सरना धर्म कोड : पश्चिम बंगाल विधानसभा से भी प्रस्ताव पारित. सामंती शब्द वनवासी के भार से दबे बेजुबानों की इस मांग को झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के रूप में मजबूत शरण मिला है. यह मुद्दा राष्ट्रव्यापी हो चला है.
राँची : देश भर में आदिवासियों की संख्या 8.6% है. जिसकी अपनी पृथक प्राकृत भाषा, संस्कृति, रीती-रिवाज व जीवन पद्धति है. विडंबना है कि सामंती दोहन के अक्स में वर्षों लम्बी मांग के बावजूद इतनी बड़ी आबादी का अपना धर्म कोड नहीं है. ज्ञात हो सामंती शब्द वनवासी के भार तले यह समुदाय लगभग बेजुबान हो चल था. लेकिन, वर्तमान में इस बेअसर हो चले आव़ाज को झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के रूप में मजबूत शरण मिला है.
सीएम हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में न केवल सरना कोड बिल झारखण्ड विधानसभा से पारित हुआ. इस मांग को केंद्र के समक्ष मजबूत परतिनिधित्व मिला है. देश भर के आदिवासियों में इसके प्रति चेतना व हिम्मत का विकास हुआ. नतीजतन राज्य सरकार भी अब इसे मजबूत मुद्दा के रूप में देखने को विवश हुए हैं. ज्ञात हो, जहां कुछ माह पूर्व से राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ तक यह चर्चा का विषय बना है. वहीँ बंगाल विधानसभा से भी सरना कोड बिल पारित हुआ है. मुद्दा राष्ट्रव्यापी हो चला है.
केन्द्रीय षड्यंत्रों के बावजूद सीएम सोरेन का गरीब आदिवासियों के मांग को लेकर केंद्र के समक्ष डट कर खडा होना बेजुबान हो चुके आदिवासी समुदाय को निश्चित रूप से नई उर्जा और जुबान प्रदान की है. सीएम सोरेन का कई मंचों से स्पष्ट कहना कि जैन जैसे अल्पसंख्यकों का अपना धर्म कोड हो सकता है तो आदिवासियों की संख्या 8.6 फीसदी होने के बावजूद अपना पृथक धर्म कोड क्यों नहीं हो सकता, उपरोक्त तःत्यों एवं उन्हें आदिवासियों के जन नेता होने की पुष्टि करता है.