आखिर केन्द्रीय भाजपा सत्ता को झारखण्ड जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्य से इतनी चिढ़ क्यों ?

देशभर के सौ चयनित पर्यटन स्थलों में झारखण्ड जैसे वनों व झरनों से आछान्दित राज्य के एक भी पर्यटन स्थल को क्यों नहीं मिली है जगह – फिर भी झारखण्ड भाजपा के नेता, विधायक सांसद चुप!

झारखण्ड/रांची : केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा देश भर के राज्यों से 100 पर्यटन स्थल का चयन किया गया हैं. इन पर्यटन स्थलों पर देश के विभिन्न राज्यों में स्थित विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी भ्रमण करेंगे. विद्यार्थी एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत एक दूसरे की संस्कृति को जानेंगे-समझेंगे. इन पर्यटन स्थलों की सूची में पड़ोसी राज्य बिहार के पांच पर्यटन स्थल है. इनमें बोधगया, नालंदा, वैशाली, राजगीर व सासाराम शामिल है. 

बिहार, छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल शामिल, झारखंड को छोड़ा

इसके अलावा असम के काजीरंगा नेशनल पार्क, मानस वाइल्ड लाइफ, सिलचर, डिब्रूगढ़, छत्तीसगढ़ के रायपुर सहित देशभर के पर्यटन स्थल शामिल है. परन्तु केंद्र की राजनीति के अक्स में दुर्भाग्य यह है कि इन 100 पर्यटन स्थलों में झारखंड का एक भी पर्यटन स्थल को शामिल नहीं किया गया है. यह जानते हुए भी कि झारखंड में एक से बढ़कर एक पर्यटन स्थल मौजूद हैं. और यह झारखण्ड खबर का कथन नहीं बल्कि पूर्व सीएम रघुवर दास का कहना था.

फिर भी झारखण्ड राज्य के पर्यटन स्थलों को शामिल नहीं किया जाना दर्शाता है कि केंद्र की भाजपा सरकार को झारखंड से कितनी खीज है. चूँकि राज्य में भाजपा की सरकार नहीं है और गैरभाजपाई मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन की बढ़ती लोकप्रियता से केंद्र की भाजपा सरकार किस कदर बौखलाई हुई है यह उसी बौखलाहट का नमूना भर है.

अछूता है झारखंड का पर्यटन स्थल 

झारखंड का प्राकृतिक सौंदर्य अदभुत है और यहां के पर्यटन स्थल अभी भी अछूते हैं. झारखंड में नेतरहाट की वादियां ऊटी या शिमला का अहसास कराती है. राज्य का सबसे ऊंचा जलप्रपात बूढ़ाघाघ की छटा भी आलौकिक है. पलामू में टाइगर रिजर्व के साथ चेरो राजाओं के ऐतिहासिक किलों को देखा जा सकता है. मलूटी के अनूठे मंदिर भी झारखण्ड में ही हैं. 

देवघर का बाबा धाम, ईटखोरी चतरा के साथ अब हजारीबाग में भी बुद्धकालीन सभ्यता के अवशेष मिल रहे हैं. पारसनाथ की पहाड़ियां जो जैन श्रद्धालुओं के लिए पवित्र है. साथ ही राज्य की आदिवासी-मूलवासी संस्कृति का अनुपम एहसास, लगभग पूरे झारखण्ड में प्रकृति ने अपने नेमतों को खुलकर लुटाया है. 

झारखण्ड के साथ सौतेला व्यवहार

ऐसे पर्यटन केंद्र के उस भाजपा मानसिकता के मंत्रालय को नहीं दिखा. इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि उसे न बाबा धाम दिखा और न ही  पारसनाथ. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उस सत्ता का चश्मा देश में हर चीज को राजनीति नफे-नुखसान के नजरिये से देखती है. और ऐसे में झारखंड भाजपा के नेता, विधायक व सांसद की चुप्पी झारखंडी मानसिकता को और अधीर कर सकती है. मसलन, झारखंड के साथ केंद्र का सौतेला व्यवहार जारी रहा तो राज्य में केन्द्रीय सत्ता के खिलाफ असंतोष की भावना और भी भड़क सकती है.

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