झारखण्ड : महतो समाज को समीक्षा कर उस विभीषण का पाता लगाना होगा जिसके आसरे सामंतवाद उसके विधायक-नेता को समाप्त कर रहा है. यदि वह सक्रीय नहीं हुआ तो उसकी स्थिति लोजपा व पासवान समाज सरीखे हो सकता है.
रांची : बीजेपी जैसे राजनीतिक दल के साथ जिस किसी क्षेत्रीय पार्टी ने गठबंधन किया उसकी दयनीय स्थिति का कडवा सच देखने को मिला है. लेकिन, यदि बीजेपी से गठबंधन करने वाले दल का शीर्ष नेतृत्व बहुजन समाज से सम्बन्ध रखता हो तो उसकी और बुरी स्थिति देखी गयी. उदाहरण के तौर पर बिहार में सबसे बुरी स्थिति लोजपा दल की हुई है. वर्तमान में पार्टी की राजनीतिक हैसिय तो समाप्त हुई ही है, पासवान समाज की सक्रीय राजनीति भी हासिये पर जाने का सच सामने है.
ऐसी ही स्थिति झारखण्ड राज्य में भी बीजेपी-आजसू गठबंधन में भी देखी जा रही है. यहाँ न केवल राज्य की राजनीति में पैठ रखने वाली आजसू न्यूनतम दायरा में सिमटी, महतो समाज के अमित महतो व ममता देवी जैसे दो प्रखर विधायक को खोने का सच भी सामने है. सूक्षमता से देखने पर प्रतीत होता है कि यादव समाज के भांति महतो समाज को भी बहुजन समाज से खंडित व पृथक करने के काले षड्यंत्र का संकेत स्पष्ट रूप से मिल रहा है.
महतो समाज को समीक्षा कर अपने सामाजिक टोकरी सड़े सेव को बाहर फैकना होगा
ज्ञात हो, मंत्री जगरनाथ महतो का सच राज्य में अबतक के सबसे सफल शिक्षा मंत्री के रूप में सामने है. पारा शिक्षक व आंगनबाडी दीदियों की समस्या निराकरण में इनकी अहम भूमिका रही है. साथ ही हेमन्त शासन में मोडल स्कूल की परिकल्पना में भी इनकी भूमिका बिनोद बिहारी महतो, दिशोम गुरु शिबू सोरेन, निर्मल महतो जैसे महान नेताओं की लिगेसी को आगे बढ़ाने में स्पष्ट दिखती है. लेकिन, आज इन्हें भी बहुजन नेता लालू प्रसाद यादव के भांति गलत व अनपढ़ बताने का प्रयास हो रहा है.
ऐसे में समय रहते महतो समाज के बुद्धिजीवियों व युवाओं के लिए आवश्यक हो जाता है कि वह तमाम वस्तुस्थिति की विस्तारित समीक्षा करे और अपने सामाजिक टोकरी से सड़े सेव को बाहर करे. वह उस विभीषण का पाता लगाए जिसके मदद से सामंतवाद उसके विधायक-नेता को आसानी अपना ग्रास बना रहा है. यदि महतो समाज इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती है तो उसकी स्थिति लोजपा दल व पासवान समाज सरीखे होने से नहीं रोका जा सकेगा.