ग्लोबल एग्रीकल्चरल फ़ूड समिट ( कृषि ) का सच

मुख्यमंत्री रघुबर दास ने ग्लोबल एग्रीकल्चरल फ़ूड समिट को लेकर नई दिल्ली में आयोजित रोड शो के दौरान निवेश की अपार संभावनाएं बताते हुए निवेशको को खुला आमन्त्रण दिया है। साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा कि झारखण्ड में निवेशकों के लिए जमीन की कमी नहीं है, सरकार उनका स्वागत ग्रीन कारपेट बिछाकर करेगी। इससे उद्योग से ज्यादा कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अवसर है़ं,  2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करनेवाले  है़ं, उन्होंने  कहा कि भारत को आर्थिक सुपर पावर बनाना है, तो गांवों को विकसित करना होगा़  गाँव के लोग समृद्ध होंगे।

लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या “भूमि बैंक” के तहत यह सरकार आदिवासी-मूलवासी को उनके ही गाँव के सामुदायिक जमीनों और जंगलों से विस्थापित कर पूंजीपतियों को सस्ते भाव में जमीन नहीं देगी? अगर सरकार द्वारा आयोजित ग्लोबल एग्रीकल्चरल फ़ूड समिट के माध्यम से राज्य में निवेश आता है तो इसका कितना फायदा यहाँ के आदिवासी मूलवासियों को मिलेगा? आदिवासियों-मूलवासियों के जमीनों पर शहर बने और कई निरंतर बन भी रहे हैं परन्तु विडंबना यह है कि उन शहरों में आदिवासी-मूलवासी न तो शासक बन पाया और न ही हिस्सेदार। उनकी भागीदारी सुनिश्चित तो हुई, परन्तु शासक के तौर पर नहीं बल्कि शोषित और प्रताड़ित दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में।

जब कभी भी भाजपा सरकार ने झारखंड में निवेश लाने के आनन-फानन में कोई कदम उठाया है, तब तब झारखंड की जनता को उसकी कीमत चुकानी पड़ी है।कहीं ऐसा न हो कि पिछली बार मोमेंटम झारखंड की आड़ में जिस तरह रघुबर सरकार ने जनता की आँखों में धूल झोंककर जनता की “लैंड बैंक” की जमीनें ऐसी कंपनियों को दे रही थी जिनका आर्थिक हैसियत, उत्पादन या कार्य अनुभव नगण्य मात्र थी। और तो और इस बार कृषि के क्षेत्र में निवेशकों को शामिल कर किसानों की आय दोगुनी करने का दावा कर रही है,पर कहीं पिछली अनुभव  के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार झारखंडी आदिवासी-मूलवासियों को अपने कृषि की भूमि या कृषि रोजगार से हाथ न धोना पड़ जाये।

जिस झारखंड में किसानों को न ही न्यूनतम मूल्य पर बीज, कृषि के लिए आधुनिक यंत्र और न ही फसलों के उचित दाम मिल रहे हैं, सरकार द्वारा किसी भी तरह का प्रोत्साहन न दिए जाने के कारण किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। रघुबर जी आपने किसानों का एक शोषित समाज खड़ा कर रखा है, ऐसे में ग्लोबल एग्रीकल्चरल फ़ूड समिट के माध्यम से निवेशकों के कृषि क्षेत्र में आने से से कोई भला नहीं होने वाला है, बल्कि इनका और भी शोषण किया जाएगा।

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