झारखण्ड और बंगाल के बीच रंगों की लड़ाई में पिसती जनता!

झारखण्ड में संथाल परगना की मयूराक्षी नदी पर बने मसानजोर डैम का विवाद वहां के विस्थापितों के लिए नहीं बल्कि इसके रंगाई-पुताई का है। भाजपा का मानना है कि पश्चिम बंगाल सरकार इस डैम की पुताई अपनी पसंद के रंग से कर दी है। जबकि रंगों की राजनीति में भगवाकरण का आरोप भाजपा पर लगता रहा है। ऐसी स्थिति में झारखंड में भाजपा का शासन हो और रंगाई-पुताई का मुद्दा जोर न पकडे, हो ही नहीं सकता।

यह सच है कि 1956 में बनकर तैयार हुए मसानजोर डैम के तमाम लाभों से झारखंड वंचित रहा है। जबकि इसके निर्माण हेतु लगभग 50 हजार से अधिक परिवारों को विस्थापित किया गया था और यहाँ की जनता द्वारा इतनी कुर्बानी के बावजूद भी झारखंड दंश झेल रहा और बंगाल मलाई खा रहा। बुधवार को बंगाल और झारखंड के अधिकारियों के बीच इस मसले का हल निकालने के लिए उपायुक्त के साथ बैठक भी हुई। दोनों ने अपनी भावना से एक-दूसरे को अवगत कराया। राजनीतिक मंशा के अंतर्गत इतन बड़ा विवाद हो और राजनीतिक तड़का न लगे ऐसा भला हो सकता है? हालांकि वहाँ के विस्थापितों के वाजिब मुआवजे मुद्दों को लेकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा लगातार आन्दोलन करती आ रही है। अब झामुमो के आन्दोलन को गौण करने का प्रयास करते हुए अपने चहेतों को यहाँ की ज़मीन लूटाने वाली संस्कारी पार्टी भाजपा, रंग-पुताई के नाम पर नया विवाद खड़ा कर तृणमूल कांग्रेस के साथ आमने-सामने है। इस मुद्दे को बैठक कर आपसी समन्वयता से हल करने के बजाय लगातार बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस मीडिया के सामने एक-दूसरे पर छिटाकंशी कर रहे है। तो इस छिटाकंशी से सियासी राजनीति को तेज करने के प्रयास को देखते हुए इसे राजनीति से प्रेरित क्यों नहीं कहा जा सकता? और इससे दोनों राज्यों के रिश्ते में क्या कुछ बदलाव आएगा यह तो समय के गर्भ में छिपा है। तो साहब पहले इस मसले का ठोस समाधान निकालिये, छिंटाकंशी तो चलती रहेगी।

मालूम हो, भारत व कनाडा के बीच एक एग्रिमेंट के तहत मसानजोर में मयूराक्षी नदी के उपर डैम का निर्माण वर्ष 1954 में हुआ था। इस डैम के निर्माण के बाद 144 मौजा के लोग विस्थापित हो गए थे। विस्थापन के बाद आज तक उन तमाम लोगों को सरकारी स्तर पर मुआवजा नहीं मिल पाया है जिसकी लड़ाई शिबू सोरेन, झामुमो के झंडे तले झारखण्ड आन्दोलन के शुरूआती दिनों से लड़ते आ रहे हैं। इसे बाद में कार्यकारी अध्यक्ष हेमत सोरेन ने गुरु जी के मार्गदर्शन में जारी रखा है। और झामुमो ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर भाजपा पर उनकी विफलताओं को छुपाने एवं वोट के लिए सस्ती लोकप्रियता बटोरने की दिशा में उठाया हुआ कदम बताया है। साथ में यह भी कहा है कि इस तथ्यहीन मुद्दे के माध्यम से सिर्फ यहाँ की जनता को दिगभ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। झामुमो के द्वारा आगे कहा गया है कि केंद्र और राज्य दोनों जगह ही भाजपा की सरकार है। यदि भाजपा को यहाँ के विस्थापितों की चिंता होती तो ऐसी स्थिति में इन्हें दोनों राज्य के बीच हुए इकरारनामे को सार्वजनिक करते हुए यहाँ के विस्थापितों को पुनर्वासित कर उनके समुचित विकास की दिशा में कार्य करते।

झारखण्ड राज्य बनने के बाद भाजपा का शासनकाल इस राज्य में 14 वर्षों तक रहा, परन्तु इकरारनामे के अनुसार इन्होने डैम का दायाँ तटबंध का प्रयास तक नहीं किया जिसके कारण अबतक वहां सिंचाई का प्रबंध नहीं हो सका है। ज्ञात हो कि बतौर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने अल्पकाल में डैम का बायाँ तटबंध का कार्य संपन्न करवाया था और पेयजल आपूर्ति योजना का लाभ दिया गया था परन्तु उसके बाद तटबंद कार्य जस का तस पड़ा हुआ है,  सरकार द्वारा ट्रांसफार्मर की व्यवस्था नहीं करवाए जाने से वहाँ के लोग पेयजल योजना का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं। यही नहीं विधायक नलिन सोरेन ने  सीतसत्र के दौरान अपने सवाल संख्या 38/015 के अंतर्गत इस मुद्दे पर सवाल उठाया था परन्तु सरकार की तरफ से उस वक़्त से अभी तक कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दिया गया है। अब सरयू राय जी का कहना है कि विस्थापितों को मुआवजा बंगाल सरकार को देना है तो बताएं कि इतने दिनों तक यदि उनका पुनर्वास नहीं हुआ है तो आपकी सरकार की कोई जवाबदेही बनती है या नहीं?

इन सब से इतर प्रश्न यह उठता है कि मौसमी रोजगार के लिये प्रति वर्ष लाखों की संख्या में पश्चिम बंगाल जाने वाले उन श्रमिकों का क्या होगा जो अपने परिवार का भरण-पोषण, धनकटनी व अन्य कार्यों के माध्यम से करते हैं? उन दिहाड़ी मजदूरों, छोटे व्यवसायियों के परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा जिनके मुखिया पश्चिम बंगाल में रोटियाँ तलाशने जाते हैं? भविष्य की परिस्थितियों पर उपरोक्त संभावनाएँ व्यक्त की जा रही हैं जिनका हल झारखण्ड की सरकार को पहले ही ढूँढ़कर रखना होगा। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार लगातार ऐसे निर्णय ले रही है जिसका स्थायी समाधान झारखण्ड की सरकार को ढूँढना ही होगा। कुछ महीनें पूर्व रानेश्वर प्रखण्ड के पाटजोर के कुछ लोगों को वीरभूम जिला की पुलिस ने धमकी दी थी जिसका कड़ा विरोध देखने को मिला था। इसी तरह इलाज के लिये दुमका से पश्चिम बंगाल जाने वाले रोगियों की सेवाएँ भी वहाँ रोक दी गई थी। गैर बंगालियों को झारखण्ड से पश्चिम बंगाल में प्रवेश पर भी पाबंदी लगा दी गई थी। छोटी-छोटी चीजें कभी-कभी नासूर जख्म बन जाया करती हैं। इन दिनों कुछ ऐसा ही द्श्य सामने आ रहा है जिसपर गंभीरता के साथ विचार करना झारखण्ड सरकार की महत्पवूर्ण पहल होनी चाहिए। पश्चिम बंगाल सरकार के ऐसे कदम का निर्णायक जबाव देने का वक्त भी आ चुका है। देखना यह है कि लुईस मराण्डी अपने स्टैंड पर कहाँ तक टिक पाती हैं और उपर्युक्त परिस्थितियों को कितना शीघ्र दूर करती है।

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