केंद्र के प्यादे को हेमंत ने कहा – नया मुल्ला ज्यादा प्याज़ खाता है

बात दिलचस्प है, कोयला ब्लॉक नीलामी के मामले में केंद्र ने प्यादे को आगे कर दिया है – जब बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक दल का नेता नहीं चुना गया था। तब वे विस्थापन से लेकर निजीकरण तक विभिन्न जनविरोधी नीतियों पर पानी पीकर मोदी सरकार को कोसते रहे हैं। वे कहते थे कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, पूँजीपतियों, सेठों-व्यापारियों, ठेकेदारों, दलालों और सट्टेबाज़ों के अच्छे दिन आ गए हैं। लेकिन बीजेपी में शामिल होते ही अब उन्हें अपने बॉस की सरकार में केवल अच्छे गुण ही दिखाई देने लगे हैं।

बाबूलाल मरांडी का कहना है कि कोयला ब्लॉक नीलामी मामले में हेमंत सोरेन का सुप्रीम कोर्ट जाना बचकाना व्यवहार है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल जी, जिन्होंने केवल ढाई साल पूरे किए हैं, हेमंत सोरेन को नया मुख्यमंत्री कह रहे हैं। पहली बार, उनके मुंह से यह भी सुना गया है कि कोयला ब्लॉकों की नीलामी से झारखंड को सबसे ज्यादा फायदा होगा। और सुझाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को केंद्र की आलोचना करने से बचने की सलाह दिया है। क्या यह चापलूसी की इन्तेहां है या राज्य की जनता के साथ गद्दारी, आप इसे जैसे भी चाहे समझ सकते हैं।

शायद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बाबूलाल जी के बदले हुए रवैये को समझ रहे हैं। इसलिए पहली बार बतौर सीएम उन्होंने बाबूलाल जी को खरी-खरी सुनायी है। सीएम ने सीधे तौर पर व्ययंग करते कहा कि नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है। परन्तु, राज्य सरकार अपने अधिकारों को सुनिश्चित करेगी। क्योंकि, जीएसटी के समय भी कुछ ऐसा ही कहा गया था लेकिन, राज्य सरकारों की आर्थिक क्षमता ही समाप्त कर दी गई है।

जब भी भाजपा घिरती है, पिछली सरकारों का रोना रोती है

उन्होंने आगे कहा- जब भी भाजपा घिरती है, पिछली सरकारों का रोना रोती है। आज नीतियों के कारण नौकरियां समाप्त हो चुकी है। सभी उद्योग-धंधों की लगभग मृत्यु हो गई है। झारखंड में केंद्रीय उपक्रम बड़े पैमाने पर खनन कार्यों में लगे हुए हैं। वहां पहले से ही विस्थापन की समस्या है। राज्य के लोग लाल और काला पानी पीने को मजबूर हैं। इसलिए बीमारी का प्रसार खनन क्षेत्र में सबसे अधिक है, लेकिन बाबूलाल जी को अब इन मुद्दों से कोई सरोकार नहीं हैं। 

सुदेश सभी सरकारों में रहने के बावजूद मानते हैं कि अलग झारखंड का सपना आज भी अधूरा है

यही नहीं, खुद को झारखंड का लायक! बेटा बताने वाले आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो जब सरकार में थे तो मौन व्रत धारण किए थे। लेकिन, विपक्ष में बैठते ही उन्हें सरकार में ख़ामियाँ नजर आने लगी है। उन्होंने सीधे तौर पर तो मुख्यमंत्री के सुप्रीम कोर्ट जाने का आलोचना नहीं की है। लेकिन, झारखंड सरकार को काम करने की नसीहत ज़रुर दी है। सुदेश महतो झारखंड के इतिहास में लगभग सभी के सरकार में शामिल रहे हैं। फिर भी मानते हैं कि अलग झारखंड राज्य का सपना आज भी अधूरा है। किस पर इलजाम लगा रहे हैं यह समझ से परे है.

मसलन, मोदी सरकार विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रियाओं में तेज़ी लाने के दिशा में कदम बढ़ा चुकी है. यह प्रक्रिया आने वाले दिनों में और भी गति पकड़ेगी। अभी तो इन “नवरत्नों” के कुछेक मणि बेचे जा रहे हैं, नवउदारवाद का तर्क यह कहता है कि आनेवाले दिनों में नवरत्नों की पूरी थैली ही थैलीशाहों के हवाले कर दी जायेगी। जो लोग यह समझते हैं कि इस प्रक्रिया को उलटकर वापस नेहरूवादी समाजवाद के युग में जाया जा सकता है, वे बहुत बड़े भ्रम में जी रहे हैं। इसलिए, झारखंड के मुख्यमंत्री द्वारा उठाया गया कदम सही शुरुआत है। इस शुरुआत को एक हथियार बनाकर, लोगों को न केवल केंद्र से बल्कि केंद्र के प्यादे से भी आगे लड़ना होगा। 

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