राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में उड़ रही है आयुष्मान योजना की धज्जियाँ, फिर भी सरकार कांन में तेल डाल कर सोई हुई है …
अच्छे दिनों के आड़ में हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाली रघुबर सरकार शासन-प्रशासन में सरकारी-गैर सरकारी दोनों ही क्षेत्र में पूरी तरह से विफल नजर आयी है। इस सरकार को झारखंड के आम नागरिकों की सेहत का कोई ख़्याल नहीं है। दवाओं या फिर किसी भी ज़रूरी मेडिकल सामान की उपलब्धता सरकार को ही सुनिश्चित करनी चाहिए और यदि नहीं हो पाती है तो इसकी उपलब्धता के लिए ज़रूरी बजट हर हाल में उपलब्ध होना चाहिए। साथ में यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि यह बजट सही समय पर सही जगह उपयोग हो जाए, लेकिन जब इनमें से कोई भी चीज़ नहीं की जाती तो नतीजतन मरीज़ो की मौत होना तय हो जाता है।
इसी लापरवाही के कारण राज्य के बड़े अस्पताल रिम्स में भर्ती 50 वर्षीय जमशेदपुर निवासी जीतू बाग ने दवा के इंतजार में आखिरकार दम तोड़ दिया। लिवर की गंभीर बीमारी से जूझते जीतू बाग आयुष्मान भारत योजना के तहत 8 जून को ही रिम्स के मेडिसीन वार्ड में भर्ती हुए थे। डॉक्टरों के अनुसार उनकी हालत बेहद खराब थी। आयुष्मान योजना के तहत दवा का इंडेंट रिम्स प्रबंधन को भेजा गया था, लेकिन चार दिनों बाद भी दवा मुहैया न होने के कारण जीतू जिंदगी की जंग हार गए। यह कोई एक मामला नहीं है, इससे पहले भी आयुष्मान योजना के ही तहत 25 मई को मेडिसीन आईसीयू में भर्ती हज़ारीबाग़ जिले के 39 वर्षीय अरुण कुमार महतो की मौत भी ऐसी ही वजह से हो गयी थी।
इतना होने के बावजूद भी प्रबंधन के माथे पर शिकन नहीं दिखती, गिरिडीह के चतरो गांव निवासी बैकुंठ राणा भी मेडिसीन वार्ड में आयुष्मान योजना के तहत भर्ती हैं। उनकी किडनी खराब हो चुकी है और चार दिन पहले ही चिकित्सक ने डायलिसिस कराने को कहा है। साथ ही चिकित्सक ने डायलिसिस के लिए जरूरी दवाएँ भी लिख कर रिम्स प्रबंधन से मंगवाने का अनुरेाध किया है, लेकिन अब तक नहीं मंगायी गयी है। उनके पिता बिष्टू राणा का कहना है कि उनके पास पैसे नहीं हैं कि वह बाहर से डायलिसिस के सामान ख़रीद ले। मसलन, यह पूरी तरह प्रबंधन का दोष है और सरकार कान में तेल डाल कर सोयी हुई है, जिसका मतलब साफ़ है कि इस सरकार का झारखंडी जनता से सरोकार नहीं है।