बाबूलाल को लेकर सत्ता के कटघरे में भाजपा खुद आ फंसी है

बाबूलाल को लेकर सत्ता के कटघरे में भाजपा खुद आ फंसी है

झारखंड में विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो चुका है जो 28 मार्च तक चलेगा और इसी सत्र के दौरान वित्त मंत्री 3 मार्च को वर्ष 2020-21 का बजट पेश करेंगे। साथ ही 16 और 23 मार्च को मुख्यमंत्री प्रश्नकाल भी होगा, जिसमे नीतिगत मामलों को लेकर सदस्य मुख्यमंत्री से सवाल पूछ सकेंगे। 4 से 6 मार्च को बजट पर बहस होगी और 12 से 13, 17 से 20 व 23-24 मार्च को अनुदान माँगो पर बहस होगी, साथ ही इसी दौरान सरकार जवाब भी देगी। इस सत्र का दिलचस्प बिंदु यह है कि भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता तो चुन लिया है, लेकिन विधानसभा में अब तक उन्हें भाजपा सदस्य के रूप में मान्यता नहीं मिल पाने के कारण वे नेता प्रतिपक्ष कि भूमिका में नहीं दिखेंगे। 

इस मामले में कांग्रेस का बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष मानने से इन्‍कार करते हुए कहना है,  किसी भी पार्टी के दो तिहाई विधायक जिधर विलय करते हैं, उसे ही मूल विलय माना जाएगा। इसके लिए पार्टी ने विधानसभा अध्‍यक्ष से बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष नहीं मानने की गुज़ारिश की है। ज्ञात हो कि झाविमो के तीन विधायक में से दो विधायक कांग्रेस में शामिल हुए हैं। जबकि हेमंत सोरेन का कहना है कि परिस्थिति यह है कि विपक्ष खुद को विपक्ष मानना ही नहीं चाहता है। स्पीकर सारे मामलाें काे स्वयं देख रहे हैं और सही हल निकल जायेगा।  

मसलन, जिन मुद्दों को खड़ा कर बीजेपी सत्ता तक पहुंची उन मुद्दों को लेकर उसके सरोकार की मान्यता कभी मिली नहीं। ऐसे में जमे जमाये मुद्दों पर अपनी सियासी बिसात बिछा कर शार्टकट की सत्ता का भभका पैदा कर सियासत करना चाहती है। इसलिए बाबूलाल मरांडी का बिना इस्तीफ़ा दिए भाजपा में जाना संयोग नहीं प्रयोग माना जा सकता है। पहले छह विधायकों के भाजपा में जाने पर बाबूलाल मरांडी शोर मचाते रहे कि भाजपा ने संविधान के साथ खिलवाड़ किया है। जबकि अब खुद 10वीं अनुसूची के मामले के तहत झूलते दिख रहे हैं। 180 डिग्री में राजनीति घुम चूकी है लेकिन सत्य तो यह है कि इस बार सत्ता में भाजपा नहीं बल्कि सत्ता के कटघरे में भाजपा आ फंसी है।

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