कटक के जानकीनाथ बोस व प्रभावती देवी अपने पुत्र नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आईसीएस (भारतीय सिविल सेवा) का अफसर बनाना चाहते थे, लेकिन उन्हें तब यह कहाँ पता था कि 1920 में आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त करने वाला उनके पुत्र को गुलामी इतना न पसंद आयेगा कि, अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए वह आज़ाद हिंद फौज का गठन कर लेंगे। उनका नारा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ ने न केवल उस वक़्त के भारतीय युवाओं में बल्कि आज के भी युवाओं में एक नया जोश भर जाती है। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाने के कारण सुभाष बाबू कुल 11 बार जेल गए, लेकिन फिर भी न कभी उन्होंने हिम्मत हारी और न ही माफ़ी मांगे।
सुभाषचंद्र बोस ने 1930 में जेल से ही चुनाव लड़ें और कोलकाता के महापौर चुने गए। अंग्रेजों को उन्हें जेल से रिहा करना पड़ा। गांधीजी ने सुभाष बाबू को 1938 में कॉंग्रेस का अध्यक्ष बनाया, लेकिन उन्हें सुभाष जी के काम करने की शैली पसंद नहीं आई। कांग्रेस से वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी और आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया। टोकियो रेडियो के अनुसार 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटनाग्रस्त में नेताजी गंभीर रूप से जल गए और ताइहोकू सैन्य अस्पताल में 23 अगस्त, 1945 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
हालांकि स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस के पोते आशीष रे का कहना है कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली पहली सरकार से लेकर नरेंद्र मोदी सरकार तक सभी नेताजी के लापता होने वाली सच्चाई में यकीन रखते आए हैं, लेकिन अफ़सोस जताते हुए कहते हैं कि किसी ने भी जापान से नेताजी के अवशेष लाने का प्रयास नहीं किया। इन्हीं स्थितियों के बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर 23 जनवरी को कार्यपालक आदेश के तहत राज्य में सार्वजनिक अवकाश जिसे वीर सावरकर की सरकार ने बंद कर दिया था, फिर से घोषित कर उनके मान को सम्मान दिया है।