जमशेदपुर:  क्यों बेजुबां शोषितों-गरीबों के इलाके में कचरा का अम्बार लगाया  जा रहा है

अगर आप झारखंड का गौरव जमशेदपुर को केवल वहां स्थित टाटा, शाॅपिंग माॅलों, शाॅपिंग काॅम्प्लैक्सों, कॉलनी, खूबसूरत पार्कों और अमीरजादों के रईसी से भरी हुई हरी-भरी टाटा के रूप में ही जानते हैं तो फिर आप इस जिले के हिम खंड का केवल उपरी हिस्से से ही परिचित हैं। आइये इस हिमखंड के निचे हिस्से की काली-अँधेरी सचाई से रु-ब-रु होते हैं, आईये उन लोगों के बीच चलते हैं जिनके दम पर इन सारी चीजों का निर्माण संभव हुआ परन्तु जो अपनी ही बनायी इमारतों के जंगल के पीछे छिपा दिये गए हैं या पशुओं का जीवन जीने को मजबूर हैं।

टाटा हमारे मुख्यमंत्री रघुबर दास का पैतृक स्थान नहीं पर उनका विधानसभा क्षेत्र ज़रूर है और इस क्षेत्र से कमोवेश हमेशा ही भाजपा के ही विधायक व सांसद जीतते रहे हैं। यह क्षेत्र कोलहान प्रमंडल के माथे की बिंदिया के रूप में जानी तो जाती है लेकिन यहाँ दो जमशेदपुर बसता है। टाटा के कर्मचारियों के लिए बसाई गयी कॉलनियों में बिजली, पानी समेत तमाम तरह की सुविधाएँ उपलब्ध है लेकिन वहां के मूलनिवासियों के साथ भाजपा हमेशा ही सौतेला व्यवहार करती रही है

उदाहरण के तौर पर देखें तो आज तक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट का कोई प्लांट स्थित नहीं किया गया है जिसके कारण बागुनहातु सरीखे इलाके जहाँ आदिवासी-मूलवासी-दलित बसते हैं वहां प्रतिदिन तकरीबन 900 टन कचरा खुले मैदानों में  फेंका जाता है। कचरा का जमा अम्बार वहां के गरीब लोगों को बदबू व प्रदुषण से परेशान तो करती ही रही है साथ ही बीमारियों का सौगात इन्हें छित-विछित कर दिया है। लेकिन, मोदी के चहेते चौकीदार रघुबर जी मुख्यमंत्री होते हुए भी अपने विधानसभा क्षेत्र की भी चौकीदारी करने में आसमर्थ हैं।

मसलन, यहाँ की मौजूदा हालात इसलिए भी ऐसा है कि इन इलाकों में अधिकांशतः आदिवासियों-दलित बसते हैं। जो भाजपा के ब्राह्मणवादी विचारधारा के अनुसार पशुओं से भी बदतर है। ऐसे में क्यों रघुबर दास जी इनके बारे में भला सोचने लगे। यह भाजपा का स्वच्छता मिशन की भी पोल खोटी दिखती है। स्थिति तो यह है कि अब यहाँ सरायकेला खरसावां जैसे जिले का भी कचरा फेका जाने लगा है। ऐसे में मुख्यमंत्री जी का यह ताल ठोकना कि वह जमशेदपुर के गरीबों-शोषितों-दलित-आदिवासी-मूलवासियों के हिमायीती हैं सवाल खड़ा करती है!

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