कैसे चौकीदार ने 4g स्पेक्ट्रम BSNL को न देकर बाकी सभी कंपनियों को दिए यह जग जाहिर है। मोदी सरकार ने अपने चहेते अम्बानी के जियो को प्रमोट करने के लिए ही बीएसएनएल को धीमा जहर दिया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रिलायंस को सिर्फ डेटा सर्विस के लिए लाइसेंस दिया गया था, लेकिन बाद में 40 हजार करोड़ रुपये की फीस की जगह मात्र 1,600 करोड़ रुपये में ही वॉयस सर्विस का लाइसेंस दे दिया गया। लेकिन फिर भी अभी तक जियो के पास इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था। जिओ को इस समस्या से उबारने के लिए चौकीदार ने बीएसएनएल को बपौती माल समझ कर इसके इंफ्रास्ट्रक्चर को धीरे धीरे उसे देना शुरू कर दिया।
प्रधान सेवक के सत्ता में आते ही जिओ को फायदा पहुंचाने के लिए एक टॉवर पॉलिसी लायी और दबाव डालकर भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) का रिलायंस जिओ इंफोकॉम लिमिटेड के साथ मास्टर शेयरिंग समझौता करवा दिया। इस समझौते के तहत रिलायंस जिओ देशभर में मौजूद बीएसएनएल के 62,000 टॉवर्स का उपयोग कर सकती थी। इनमें से 50,000 टॉवरों में ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी भी उपलब्ध थी। यह जियो के लिए संजीवनी मिलने जैसा था क्योंकि वह चाहे कितना भी पैसा खर्च कर लेती तो भी इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर नही खड़ा कर सकती थी और BSNL उसके कड़े प्रतिद्वंदियों में से एक होती साथ में कमाई भी करती। लेकिन चौकीदार ने ग़जब का खेल खेला। जियो को इन टॉवरों का निरंतर फायदा मिलते रहे इसके लिए चौकीदार ने केवल टावर्स के लिए एक अलग कम्पनी बना बीएसएनएल के पर क़तरा और जियो को फायदा पहुँचाये।
बहरहाल, मोबाइल टॉवर तो किसी भी टेलीकॉम ऑपरेटर के लिए सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं। मोदी सरकार द्वारा उठाये इस कदम का परिणाम यह हुआ कि अब बीएसएनएल को भी इन टावर की सर्विसेज यूज करने का किराया लगने लगा, जिससे बीएसएनएल अपने ही टॉवरों की किराएदार बन गयी। नतीजतन जो कम्पनी 2014-15 में 672.57 करोड़ रुपए के फायदे में आ गई थी वह इस निर्णय के बाद हजारों करोड़ रुपए का घाटा दर्शाने लगी। कुछ समझे आप! मोदी सरकार ने बीएसएसएल को 4जी स्पेक्ट्रम अलॉट भी नही किया और जियो को बीएसएनएल के टावर भी दिलवा दिए और BSNL को अपनी संपत्ति का किराएदार बना दिया।