भाजपा के पांचसितारे कार्यालय के नीव में दफ़न ‘झारखंडी सपनें’

 

भाजपा के पांचसितारे कार्यालय हैं या पांचसितारा होटल!

पीएम मोदी ने देश से वादा किया था कि वो 100 स्मार्ट सिटी बनाएंगे, भारत को स्वच्छ करेंगे, हर साल दो करोड़ लोगों को रोजागर देंगे, महिलाओं को सुरक्षा देंगे, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देंगे। लेकिन आज तक इनमें से एक भी वादा पूरा ना करने वाले चौकीदार, अमित शाह एवं उनकी पूरी टीम को तय सीमा में 350 करोड़ के भाजपा कार्यालय बनाने के लिए बधाई देना नहीं भूले। इससे यह सिद्ध तो जरूर होता है कि मोदी जी का माईक पर दिया सबका साथ, सबका सबका विकास का नारा झूठा था। क्योंकि उनकी कार्य प्रणाली जो ज़मीन पर दिख रही है वह है ‘सबका साथ और सिर्फ अपना विकास’

बिहार के जनता दल (युनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जब सत्ता में थे तो उन्होंने आरोप लगाया था कि भाजपा ने नोटबंदी से पहले ही अपने सारे काले धन का इस्तेमाल जमीन खरीदने में कर लिया था। विपक्षी दलों का भी कहना था कि बीजेपी ने नोटबंदी से पहले बिहार समेत पूरे देश में बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदीं। इन दलों ने भाजपा के भूमि सौदों की जांच की मांग की थी परन्तु उनकी मांग को भाजपा सरकार ने लीपा-पोती कर दी। चूंकि अब बिहार में भी वह खुद ही सरकार में हैं तो फिर किसकी हिम्मत जो इनसे जाँच की मांग करे। उन्हीं काल खण्डों में, बिहार के एक स्थानीय समाचार चैनल ने एक रिपोर्ट प्रसारित की थी जिसमें कहा गया था कि मोदी जी  द्वारा 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद किए जाने की घोषणा के ठीक पहले भाजपा ने बिहार के हरसा, पटना, मधुबनी, कटिहार, मधेपुरा, लखीसराय, किशनगंज, अरवल समेत 25 जिलों में जमीन खरीदी। खरीदे गए इन भूखंडों का रकबा 5000 वर्ग फुट से लेकर लगभग 2 एकड़ तक है, जिसकी कीमत पच्चीस लाख रुपये से लेकर 2.16 करोड़ रुपये के बीच है तथा जिसमे सबसे महंगा भूखंड 1,500 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर से खरीदा गया है।

बिहार के भाजपा विधायक संजीव चौरसिया ने बातचीत के दौरान यह स्वीकार किया था कि अक्टूबर और नवंबर के पहले सप्ताह में पार्टी की तरफ से आये पैसे से बिहार के साथ-साथ देश भर में जमीनें खरीदी गयी। चौरसिया ने दावा किया था कि इन जमीनों को पार्टी कार्यालय एवं पार्टी के दूसरे अन्य कामों के लिए लिया गया। वहीँ सिग्नेटरी लाल बाबू प्रसाद ने भी स्वीकार किया था कि उन लोगों ने यह जमीनें नगद पैसे से ही खरीदी हैं। रविशंकर प्रसाद की माने तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने बेंगलुरू में आयोजित महा संपर्क अभियान के दौरान देश भर में पार्टी कार्यालय खोले जाने का फैसला लिया। इतनी बड़ी संख्या में पार्टी कार्यालय खोलने के संकल्प लेने वाले अध्यक्ष ने देश को यह बताना भी गवांरा नहीं समझा कि वे इसके लिए ज़मीन कहाँ से लायेंगे। उन्होंने तो नहीं बताया और ना ही बताने की उनकी कोई मंशा दिखती है परन्तु इसका सच झारखण्ड की धरती से निकल कर अब सामने आने लगा है।

झारखण्ड में पार्टी कार्यालय के लिए भाजपा ने दीनदयाल उपाध्याय जयंती के अवसर पर धनबाद में पौने दो करोड़ की जमीन खरीदी। कोलाकुसुमा क्षेत्र में भूईफोड़-बलियापुर हाईवे पर यह जमीन खरीदी गई है जिसका निबंधन सोमवार को कराया गया। इसके निबंधन के लिए पार्टी की केंद्रीय नेतृत्व की ओर से राज्य सभा सदस्य महेश पोद्दार को अधिकृत किया गया था। निबंधन के समय महेश पोद्दार एवं धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल दोनों ही मौजूद थे। निबंधन की प्रक्रिया डीड राइटर शांतनु चौधरी ने पूरी की। तीन रैयतों से कुल चालीस कट्ठा जमीन खरीदी गई। कहा जा रहा है कि यह ज़मीन CNT/SPT के अंतर्गत आने वाली ज़मीन है और इसकी बाजार मूल्य तकरीबन 1.76 करोड़ है।

सूत्रों की माने तो अब तक झारखंड के लगभग 24 जिलों में भाजपा कार्यालय के लिए जमीन खरीदी जा चुकी है। जिसमें अधिकांश ज़मीनें CNT/SPT अंतर्गत आने वाली हैं और इन ज़मीनों को ज़बरन खरीदा गया है। कई-कई जिलों में तो 60 कट्ठा से अधिक ज़मीने खरीदी गई है। सभी ज़मीनों का निबंधन भाजपा के सहयोगी ट्रस्ट एवं भाजपा के नाम पर हुई है। अब सरकार को यहाँ की जनता को क्या यह बताना नहीं चाहिए कि आखिर एक सामान्य पार्टी के पास इतना फण्ड आया कहाँ से? क्या इन्हें जनता को यह नहीं बताना चाहिए कि CNT/SPT के अंतर्गत आने वाली ज़मीन क्यों और कैसे खरीद रही है? क्या यह झारखंड की जनता के साथ धोखा नहीं है? क्या वे कार्यालय खोलने के उपरान्त उसके आस-पास ज़मीने ज़बरन नहीं हथियायेंगे? बाद में फिर बेतुका क़ानून ला अपने चहेते उद्योगपतियों को ज़मीनें नहीं सौंपेंगे? पहले ख़बरों में थी कि अपने पसंदीदे उद्योगपतियों को ये यहाँ की ज़मीन कोडियों के भाव लूटा रहे थे, पर अब दिख रहा है कि ये खुद भी ज़मीन हथियाने में व्यस्त हैं। इसका एक साक्ष यह भी है जो खबर को संजीदा बना रही है कि ख़रीदे गए सभी भूखंडो पर कार्यालय निर्माण के लिए 24 करोड़ की पहली क़िस्त भी पहुँच चुकी है एवं चारदीवारी निर्माण का काम भी प्रारंभ हो गया है। सभी कार्यालय दिल्ली कार्यालय के तर्ज पर 3-3 करोड़ की लागत से बनने हैं। अंत में तो बस इतना ही लिखा जा सकता है कि अब तो सैयां भय गेल कोतवाल तो डर काहेका!

 

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