भारतीय रेल के सरोकार सीधे जनता से जुड़ने चाहिए: हेमंत 

राजधानी एक्सप्रेस 17 कोच वाली का बजट है महज 75 करोड़ जबकि 9 कोचों वाली बुलेट ट्रेन का बजट 60 हजार करोड़। जिसका सीधा अर्थ है कि एक बुलेट ट्रेन के बजट में तकरीबन 800 राजधानी एक्सप्रेस देश भर में दौड़ सकती है। मौजूदा वक़्त में सवाल इसलिए भी बड़ा हो चला है कि जब सरकार के पास ट्रेक ठीक करने व नए ट्रेक के ज़रिये देश में रेलवे को विस्तार करने के लिए 20 हजार करोड़ नहीं है। जहाँ हर दिन तकरीबन 95 लाख लोग बिना सीट मिले ही सफ़र करने को मजबूर हैं। कोई भी कह सकता है कि मौजूदा सत्ता की मंशा देश की विकास से भारतीय रेल इंफ्रास्ट्रक्चर को जोडते कतई नहीं दिखते। 

आप इसे जिस मायने में भी समझे देश का असल सच तो यही हो चला है, जहाँ ग्रामीण इलाकों में रेल की स्थिति और दयनीय है। जहाँ हर तबके के ग्रामीण, बेरोज़गार व मज़दूर गाँव छोड़ काम की तलाश में ट्रेनों में धक्के खाते हुए भटकने को विवश हैं। ऐसे में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साफ़ शब्दों में कहना कि रेलवे झारखंड को डंपिंग न बनायें, सतह पर उस सत्य को उभारता है, जहाँ झारखंड वैसे राज्यों में शुमार है जो रेलवे को सबसे अधिक लाभ  देता है। लेकिन देश का रेल मंत्रालय उसके अनुपात में झारखंड के लोगों को लाभ से वंचित रखा। न सुविधा अनुरूप ट्रेनों की संख्या बढ़ाई और न ही गुणवत्ता मे ही सुधार लाये।

देश में पहली बार यह देखा गया कि किसी मुख्यमंत्री में रेलवे के उन बिंदुओं पर सवाल उठाये जिसके सरोकार सीधे जनता व विकास से जुड़ते हैं। जैसे रेलवे ओवेरब्रिज तो रेलवे बनाती है लेकिन अप्रोच रोड राज्य सरकारें। जिससे पुल व अप्रोच रोड की एलाइनमेंट व गुणवत्ता में भिन्नता देखी जाती है और जनता को असुविधायें झेलनी पड़ती है। साथ ही इसके दूसरे पहलू के रूप में प्रकृति से भी व्यापक तौर पर छेड़-छाड़ होना संभव हो जाता है। मसलन, यदि रेलवे से संबंधित कार्य किसी एक संस्थान, भारतीय रेल या राज्य सरकार के ज़िम्मे हो तो, तमाम प्रकार के चुनौतियों से निबटा जा सकता है।

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