गुड गवर्नेंस : कहाँ है झारखंड में सुशासन ?

भाजपा-आजसू सरकार ने सरकारी पैसों से “गुड गवर्नेंस डे” का जश्न जोर-शोर से मनाया और अपनी योजनाओं की झूठी सफलता का ढोल पीटा। लेकिन असल में यहाँ की गरीब जनता भूख से मर रही है, बेकसूर लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है, हजारों आदिवासी और मूलनिवासी पैसों की कमी के कारण वकील मुहैया न करा पाने की स्थिति में जेल में सड़ने को मजबूर हैं। ऐसे में गुड गवर्नेंस या सुशासन के नाम सरकार द्वारा जश्न मनाना गरीबों का मजाक उडाना नहीं है तो क्या है?

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत कार्डधारियों को प्रतिम माह राशन वितरण करना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है। मगर मंझारी प्रखंड में ग्रामीणों को डीलरों की मनमानी और विभागीय लापरवाही के कारण दो-तीन महीनों से राशन नहीं मिल रहा है। चक्रधरपुर प्रखंड के 23 पंचायतों के अंतर्गत मनरेगा योजना में सामग्री आपूर्ती के मद से करोंडो रूपये निकासी का मामला सामने आने पर भी सरकार का मौन रहना इनके गुड गवर्नेंस की पोल खोलने के लिए काफी है।

झारखंड की क़ानून व्यवस्था इतनी चरमराई हुई है कि जामताड़ा में ट्रकों से दिन दहाड़े वसूली हो रही है और पुलिस अनजान बनी हुई है। सरकार 100 से अधिक छात्रों की संख्या वाले प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालाओं को बंद कर किस सुशासन को परिभाषित करती है? जबकि सरकार के इस फैसले से 15 लाख 22 हजार 132 बच्चों को शिक्षा से वंचित होना पड रहा है। रांची जिला के खलारी प्रखंड में नजदीकी विद्यालय विलय के नाम पर ढाई किमी दूर मायापुर के प्राथमिक विद्यालय में विलय कर दिया गया, अब विद्यालय पहुँचने के लिए बच्चों को नदी व रेल लाईन पार करना पड़ रहा है। कईयों का आधार कार्ड के आभाव में वृद्धा पेंशन बंद है और राज्य की अधिकतर विधवाएं अब भी बेसहारा हैं ।

पारा शिक्षकों को रघुबर सरकार जान बुझ कर भूखों मारना चाहती है, तभी तो अब तक नौ पारा शिक्षकों की मौत हो जाने के बावजूद मुख्यमंत्री व किसी मंत्री ने अफसोस तक जाहिर नहीं किया और न ही मृतकों के परिजनों को मुआवजा ही दिया। और तो और यहाँ के निवासियों की नौकरियां भी बाहरियों को दे दी। मसलन, भाजपा-आजसू सरकार के गुड गवर्नेंस से कोई भी वर्ग खुश नहीं है। अगर इसे गुड गवर्नेंस कहा जाता है तो फिर गुड गवर्नेंस की परिभाषा बदलने बदलने की जरूरत है।

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