बेरोज़गार युवा ने झारखंड में एक बार फिर हताश हो जिंदगी हारी

रघुबर दास के मुख्यमंत्री बनने के बाद से झारखंड में बेरोज़गारी तेजी से बढ़ी है। शरीर और मन से दुरुस्त लाखों पढ़े-लिखे युवा जो डीग्री से भी लैस हैं, बेरोज़गार हैं। उन्हें काम के अवसर से वंचित कर दिया गया है। जिसके वजह से ये बेरोज़गार युवा मरने, भीख माँगने या अपराधी बन जाने के लिए मजबूर हैं। आर्थिक संकट के गहराने के साथ हर दिन यहाँ बेरोज़गारों की तादाद में बेतहाशा वृद्धि देखी जा रही है।

एक बड़ी आबादी तो ऐसे लोगों की है जिन्हें बेरोज़गारी के आँकड़ों में गिना तक नहीं जाता लेकिन सच्चाई यह है कि उनके पास भी साल भर में कुछ दिन ही रोज़गार मुहैया हो पाते हैं। या फिर यूँ कहें कि कई तरह के छोटे-मोटे काम करके वे बमुश्किल ही जीने लायक कमा पाते हैं। सच तो यह है कि इस राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की भी कमी नहीं है। हर क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के विकास और रोज़गार की यहाँ अनंत संभावनाएँ मौजूद हैं। लेकिन अलग झारखंड के 19 बरस में  भी इस इस राज्य के लिए बेरोज़गारी आलोकिक प्रश्न बन मौजूद है?

रांची, धुर्वा थाना क्षेत्र के आदर्श नगर के राहुल ने बेरोजगारी से तंग आकार आखिरकार मौत को गले लगा लियाजानकारों का कहना है कि युवक पिछले कई माह से नौकरी की तलाश में जद्दो-जहद कर रहा था, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल पा रही थी। नौकरी न मिल पाने की स्थिति में युवक परेशानी हो डिप्रेशन का शिकार हो गया था। दोस्तों और परिजनों से उसने बात तक करना कम कर दिया था। हालांकि राहुल के परिजन अक्सर उसे ढाढस बंधवाते कि आने वाले वक़्त में उसे नौकरी मिल जाएगी। लेकिन राज्य की मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए वह बेरोज़गार युवा जिंदगी का जंग हारने में ही अपनी भलाई समझी अब उसके परिजन को कौन समझाए कि यह हार उस युवा नहीं बल्कि झारखंडी स्मिता की हुई है और सत्ता ने सुनियोजित तरीके से उसकी हत्या की है

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