झारखंडियों के खोये राम को आखिरकार भाजपा ने ढूंढ निकाला!

भाजपा ने झारखंडियों के खोये राम के रूप पेश किया बाबूलाल को !

“बाबूलाल मरांडी का भाजपा में जाना संयोग नहीं प्रयोग है। बाबूलाल ने जनादेश का अपमान करते हुए भाजपा में जाने का निर्णय लिया है। अगर उन्हें भाजपा में जाना है, तो पहले इस्तीफ़ा दें, इसके बाद भाजपा का दामन थामें। छह विधायकों के भाजपा में जाने पर बाबूलाल मरांडी ढोंग रच रहे थे। उन्हें बताना चाहिए कि अब उनके खिलाफ 10वीं अनुसूची का मामला बनता है कि नहीं। बाबूलाल पॉलिटिकल होलसेलर हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आजसू भाजपा की “ए” टीम व झाविमो “बी” टीम के रूप में चुनाव लड़ा।

भाजपा को जब-जब जरूरत पड़ी बाबूलाल ने अपने विधायकों को भेज कर इनका इस्तेमाल सामान की तरह किया। इस बार चुनाव में झाविमो के तीन विधायक में दो विधायक समझ गये कि उन्हें  मोहरा बनाया जा रहा है, तो नाराज़गी जाहिर की। इसके बाद बाबूलाल के पास कोई विकल्प नहीं बचा, तो खुद भाजपा में जाने के लिए तैयार हो गये। बाबूलाल के साथ उनकी पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता भाजपा में नहीं जा रहा है। भाजपा में सारे भ्रष्टाचारी लामबंद हो रहे हैं। अब तक मैनहर्ट की जांच का मामला भी लंबित है जो मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास के कार्यकाल का है। ऐसे में इनका एकजुट होना जरूरी हो गया था।” -यह वक्तव्य झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य के हैं।  

साल नया है, चुनावी लोकतंत्र को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक दल की उम्मीद भी नयी होगी।। क्योंकि भाजपा एक झटके में जो सत्ता से बाहर हो गयी है। राजनीतिक सहमति की डोर कैसे जिंदगी लीलती है इसका जीता जागता उदाहरण झारखंड ने फिर देखा। जहाँ एक दूसरे के फायदे के लिए वह नेता जिसने भाजपा के विचारधारा अपने अनुरूप न पा अलग पार्टी बनायी थी। महज चंद महीनों पहले भाजपा को लोकतंत्र के ए एल एस तले कोसते हुए चुनाव लड़ा, जीते भी। एका एक फिर उसके भीतर भाजपा के विचारधारा के प्रति प्रेम उमड़ा और बिना विधायक पद से इस्तीफ़ा दिए, पार्टी समेत आनन-फानन में यह कहते कि मुझे 14 वर्षों से मनाया जा रहा था, भाजपा में विलय हो गए। उनके वोटर अवाक देखते रहे। 

मसलन, झारखंड की धरती पर भाजपा फिर जनता को समझाने का प्रयास किया कि भगवान फिर जमीन पर अवतरित हो गए हैं, केवल चुनाव भर की देरी है। उन्होंने बाबूलाल के रूप में झारखंडियों के खोये राम जो ढूंढ लाये हैं। झारखंड में लोकतंत्र फिर से जीतेगा और झारखंड में भाजपा रोज़गार से लेकर वह तमाम वायदे पूरे करेगी जो 2014 के चुनाव में वायदे किये थे! सच तो यह है कि भाजपा इस बहाने न केवल आदिवासी व झारखंडी विचारधारा से फिर जुड़ाव चाहती है बल्कि जांच के घबराहट में एक स्थापित आदिवासी मुखौटे के ओट में खड़ा हो बचना चाहती है। जाहिर है इस बड़ी डील की किमत भी बड़ी आंकी गयी होगी। अब देखना यह है कि इनकी यह रणनीति कितनी कारगर होती है। 

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