झारखण्ड : विपक्षी साजिश से अपने हक-अधिकार और अथक प्रयास से खड़े हो रहे इंफ्रास्ट्रक्चर के बचाव में आधी आबादी ने ले ली चंडी रूप अब जुझारू झारखंडी पुरुषों की बारी…
रांची : झारखण्ड के विकास का अर्थ महिला समेत समाज के सभी वर्गों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रुढ़िवादी ढाँचे में संतुलित लोकतांत्रिक सुधार होना ही तो है. सभी पहलुओं में निरंतर गतिशील प्रगति ही तो अपडेशन या शांत और संतुलित जीवन जीने की पद्धति है. यही अवस्था तो समाज, राज्य और देश के समावेशी और समृद्धि के मानक हैं. तथ्य से इनकार नहीं कि झारखण्ड की वर्तमान हेमन्त सत्ता चुनौतियों से जूझती हुई भी इन सभी आयामों पर ठोस जाहित कार्य कर रही है.
वर्तमान हेमन्त सत्ता में मुफ्त आधुनिक शिक्षा की आम जन तक पहुँच, शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूती, स्वास्थ्य-स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर, महिला समानता और सशक्तिकरण, बेरोजगारी, सामाजिक जातीय समानता, सरकारी रिक्त पदों पर नियुक्ति, जनता और कर्मचारी की सामाजिक सुरक्षा, ग्रामीण-शहरी अर्थव्यवस्था मजबूतीकरण, किसान-कृषि मजबूतीकरण, संसाधन संरक्षण-सदुपयोग, आधुनिक सुलभ सरकारी तंत्र, नक्सल मुक्ति, आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था, श्रमिक सुरक्षा, खेल विकास जैसे सभी जनहित आयामों पर कार्य हो रहे हैं.
ज्ञात हो, राज्य की राजनीति आमीर-गरीब जैसे दो धडों में विभाजित है. ऐसे में महाजनी प्रथा पर आधारित अमीरी के पैरोकार राजनीति हेमन्त के जन सोच को अपनी राजनितिक ज़मीन के लिए कितना खतरनाक मानने को विवश होंगे समझा जा सकता है. वह भी तब जब सीएम हेमन्त के द्वारा इंसाफपसंद अमीर वर्ग को भी राज्यहित ताने-बाने के मध्य ला संतुलित करने का असरदार प्रयास हो रहा हो. ऐसे में राज्य के बेससर मद्देनजर देश भर के बड़े विपक्षी चेहरों का झारखण्ड में उपस्थिति जरुरी हो जाता है. जाहिरा तौर पर यही देखा भी जा रहा है. लेकिन उन बाहरी चेहरों के आगे राज्य की बेटियां चंडी भौहें ताने आ खड़ी है.
चंडी रूप लेती आधी आबादी विपक्ष के बाहरी चेहरों को रहा है डरा
झारखण्ड की आधी आबादी राज्यहित में पृथक मोर्चा खोल चुकी है. वह स्वयं अपनी आर्थिक सामाजिक और राजनितिक परिस्थियों का मंथन कर रही है. ज्ञात हो, हेमन्त सरकार ने कोरोना की भांति उनकी प्रतिभा पर विश्वास जताते हुए उन्हें बराबरी का मंच मुहैया की है. जसके अक्स में उनके जुझारूपन का ग्राफ न केवल राज्य के पुरुषवादी समझ को चौका दिया है, विपक्षी बाहरी बड़े चेहरों को भीतर तक आतंकित कर दिया है. और दूसरी तरफ यह राज्य के बेटों को राज्य के सम्मान संरक्षण में प्रेरित कर चला है. वह खुद को अब अकेला नहीं बल्कि और मजबूत महसूस कर रहे हैं.
राज्य की आधी आबादी का आधी रात तक सड़कों पर, पेड़ों के निचे, खेत-खलिहानों में, यहाँ तक कि शहरी-ग्रामीण चौपालों में मजबूती से कहना कि हम अपने अधिकार-समान का संरक्षण स्वयं करेंगे. सामन्ती चुनौतियों से जूझते हुए भी हेमन्त सरकार के द्वारा खड़े किए जा रहे इंफ्रास्ट्रक्चर को वह न ढहने देंगी, न बिकने. चाहे उन्हें देवी से चंडी का रूप ही क्यों न लेना पड़े, वह पीछे नहीं हटेंगी. मसलन, यह केवल राज्य की बेटी-बहुओं की अंगड़ाई भर है जिसने बाहरी चेहरों की साँसे रोक दी है. जब ये अपने भाइयों को आवाज देंगी तो तस्वीर और अंजाम क्या होगा समझ से परे है.