झारखण्ड बजट सत्र : विपक्ष अधीर, नव निर्वाची युवा नेता हलके प्रश्नों के आसरे राज्य के मूल मुद्दों को बिसारते दिखे. कुमडी मुद्दे के आसरे सरना कोड मांग धूमिल करने का प्रयास.
रांची : विपक्ष लोकतांत्रिक संरचना में एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. ऐसे में किसी भी सरकार में विपक्ष की पहचान शांत, स्थिर, धैर्यवान और दूरदर्शी होनी चाहिए न कि अधीर का. अधीर विपक्ष न केवल राज्य-देश के विकास गति को प्रभावित करता है, सामाजिक-राजनीतिक वैचारिक संतुलन को बिगाड़ता है. कुछ ऐसा ही दृश्य झारखण्ड बजट सत्र में दिख चला है जहाँ विपक्ष अधीरता का सच लिए हुए है.

नेता प्रतिपक्ष चयन के अक्स तले विपक्ष के नेताओं में बिखराव दिखा. उसके सभी बड़े नेता अलग-अलग में मुद्दों के आसरे स्वयंभू होने का प्रयास करते दिखे. कोई आदिवासी और मईया सम्मान का अपमान करते दिखे, कोई लॉ-आर्डर तो किसी ने केंद्र से बकाया राशि वसूली के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया. और नेता प्रतिपक्ष का चयन होते ही विपक्ष के अन्य नेताओं के मुद्दे गौण हो गए.
कुमडी मुद्दे के आसरे सरना कोड मांग धूमिल करने का प्रयास
जब सीएम का उत्तर हुआ तो विपक्ष सदन से स्वयं पलायन करते दिखे. वहीं नव निर्वाची युवा नेता हवा-हवाई प्रश्नों के आसरे न केवल राज्य के मूल मुद्दों को बिसारते दिखे, कुमडी मुद्दे के आसरे सरना कोड मांग धूमिल करने का प्रयास हुआ. वहीँ सदन में पहली बार सत्ता पक्ष के सदस्य जन मुद्दों-समस्याओं को मज़बूती से उठाये. सीएम हेमन्त सोरेन इस नई परिपाटी के शुभारंभ का स्वागत करते दिखे.
जबकि सच यह है कि अभी बजट पेश हुआ है और उसपर चर्चा हो रही है. हेमन्त सरकार का बजट जन पक्ष और राज्य पक्ष में दिख रहा है. जाहिर है बजट जब धरातल पर उतरेगा तभी इसके प्रभावों का आकलन हो सकेगा. लेकिन, विपक्ष के मुद्दों की सूची से एससी समुदाय का ग़ायब होना, और बिना ठोस ज़मीनी मुद्दों के अभाव में केवल सरकार पर प्रायोजित हमले करने का प्रयास उसके अधीर होने का तस्वीर पेश करती है, जो राज्य के कतई अच्छे संकेत नहीं है.