पारसनाथ विवाद : जैन व आदिवासी समुदायों को षड्यंत्र समझना ही होगा 

झारखण्ड : गृहमंत्री, राज्य में स्कूल-अस्पताल के रूप में मदद करने वाले इसाई संस्थानों को कोसते हैं बताएं कि जैन समुदाय ने अपने स्वर्ग झारखण्ड में कितने बड़े शिक्षण व स्वास्थ्य संस्थान खड़े किए. जबकि झारखण्ड ने जैन सम्प्रदाय को बहुत कुछ दिया है. जैन समाज को मंथन करना चाहिए.

रांची : झारखण्ड, गिरिडीह में स्थित पारसनाथ पर्वत जो मरांग बुरु भी हैं शिखर जी भी हैं, राज्य के कई ऐतिहासिक साक्ष्य समेटे है. आज झारखण्ड के महान दार्शनिकों में से एक, महान जन नेताओं में से एक, दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जन्म दिवस है. अलग झारखण्ड के उनके संघर्ष के शुरुआत इतिहास का भी सच लिए यह पर्वत अडिग खडा है. और वर्तमान में भी पारसनाथ, पर्यटन स्थल-तीर्थ स्थल, मरांग बुरु व शिखर जी के रूप में बीजेपी राजनीति को देख रहा है.

पारसनाथ विवाद : जैन व आदिवासी समुदायों को षड्यंत्र समझना ही होगा

झारखण्ड में बीजेपी व उसके सहयोगियों के द्वारा फिर एक बार खडी की गयी कृत्रिम मुद्दा के बीच हेमन्त सरकार का जिम्मेदार नजरिया एक तरफ भारत के दो मूल परम्पराओं के आपसी सौहार्द को देखती है, सरना धर्म कोड बिल, 1932 खतियान आधारित स्थानीयता, आरक्षण बढौतरी विधेयक जैसे राज्य के मूल लड़ाई को देखती और देश में पटल पर झारखण्ड के प्रतिनिधित्व को देखती है. नतीजतन राज्य हित में उसे शांति-प्रेम से इतर कोई अन्य मार्ग नहीं दिखता.

दीपक तले हमेशा ही होता है अन्धेरा

कहते हैं कि दीपक तले हमेशा अन्धेरा ही होता है. तभी तो देश के बड़े व आदरणीय पत्रकार छतीसगढ़ के आदिवासी महिलाओं के रात के अँधेरे में गाये जा रहे मार्मिक गीत को सुन लेते है. लेकिन, पारसनाथ के दामन में सदियों से बसने वाले आदिवासी व मूलवासी की टीस नहीं सुन पाए. झारखण्ड ने जैन परम्परा को क्या कुछ नहीं दिया. पहले उनके तीर्थंकर गुरुओं, भगवान को शान्ति व मोक्ष पाने हेतु ज़मीन दी. 

बाद में जैन धर्मावालियों को उन्हें पूजने हेतु दो पंथ, श्वेताम्बर व दिगम्बर को मंदिर व कोठियों के लिए ज़मीन दी. और यहां के आदिवासी-मूलवासियों ने अपनी सेवायें भी दी. लेकिन, जैन धर्म ने झारखण्ड को क्या दिया? ज्ञात हो, जिस स्थान को यह सुखी संपन्न जैन सम्प्रदाय अपना स्वर्ग मानते हैं वहां बीजेपी शासन में शिक्षा व आर्थिक आभाव के कारण नक्सल को व्यापक प्रसार मिला. देश के गृहमंत्री व सबसे बड़े उद्योगपति इसी समुदाय के अंग हैं. जिनके संरक्षण में अडानी पावर प्लांट के रूप में संथाल की ज़मीन लूट हुई. 

पूर्व की बीजेपी की रघुवर सरकार में पारसनाथ में गुजरात लोबी कि धमक 

श्वेताम्बर व दिगम्बर पंथ के आपसी खींचा तान के बीच पूर्व के बीजेपी की रघुवर सरकार में बड़े कोठी के रूप में गुजरात लोबी की धमक पारसनाथ में होता है. मजेदार पहलू है कि बीजेपी की विचारधारा राज्य में शिक्षण संस्थान व अस्पताल के रूप में मदद करने वाली इसाई धर्म को तो कोसती है. लेकिन, गृहमंत्री यह नहीं बताते कि उनके समुदाय ने मूलभूत सुविधारहित राज्य के लिए कितने बड़े विद्यालय व अस्पताल खोले. जैन जैसे बौधिक समाज को इसपर मंथन करने की आवशयकता है. 

जबकि जैन साम्प्रादाय गृहमंत्री के संरक्षण में इस क्षेत्र को टाटा के समरूप शैक्षणिक, सामाजिक व आर्थिक रूप से विकसित करते हुए स्वर्ग बना सकती थी. जिससे उनकी ख्याति युगों तक स्थापित होती. लिकिन, वर्तमान में स्थिति क्या है, 2019 में गृहमंत्री के रहते पूर्व की बीजेपी सत्ता ने इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित करने का प्रयास किया. हेमन्त सरकार ने इसे सुलझाने का प्रयास किया तो बीजेपी के बाबूलाल मरांडी का भतीजा व उसके सहयोगी मरांग बुरु के नाम आपसी सौहार्द में विष घोल रहे हैं.

लोबिन हेम्ब्रम (दा) को सामंती मानसिकता को झारखण्ड हित में समझना ही होगा

झारखण्ड राज्य बड़े आदिवासी चिन्तक लोबिन हेमब्रम (दा) को झारखण्ड हित में सामंती चालों को समझना ही होगा. उन्हें अपने बौधिक क्षमता का विस्तार करना ही होगा क्योंकि आप भी झारखण्ड के धरोहर है. ऐसा नहीं हुआ तो बहुत जल्द झारखंड में उनकी प्रासंगिता को सामंत मानसिकता समाप्त करने में कामयाब होगी. जिससे झारखण्ड को क्षमता व ऊर्जा क्षति के नुकसान का भार उठाना पडेगा. और इस दुर्भाग्य के लिए इतिहास उन्हें माफ़ नहीं करेगा. और ऐसे नाजुक परिस्थिति में, हेमन्त सरकार को चाहिए दोनों समुदायों को साथ बैठकर तमाम पहलू पर बात करे और हल निकालने का अपना सार्थक प्रयास न छोड़े.

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