बेरोजगार झारखंडी छात्र-छात्राओं के दर्द से हैं वाकिफ मुख्यमंत्री सोरेन, सरकार जल्द निकालेगी नियुक्तियां

18 वर्षों से भाजपा सत्ता में विवादित रही है जेपीएसएसी और जेएसएससी – हेमंत सरकार पर अब टिकी है लाखों छात्र-छात्राओं की उम्मीद

रांची। झारखंड राज्य को स्तीत्व में आये करीब 20 वर्ष होने को है। इन 20 वर्षों में भाजपा की सत्ता राज्य में लगभग 18 वर्षों की रही है। लेकिन, यह शर्म व आश्चर्य की बात है कि झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) और झारखंड कर्मचारी आयोग (जेएसएससी) जैसी संस्थाएं अबतक विवादित ही रही है। 

विवादों के मायने इससे भी समझा जा सकता है कि 18 सालों में जेपीएससी द्वारा केवल 5 सिविल सेवा परीक्षा और जेएसएससी द्वारा महज 2 परीक्षा ही लिया जा सका है। इसके बावजूद भी सभी के परिणाम विवादों में घिरी ही रही। जिससे न केवल इन संस्थानों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए बल्कि झारखंडी छात्र-छात्राओं के मन में आक्रोश को भी जन्म दिया है। 

झारखंड के विधानसभा चुनाव के दौरान कई दफा छात्रों ने हेमंत सोरेन से अपना यह दर्द बयान कर चुके हैं। चुनाव के दौरान हेमंत ने कई मंचों से बार-बार कहा था कि जेएमएम सत्ता में आयी, तो छात्रों की इस समस्या का निदान ज़रूर करेंगे। हालांकि, हेमंत के सत्ता में आते ही राज्य को कोरोना का दंश झेलना पड़ा है। लेकिन, फिर भी हेमंत छात्रों के दर्द नहीं भूले। शायद यही वजह रही है कि मुख्यमंत्री रोज़गार के मामले में सक्रीयता से कार्य करते दिखते हैं।

भविष्य में विवादित न रहे आयोग की परीक्षाएं, ध्यान में रख कर निकाली जाएगी नियुक्तियां : हेमंत 

छात्र-छात्राओं

चुनाव के पहले हो या सत्ता में आने के बाद, कमोवेश हर वक्त सीएम सोरेन की कार्यशैली ने उनके भीतर लाखों बेरोजगार आदिवासी-मूलवासी युवाओं की चिंता दर्शायी है। दो दिन पहले ही उनका बयान आया जिसमे उनके द्वारा कहा गया कि सरकार रोजगार की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ रही है।

उस बयान में यह भी सत्य उजागर हुए कि पिछले कई सालों से आयोगों की परीक्षाएं काफी विवादित रही है। कमोवेश अब तक ली गयी तमाम परीक्षाएं विवादित ही रही है। वर्तमान सरकार यह नहीं चाहती कि भविष्य में भी यह स्थिति यथावत रहे। इसलिए सोच-समझ व ख़ामियों का आकलन कर ही सरकार इस दिशा में कदम बढ़ाएगी।

आरक्षण संबंधित मुद्दे पर भी है सरकार गंभीर

हेमंत सरकार ने माना कि आयोग द्वारा ली गयी तमाम परीक्षाओं के विवादित होने का एक मुख्य कारण आक्षरण भी रहा है। परीक्षाओं में बैठने वाले आदिवासी, दलित व ओबीसी अभ्यर्थियों की शिकायत अमूमन हर बार परीक्षा प्रणाली में आरक्षण के प्रावधानों को अनदेखी करने की रही है। 

हेमंत की सरकार बनने के बाद मार्च माह में, 7वीं, 8वीं और 9वीं जेपीएसएसी परीक्षा के लिए जो विज्ञापन निकाले गए, उसमें भी आरक्षण का ही पेंच आड़े आया। हालांकि, मुख्यमंत्री के सख्त तेवर के कारण आयोग द्वारा विज्ञापन वापस ले लिया गया। 

इस समस्या के निदान हेतु हेमंत सरकार द्वारा एक कमिटी का गठन किया गया है। जो विवाद के कारणों पर गौर कर रिपोर्ट तैयार करेगी। जिससे भविष्य में परीक्षा में उत्पन होने वाले विवाद पहले ही सुलझाया जा सकेगा। दरअसल, सीएम सोरेन की मंशा यह भी है कि भविष्य में होने वाली किसी भी परीक्षा में न बहुजनों के आरक्षण हक को हनन हो और न झारखंड के गरीब छात्र-छात्राओं के अधिकारों का।

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