आडवाणी जी की तरह सरयू राय को भी हासिये पर धकेलने की तैयारी 

मुश्किल दिनो में मोदी के साथ खडे आडवाणी जी को हाशिये पर धकेलने में जब देर नहीं लग सकती है, तो आने वाले दिनो में भी कोई संघ के प्रिय व ताक़तवर होते ही अन्य मजबूत नेताओं को भी हाशिये पर धकेल देगा। इससे गुरेज़ नहीं, यानि भाजपा के भीतर इस नई परंपरा का यह नया मिज़ाज क्या अब इस दल का सच हो चुका है। खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय के केस में तो यही दिख रहा है। उनका मीडिया के समक्ष यह बयान देना की जबतक उनके द्वारा मुख्यमंत्री के समक्ष उठाये गए मुद्दे का कोई ठोस समाधान नहीं हों जाता, वे कैबिनेट की बैठक में उपस्थित नहीं होंगे। उनका साफ़ कहना हैं कि वे मुद्दों से समझौता नहीं कर सकते इसका एक मतलब यह भी हों सकता है कि आपसी कलह चरम पर है और अस्तित्व का जंग जारी है   

सरयू राय का कहना है कि उन्होंने महाधिवक्ता के खिलाफ जो मुद्दे उठाये थे, सरकार बताये कि वह सही थे या गलत़। उनका यह भी आरोप है कि उन्होंने इनके खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े कई मुद्दे रखे़, लेकिन ताकतवर पर कोई कार्यवायी न करते हुए उलटे उनके ही खिलाफ बार काउंसिल से निंदा का प्रस्ताव पारित करा दिया उन्होंने पूछा है कि महाधिवक्ता की नियुक्ति जिस कैबिनेट से होती है, उसके मंत्री के खिलाफ निंदा का प्रस्ताव पारित कराने वाले पर क्या सरकार ने कार्रवाई की है बताएं? उनका यह भी कहना है कि वे पिछले 13-14 कैबिनेट की बैठकों में नहीं जा रहे है़ं इसके लिए उन्होंने सरकार से लेकर संगठन के उचित फोरम से लेकर पर केंद्रीय नेतृत्व तक को अपनी भावना से अवगत कराया, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई कई मामलों में तो कोर्ट को भी भ्रमित किया गया़  और महाधिवक्ता की भूमिका पर भी सवाल उठता है

बहरहाल, अब देखना यह है कि रघुबर जी कैसे अपने इस रूठे सिपाही को मनाते है, या फिर शुरू हुई परम्परा के अनुकूल आडवाणी जी सरीखे ऐसे ही छोड़ हासिये पर धकेल देते हैं। और मांगे नहीं मानी जाने के स्थिति सरयू राय जी क्या कदम उठाते हैं। क्या वे पार्टी को अलविदा कहेंगे या आडवाणी जी की भांति हथियार डाल देंगे?  

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