आरक्षण में क्या और क्यों सुधार चाहती है सुप्रीम कोर्ट ?

आरक्षण में किसी भी तरह के सुधार से पहले सबसे बड़ा सवाल कि क्या आरक्षण को पूर्णरूपेण लागू किया गया है? क्या आरक्षण के कोटे को पूरी तरह से भरा गया है? सुप्रीम कोर्ट को पहले इस बात पर विचार करना चाहिए। लेकिन भारत में न्यायिक सक्रियता जिस तरह से बहुजनों के विरोध में दिखाई जाती है, शायद उस के पक्ष में दिखाया जाता तो भारत की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और न्यायिक तस्वीर कुछ अलग होती।

भारत में जब अंग्रेज शासन कर रहे थे तो उन्होंने एक खास वर्ग को न्यायाधीश बनाने से इसलिए इनकार कर दिया था कि उनके अंदर न्यायिक चरित्र नहीं होता। वह कभी न्याय नहीं कर सकते। वह केवल और केवल आपने हित और स्वार्थ के लिए कुछ करते हैं। इसलिए जब तक अंग्रेज रहे न्यायाधीश की कुर्सी पर वैसे लोगों को कम ही मौका मिला।

4 न्यायाधीशों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक तरीके से ना चलने की बात उठाना 

आज़ादी से अब तक न्यायालय में कितनी बार इसका उदाहरण भी सामने आया है -जैसे जस्टिस करनन को न्यायाधीशों को चिट्ठी लिखने पर उल्टा 6 महीने के सजा सुनाने जैसे न्यायालय का दोहरा चरित्र सामने आया। पूना, 4 न्यायाधीशों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक तरीके से ना चलने की बात उठाकर उसी का परिचय दिया गया। 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण के अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से घुटनों पर चलती नजर आई उसे भी एक शर्मनाक रवैया ही कहा जाएगा। और अब सुप्रीम कोर्ट का एक बयान आया है कि आरक्षण में सुधार के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग के अंदर ही उप वर्ग बनाकर आरक्षण दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट 16 साल पुराने अपने ही फैसले को गलत साबित करेगी 

मतलब सुप्रीम कोर्ट को अपने ही 16 साल पुराने फैसले पर विचार कर उसे बदलने का फैसला लेगी, जिसमे सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने वर्ष 2004 में यह फैसला सुनाया था कि राज्यों को किसी आरक्षित वर्ग के अंदर उप वर्ग बनाकर आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। अब उसी मामले को लेकर 7 सदस्य पीठ बनाकर अपने ही फैसले के पलटने की कवायद की जा रही है।

पंजाब सरकार 2004 में एक उप वर्ग बनाकर वाल्मीकि और मज़हबी सिक्खों को आरक्षण में पहली प्राथमिकता देनी चाहती थी, तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण वह कर पाने में नाकाम रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट ही कह रही है कि अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण के भीतर जातियों की प्राथमिकता तय कर उन्हें अलग वर्ग बनाकर आरक्षण दिया जाए। 

अनुसूचित जाति और जनजाति समेत तमाम बहुजनों के लिए खतरे की घंटी 

लेकिन यह पहल पूरे अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यदि समय रहते इसका विरोध नहीं हुआ तो यहां के अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के जो लोग आरक्षण की मदद से आगे बढ़े हैं और आज राजनीतिक शक्ति को हासिल करने की ओर अग्रसर है। उनके गति पर विराम लग जायेगा। साथ ही समाज के दो धड़े हो जायेंगे। जो समाज में टकराव उत्पन करेगा। जिसका राजनैतिक लाभ भाजपा को मिलेगा। 

मसलन, इस संबंध में मनुवादी सरकार की सक्रियता को देखते हुए तमाम बहुजन वर्ग को समय रहते चेत जाना चाहिए। और उनके साथ खेले जा रहे खेल समाज के हर वर्ग तक पहुँचाना चाहिए। ताकि सरकार के इस कदम के विरुद्ध एक आन्दोलन खड़ा हो सके अन्यथा परिणाम घातक होंगे। पहले ही यह सरकार देश के सभी सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में बेचकर आरक्षण को लगभग समाप्त ही कर दिया है। और जो कुछ बचा है उसे भी पिछले दरवाज़े से समाप्त करने के लिए दाव चल चुकी  है। ।।बिद्रोही।।

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