अधिकारों की सुनिश्चितता के लिए हेमंत की राह चलना ही होगा झारखंड को 

झारखंड राज्य में राजनीतिज्ञों को आज जनता के आत्मनिर्णय के अधिकारों का समर्थन व यहाँ के ग़रीब वर्ग को जागृत, गोलबन्द और संगठित करते हुए अपना राजनीतिक सफ़र तय करना होगा। केवल इसी रास्ते से दमन -शोषण वाली सरकार से निजात पाया जा सकता है और केवल यही वह रास्ता है जिससे भविष्य में नयी झारखंड नीव को गढ़ा जा सकता हैं। यह मादा मौजूदा वक्त मे केवल गुरूजीहेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली झामुमो के विचारधारा में दिखती है, जो अकेले अपने कार्यकर्ताओं के बल पर मौजूदा सरकार के नीतियों को मुहतोड़ जवाब दे रही है और राज्य के हर वर्ग के जनता के सुख-दुःख में खड़ी है।   

झारखंड के 64 वर्षों के इतिहास में यह साफतौर पर देखा जा सकता है कि राष्ट्रीयता के संघर्षों का धूमिल होते भविष्य को यह दल नयी साँसे भर रही है। इसलिए सही तरीके से मुकाम तक पहुँचने के लिए पूँजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी क्रांति से जनता को खुद को जुड़ना होगा। हमारे देश का ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का आधुनिक इतिहास इसको पुष्ट करता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सत्ता का कार्यकाल दमन अधिकारों के हनन से भरा होते हुए भी कहता रहेगा कि हमने तो इस राज्य में विकास की गंगा बहा दी है। हमें तो दिख रहा है आप कैसी जनता हो जो आपको नहीं दीखता। रिपोर्ट कार्ड के जगह हमें अंधराष्ट्रवाद का पाठ पढाता रहेगा।

उदाहरण के तौर पर जैसे हमारे मौजूदा मुख्यमंत्री जी कल के आशीर्वाद यात्रा के भाषण में अपने रिपोर्ट कार्ड में बता रहे थे कि 370 व 35A को हटा दिया गया, जैसे उन्होंने ही हटाया हो वहीँ डिग्रीधारियों को कहते हैं कि उन्हें नौकरी नहीं मिलेगी। अब यह समझ में नहीं आता कि झारखंड राज्य में चुनाव के वक़्त 370 का बात क्यों कर रहे हैं? यह तो वही बात हो गयी कि “खुरपी के शादी में कुदाल का गीत” गाया जा रहा हो। अगले पल यह भी कहते हैं जिसे यह गवारा नहीं वो पाकिस्तान जाएँ -मतलब एक प्रवासी मूलनिवासियों को पाकिस्तान जाने को कह रहा है। यदि भूले भटके बिजली की समस्या मुँह से निकल जाए तो सीधा कह देना कि इसका जिम्मेदार तो कांग्रेस है।

मसलन, राज्य की जनता को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए, दमित-उत्पीड़ित को अपने आत्मनिर्णय और अपना भविष्य तय करने के लिए, इस संघर्ष की प्रक्रिया में खुद को झामुमो के साथ राजनीतिक एकीकरण करना होगा, जो उन्हें एक ऐसे राज्य में अपनी पृथक पहचान को कायम रखने का ताकत प्रदान करेगा, जो राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक शोषण, उत्पीड़न और दमन पर आधारित नहीं बल्कि अधिकारों पर आधारित होगा।

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