पॉश मशीन घोटाला: रघुबर सरकार विजनटेक कंपनी पर फ़िदा

पॉश मशीन घोटाला

जब आधार बनाने की योजना शुरू हुई थी तो मुख्य तौर पर यही कहा गया था कि इसमें पंजीकरण करवाना स्वैच्छिक होगा। इसका मक़सद लाभकारी कार्यक्रमों को ज़रूरतमन्द ग़रीबों-वंचितों तक पहुँचाना, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को कम कर पारदर्शी और कुशल बनाना होगा। जनता को यह समझाया गया था कि व्यक्ति की पहचान और जानकारी सरकार के पास होने से वह ग़रीबों के लिए सही नीतियाँ बना पायेगी, जिससे ग़रीबी मिटाने में सफलता मिलेगी।

लेकिन इसके लागू होने के बाद तजुर्बा तो यही बताता है कि असल में यह वंचित ज़रूरतमन्दों को लाभकारी योजनाओं से वंचित रखने एवं सरकार के करीबियों को फ़ायदा पहुँचाने का औजार भर है। साथ ही नागरिकों पर निग़हबानी और जासूसी करने का तन्त्र भी।  सारे सरकारी कल्याण कार्यक्रम, जिनमें पहले से ही खामियाँ थीं, उसे अधुनिकरण एवं पारदर्शी बनाने की आड़ में घोटालों का गढ़ बना पूरी संगरचना को और बर्बाद किया जा रहा हैं।

इसका ताजा उदाहरण झारखंड के रघुबर सरकार के कार्यशैली में पॉश मशीन घोटाले के रूप में बड़ी आसानी से परखा जा सकता है।  यहाँ सरकार के खाद्यापूर्ती विभाग ने 20 हज़ार रूपए की पॉश मशीन विजनटेक कंपनी से 1200 रूपए मासिक किराए पर पांच साल के लिए 25802 मशीनें ली है। अब कोई कम ज्ञान रखने वाला भी यह समझ सकता है कि 1200X60 = 72000 (बहत्तर हज़ार) रूपए में कोई क्यों लेना चाहेगा जब उसे खरीदने में 52 हज़ार का फायदा होगा। मतलब 52 हज़ार के हिसाब से 25802 मशीनों के लिए इस सरकार ने 1,34,17,04,000 रूपये अतिरिक्त खर्च किया। कोई भी इस आँख बंद कर घोटाला बता सकता है।

जब झारखंड की गरीब जनता को राशन न मिल पाने की स्थिति में मौतें तक हो रही थी तब सरकार का कहना था कि अफवाहों के पीछे विदेशी फंडिंग है। परन्तु सच तो यह था कि यह सरकार अपनी तिजोरी भरने के लिए नैतिकता को ताक पर रख अपने चहेतों को फायदा पहुँचाने का प्रयास कर रही थी। मसलन, इस सरकार ने जनता के अधिकारों पर तेज़ी से हमले किए और आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक आक्रमण के साथ आधार, कैशलेस, डिजिटल जैसे अभियान के पीछे इनका लक्ष्य केवल जनता पर निगरानी और नियंत्रण रखना था ताकि घोटालों की फ़ेहरिस्त निर्विघ्न रची जा सके।

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