न्यूज़ चैनल जो मोदी लहर खोजने में परेशान थे, अंडर करेंट रुझान ढूंढ लाये हैं

न्यूज़ चैनल व ढेर सारे पत्रकार जो तीन महीने से गांव-गांव में मोदी लहर खोजने में परेशान थे, वे आखिरकार अंडर करेंट रुझान ढूंढने में कामयाब रहे हैं। उनके एक्ज़िट पोल के नतीजे बताने लगे हैं कि मोदी लहर धुआंधार है और हर सर्वे में बीजेपी प्लस की सरकार आराम से बनते दिखा भी रही है।

अब ये सैंपल साइज़ तो 9 लाख बता रहे हैं लेकिन जब सवाल उठता है कि इस सर्वे में सैंपल टार्गेटेड पापुलेशन में क्या सभी वर्ग के लोग थे? तो चुप्पी साध लेते हैं, बाद में यह कह देते हैं कि भाजपा लोकप्रिय इलाकों का सर्वे है, तो क्या वहां दूसरे प्रत्याशी कोई अस्तित्व ही नहीं रखते। कई ऐसे सवाल एक्ज़िट पोल से उठ कर सतह पर आते हैं। ये कैसे नए सर्वेकर्ता हैं, इनके पास कौन सा विज्ञान है जिसके आधार पर सीधे वोट शेयर को ही सीट में बदल देते हैं। यह एक प्रकार का प्रोपगेंडा हो सकता है जिसके आधार पर सट्टा बाज़ार गर्म हुआ, इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता। साथ ही जिस प्रकार उत्तर प्रदेश के डुमरियागंज में सपा-बसपा कार्यकर्ताओं ने पिछले मंगलवार को ईवीएम से भरा एक मिनी ट्रक पकड़ा जिसे बाहर लाया जा रहा था और सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो जिसमे ईवीएम भरी मशीनों से भरे ट्रक की तस्वीरें बाहर आ रही है, कोई अदना व्यक्ति भी अनुमान लगा सकता है कि आखिर क्यों भाजपा को एक्ज़िट पोल में इतनी अधिक सीटें मिल रही है।

बहरहाल, फासीवादी ताकतें पूरी नंगी होकर अपने एजेंडा को अंजाम देने में पूरी तन्मयता से जुड़ गयी हैं इनके प्रचार तंत्र को इस प्रकार समझा जा सकता है – प्रचार की मशीनरी, प्रचार का सारतत्व, प्रचार के उपकरण। प्रचार की मशीनरी का अर्थ है कि जनता के अलग वर्ग संस्तरों के बीच फासीवादी कहाँ-कहाँ मौजूद होते है, इसी हथकंडे से आज फासीवादियों ने सत्ता के हर अंग-उपांग के साथ-साथ रिहाइश के कोने-कोने तक अपनी पकड़ स्थापित की है। गोएबल्स से सीख लेते हुए आज ये लोग न्यूज़ चैनल समेत मीडिया के बड़े हिस्से में अपना प्रभुत्व क़ायम किए बैठे हैं। अफ़वाह फैलाने में और अपने प्रचार को लगातार इन माध्यमों से लोगों तक संघ के तमाम इकाइयों द्वारा पहुँचाया जा रहा है।

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