जनता के पैसे से खड़े रेल संसाधनों से निजी पूँजीपति मुनाफ़ा बटोरेंगे 

जनता के पैसे पर खड़े संसाधनों पर मौज उड़ाते पूंजीपति

निजीकरण के दृष्टिकोण से भाजपा सरकार द्वारा अब अपनी कुदृष्टि रेलवे पर बुलेट ट्रेन की गति से दौड़ा दिया गया है। हालांकि किश्तों में तो रेलवे का निजीकरण का दौर पहले ही शुरू हो चुका था, पर इस कार्यकाल में उसे और तेज़ कर दिया गया है। अब तो रेलवे को पूँजीपतियों के हाथों में सौंप देने की क़वायद युद्ध स्तर शुरू कर दी गयी है। रेल मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में रेल मंत्रालय 100 दिन का ऐक्शन प्लान या ‘कुकर्म योजना’ लेकर आ चुकी है, जिसे 31 अगस्त 2019 तक लागू करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिये गये हैं।

यह मत सोच लीजियेगा कि इस ‘’ऐक्शन प्लान’’ में सुविधाएँ बढ़ाने हेतु रेल की सुरक्षा व्यवस्था मज़बूत करने या रेलवे में खाली पड़े 2.6 लाख पदों को भरने की बातें की गयी है। क्योंकि इन छोटे-मोटे कामों के लिए सरकार कतई सत्ता में नहीं आयी है। इस ऐक्शन प्लान में कई घातक प्रस्तावों के साथ निजी यात्री गाड़ियाँ चलाने का प्रस्ताव है। 100 दिनों के भीतर ऐसी दो गाड़ियाँ चलने भी वाली है। लखनऊ से नई दिल्ली के बीच चलने वाली सेमी हाई-स्पीड एसी ट्रेन, तेजस एक्सप्रेस देश की पहली निजी ट्रेन होगी। इतना ही नहीं, सरकार राजधानी और शताब्दी जैसी प्रीमियर गाड़ियों का संचालन भी निजी ऑपरेटरों को सौंप देना चाहती है, जिसके लिए अगले 4 महीनों में टेंडर जारी हो जायेंगे। 

यदि इस प्रयोग के सफल होते ही, एक-एक कर तमाम ट्रेनें देशी-विदेशी कंपनियों को सौंपने का रास्ता साफ़ हो जायेगा। ऐक्शन प्लान में दूसरा बड़ा प्रस्ताव है रेलवे की उत्पादन इकाइयों का निगमीकरण, यानी उन्हें कॉरपोरेशन बना देना। रेल बोर्ड द्वारा तैयार दस्तावेज़ के अनुसार रेल की 7 उत्पादन इकाइयों, प. बंगाल में चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में डीज़ल इंजन कारख़ाना और रायबरेली में मॉडर्न कोच फ़ैक्टरी, पंजाब के कपूरथला में रेल कोच फ़ैक्टरी, पटियाला में डीज़ल आधुनिकीकरण कारख़ाना, चेन्नई में इंटिग्रल कोच फ़ैक्टरी और बैंगलोर में व्हील एंड ऐक्सल प्लांट और इन 7 इकाइयों से संबद्ध सभी वर्कशॉपों को ‘इंडियन रेलवे रोलिंग स्टॉक कम्पनी’ के नाम से एक नयी कम्पनी बनाकर उसके हवाले कर दिया जायेगा। 

यह और कुछ नहीं, बल्कि उत्पादन को निजी कंपनियों के हाथों में सौंप देने की दिशा में पहला क़दम है। आने वाले दिनों में पहले इन कॉरपोरेशनों के शेयर निजी कंपनियों को बेचे जायेंगे और फिर पूरे कॉरपोरेशन को ही उनके हवाले कर दिया जाएगा। एमटीएनएल और बीएसएनएल जैसा हश्र अब रेलवे का भी होने जा रहा है। इतना ही नहीं, सरकार के अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय के नेतृत्व में बनी रेलवे पुनर्गठन कमेटी और नीति आयोग ने ज़ोरदार सिफ़ारिश भी की है कि सरकार को अब रेलवे में निजी कंपनियों की भागीदारी का रास्ता साफ़ कर देना चाहिए। कमेटी का कहना है कि रेलवे के ‘नॉन-कोर फ़ंक्शन’ यानी अस्पतालों, स्कूलों, कारख़ानों, वर्कशॉपों, रेलवे पुलिस आदि को कम से कम अगले 10 साल के लिए निजी क्षेत्र के हवाले कर देना चाहिए। मसलन, जनता के पैसे से खड़े रेल संसाधनों से अब निजी पूँजीपति मुनाफ़ा बटोरेंगे।

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