गुरु जी रूपी विचार एक जिद्द है जिससे खौफ खाता है सामंतवाद

गुरु जी एक विचार है … अगला भाग 2

जमशेदपुर निर्मल महतो शहीद स्थल – “झारखंड संघर्ष यात्रा” के हरी झंडी दिखाए जाने वाले दिन, मंचासीन एवं वहां उपस्थित जनता गुरु जी (shibu soren) को उपस्थित देख अचंभित थे, उनके मुख से आशीष वचन सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने केवल चंद शब्द कहे “भाषणबाजी नहीं संघर्ष करो” –इस शब्द की गंभीरता वही महसूस कर सकता है जो जलते झारखण्ड की ताप से झुलसा हो..

…घंटों माँ के गोद में सर रखे सोते रहे… जब आँख खुली तो आँसू सूख चुके थे और नई सुबह ने दस्तक दी थी।

वे अपने पिता के द्वारा कांसी राम को दिए वचन का मान रखते हुए गुरु जी (shibu soren) उनकी बेटी रूपी से रजरप्पा छिन्नमस्तिके देवी के समुख जीवन भर के लिए एक दूसरे के हो गए. गुरु जी के पिता ने वचन देते वक़्त कांसी राम से कहा था, तूने अपने बेटी के लिए चुना भी तो मेरे सबसे शरारती पुत्र को, तो उन्होंने कहा चुन लिया तो चुन लिया मुझे वही चाहिये।

दिन बीते लेकिन उनके आँखों में प्रतिशोध की ज्वाला नहीं बुझा. गुरु जी (shibu soren) ने अपने बड़े भाई राजा राम के पूछने पर फफक-फफक रोते हुए उनके सीने से लग इच्छा जताई कि उन्हें हजारीबाग जाकर श्री के. बी. सहाय एवं बद्री बाबू के बेटे केदार नाथ से मिलना है, उन्होंने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई है. शायद मेरे जीवन और झारखंडी समाज मे व्याप्त शोषण का कोई रास्ता निकल आये. राजा राम अब तक समझ चुके थे कि इस वेग को रोका नहीं जा सकता, उन्होंने पूछा कल तो तु दांत दर्द से इतने चिल्ला रहे थे कि भेंगराज भी घबरा गया था.

मैं केदार बाबू अधिवक्ता के दरवाजे सोकर रात काट लूँगा

वह ठीक हो गया है, दादा मुझे पांच रुपए चाहिए, मैं केदार बाबू अधिवक्ता के दरवाजे सोकर रात काट लूँगा. तीन बस चालकों से मेरी और एक से आपकी पहचान है दादा काम हो जाएगा. बड़े भाई ने कहा ठीक है लेकिन माँ कह रही थी कि तुमने कल से खाना नहीं खाया, नहीं दादा मैं जा रहा हूँ माँ से मांगकर खा लूँगा साथ में जाने की तैयारी भी कर लूँगा.

गुरू जी

सुबह माँ ने पूछा -कहाँ जा रहा है? (shibu soren) शिबू ( गुरु जी ) ने बस इतना कहा दादा से पूछ लिया है, फिर माँ ने उन्हें तुलसी-पिण्डा ले जा तिलक कर एक रुपया देते हुए सफ़र की मंगल कामना की. माँ के चरण छुए और निकल पड़े छह रूपये ले एक अनजान रास्ते पर अकेला लेकिन मजबूत इरादों के साथ.

अलग झारखण्ड राज्य के लिएअखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन हुआ. इसके बाद ही shibu soren का दूर आने वाला था

इधर 1935 में प्रांतीय स्वायत्तता अधिनियम के अनुसार 1937 में बिहार विधानसभा के चुनावोपरांत कांग्रेसी मंत्रिमंडल का गठन हुआ परन्तु छोटानागपुर से उसमें किसी नेता को जगह नहीं मिली. यहाँ के लोगों को महसूस हुआ उनकी उपेक्षा हुई है.

30-31 मई 1938 रांची में उन्नति समाज, कैथोलिक सभा एवं किसान सभा ने सामूहिक बैठक कर छोटानागपुर एवं संथाल परगना को मिलाकर अलग झारखण्ड राज्य के उद्देश्य से अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन हुआ और थियोडोर सुरीन अध्यक्ष एवं पाल दयाल सचिव चुने गए. इनकी मांग को सर एम जी हैलेट ने 1938 में अविचारणीय कह खारिज कर दिया था. सेंटीनल ने 6 अगस्त, 1938 में इसका उल्लेख किया है.

इस हताशा भरे दौर के बाद हमारे गुरू जी (shibu soren) का दौर आने वाला था, उनके जिद्द भरे आन्दोलन का लोहा भाजपा के अटल जी ने भी माना है, इसलिए तो सामंतवाद उनके नाम से खौफ खाती है. अब समझा जा सकता है कि गुरु जी कैसे दौर से परिस्थियों से निकालकर हमें झारखण्ड अलग राज्य के रूप में दी है. सवाल है क्या हम युवा उनके लाज को बचा पा रहे हैं? …. जारी (शेष कहानी अगले लेख में )

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