने के बजाय गठबंधन धर्म या राजनीतिक मैत्री निभाने का लिए हुए है.
ठीक आम चुनाव के दौर में आजसू का इन प्रस्तावों को अधिवेशन में पास करना झारखण्ड को अचंभित करने वाला है. क्योंकि कायदे से आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो को हेमन्त सरकार में पारित जन प्रस्तावों का समर्थन करने का एलान करना चाहिए था और अपने सहयोगी केंद्र सरकार से दो टुक सवाल पूछना चाहिए था. लेकिन उनका ऐसा ना करना 1985 की भांति हेमन्त सरकार के अथक प्रयास को मौकापरस्त राजनीति के आसरे हड़पने का कवायद प्रतीत होता है.
नवंबर 2021 में ही पास हुआ था सरना धर्म कोड, केंद्र आज तक खामोश
भाजपा और आजसू पार्टी की सत्ता में कभी सरना धर्म कोड और एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण बढोतरी मांग को लेकर पहल नहीं हुई. यही नहीं एनडीए सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 27% से घटकर 14% कर दिया. यह तो मौजूदा सीएम हेमन्त सोरेन की संवेदशीलता है कि 2019 में सत्ता में आने के बाद वे इन प्रस्ताव को विधानसभा से पारित करा केंद्र को भेजे. लेकिन, केन्द्रीय-प्रदेश बीजेपी की चुप्पी के विकट दौर में भी आजसू का सच गठबंधन धर्म निभाने का ही रहा है.
ज्ञात हो झारखण्ड हित में सरना धर्म कोड और एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण बढ़ाने को लेकर सीएम हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद राज्य में केन्द्रीय चुनौतियों के बीच एक लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें आजसू सुप्रीमों का झारखण्ड हित में कोई विशेष प्रयास नहीं दिखा है. मसलन, तमाम परिस्थितियों के बीच आजसू पार्टी के अधिवेशन में इन प्रस्तावों को पास होना जनता को गुमराह कर राजनीतिक रोटी सकने का प्रयास नहीं और क्या हो सकता है?
आमित महतो व जयराम महतो सरीखे उभरते नेताओं को एका बना महतो राजनीति को अपने हाथ में लेना चाहिए
तमाम परिस्थितियों के मद्देनजर झारखण्ड की आजसू पार्टी झारखण्ड हित की लड़ाई की जगह झारखण्ड हित से मौकापरस्ती करती प्रतीत होती है. जिससे झारखण्ड के महतो समाज के महान महापुरुषों के अमर गाथा धूमिल हो रही है. जो झारखण्ड के आन-बाण शान के लिए कतई शुभ नहीं है. ऐसे में आमित महतो व जयराम महतो सरीखे उभरते महतो युवा नेताओं को एका बना स्वर्गीय विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो, जगरनाथ महतो जैसे महान नेताओं की लेगेसी के आसरे महतो समाज की महान राजनीति को अपने हाथ में ले लेना चाहिए.
2024 आम चुनाव में हेमन्त सोरेन के झारखण्ड हित सावल और प्रयास रहेगा हावी
आजसू पार्टी के अधिवेशन में पारित प्रस्ताव पूरी तरह से 2024 के चुनाव को लेकर केंद्रित है. जिसने यह संकेत दे दिए हैं कि हेमन्त सरकार के द्वारा उठाये गए झारखण्ड के सवाल और प्रयास ही प्रभावी मुद्दा और सवाल बन गूंजेंगे. वहीं, अस्त काल में भाजपा अपने मंचों से वनवासी बाबूलाल मरांडी जी का चोला ओढ़ संकल्प यात्रा के दौरान फिर जनता से तरह-तरह के वादे करना भी यही संकेत देते दिख रहे हैं.
लेकिन, तमाम परिस्थितियों का अंतिम सच यही है कि सीएम हेमन्त सोरेन के प्रयासों ने झारखण्ड के मुद्दे और सवालों केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है. जिसके अक्स में आजसू-बीजेपी के द्वारा बेसब्री से पिछले दरवाजे खोजे जा रहे हैं. क्योकि 2024 के जनता पंचायत में हेमन्त सरकार के जन कार्य तो उनका कवच बनेगा लेकिन, आजसू-बीजेपी अपने मौकापरस्त राजनीति को कैसे ढक-तोप पायेंगे. मसलन, आजसू अधिवेशन में लिया गया निर्णय जन सवालों से बचने का प्रयास भर है.