Hemant Soren: हेमंत सोरेन कौन हैं? सवाल पूछते ही किसी भी भाजपाई (BJP) की पेशानी पर झलकता है – ‘वह उनके लिए एक अबूझ पहेली (enigma) है’।
यह वही भाजपा है, जिसने अलग झारखंड के 19 साल के इतिहास में लगभग 14 साल शासन किया है। और, खुद को अजय योद्धा मानते हुए, जनता के साथ मनमानी कर रही था।
लेकिन, कहा जाता है कि कंस समय की गति को कभी नहीं समझता। झारखंड की राजनीति ने 180 डिग्री पर पलटी मारा। और वक़्त ने हेमंत के रूप में भाजपा के समक्ष एक विचित्र योद्धा ला खड़ा किया।
कौन हैं हेमंत सोरेन (Hemant Soren)? भाजपा उनके चक्रव्यूह (enigma) में कैसे फँस चुकी है?
सीधे शब्दों में कहें, (In other words,) दिशोम गुरु शिबू सोरेन के सुपुत्र हैं हेमंत सोरेन (Hemant soren )। और, वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। वीर शिबू की उपाधि वाला यह व्यक्ति न केवल झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता, बल्कि अलग झारखंड के निर्माता भी हैं।
शिबू सोरेन को झारखंड के निर्माता क्यों कहा जाता है?
वीर शिबू झारखंड के गोला जैसे पिछड़ा क्षेत्र में जन्मे सोना और सोबरन के पुत्र हैं। जिन्हें कालक्रम ने जन-जन के लिए शिबू सोरेन बना दिया।
उदाहरण के लिए, (For instance,) इनका बचपन महाजनी प्रथा के बीच बीता। जिसने उनके पीता सोबरन मांझी को लील लिया। वह शिक्षा की सहायता से समाज से महाजनी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए घर से निकले थे। लेकिन, उन्होंने सहयोगियों की मदद से क्षेत्र के लोगों को अलग राज्य झारखंड दिया।
झारखंड संघर्ष यात्रा के शुरुआत के वक़्त वीर शिबू ने हेमंत से कहा था
स्थान-जमशेदपुर निर्मल महतो शहीद स्थल। कार्यक्रम – “झारखंड संघर्ष यात्रा” को हरी झंडी दिखाए जाने वाली दिन। वहां मौजूद जनता और झामुमो नेताओं के सामने – गुरूजी ने कुछ शब्दों में कहा, “भाषण छोड़ो और संघर्ष शुरू करो” – इस शब्द की गंभीरता को केवल उन लोगों द्वारा समझा जा सकता है जिन्होंने अन्याय की गर्मी झेली है …
यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि भाजपा (BJP) महाजनी प्रणाली का नवीनतम रूप है। अब, गुरूजी बुढ़ापे के कारण ऐसी ताक़तों से लड़ने में असमर्थ हैं। इसलिए, हेमंत झारखंडियों की आवाज़ बनकर उभरे हैं, जो नई तकनीक और नीति के साथ अपने पिता द्वारा छोड़ी गई विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
कैसे फंसती (enigma) ही जा रही है भाजपा
जैसा कि यह सर्वज्ञात है। भाजपा (BJP) की राजनीति देश की अखंडता की बर्बादी पर निर्भर करती है। इसकी विचारधारा हिंदू-मुस्लिम की आड़ में लोगों का शोषण करके पूँजीपतियों को लाभ पहुंचाना रही है। इसके कारण, कई झारखंडियों को भाजपा के शासन में अपनी ज़मीन खोनी पड़ी।
हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने अपनी अचूक रणनीति और आधुनिक तकनीक के माध्यम से अपने गढ़ में भाजपा को फांस कर (enigma) हराया। जबकि, भाजपा ने सभी हथकंडे अपनाए, फिर भी उसे हार का मुंह देखना पड़ा। अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री तक का आगमन झारखंड की धरती पर हुआ।
हालांकि, (Therefore,) कई योजनाओं के माध्यम से जनता को प्रभावित करने का प्रयास किया गया। बात नहीं बनी तो झामुमो विधायकों को भी खरीदा गया। श्री सोरन ने हार नहीं मानी और भाजपा (BJP) को हर मोर्चे पर खदेड़ा।
दूसरे शब्दों में, (In other words) जैसे – सोशल मिडिया से प्रतिद्वंदी के हर मीडिया का जवाब दिया। सड़क से लेकर सदन तक उनके जन विरोधी नीतियों का जवाब दिया। दबाव से उबरते हुए सरकार की विफलता व एजेंडे जनता तक पंहुचाए। वह तब तक नहीं रुके जबतक जीत हासिल न हुआ। ‘बदलाव यात्रा’ ‘झारखंड संघर्ष यात्रा’ जैसे सिलसिला का शुरुआत किये। और भाजपा को अपने जाल (enigma) में फांस लिए।
शपथ ग्रहण के साथ ही जन हित में फैसले लिए
- पहली कैबिनेट बैठक में, पत्थलगड़ी आंदोलन के तहत दर्ज मामलों को वापस ले लिया गया था। राज्य के पारा शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं सहित सभी अनुबंध कर्मियों के बकाया का जल्द भुगतान करने का भी निर्णय लिया गया।
- इसी तरह, (Similarly,) ओबीसी (OBC) के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए गए। बजट सत्र के दौरान यह बताया गया कि ओबीसी (OBC) आरक्षण मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
- मुख्यमंत्री को बरहेट और दुमका विधानसभा क्षेत्रों में एक जन प्रतिनिधि के रूप में बेहतर और अनुकरणीय कार्य करने के लिए चैंपियन ऑफ चेंज अवार्ड -2019 से सम्मानित किया गया।
- सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए सोशल मीडिया को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए वायरल हुए।
- हालांकि, (However,) जब उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना शुरू किया, तभी कोरोना (COVID-19) जैसे संकट ने राज्य को उलझा दिया। लॉकडाउन में, उन्होंने सार्वजनिक समस्याओं को हल करना शुरू कर दिया।
हेमंत जानते थे कि केंद्र राज्यों की सहमति के बिना कोरोना से संबंधित निर्णय लेगा।
सबसे ऊपर, (Above all,) आज यह कहा जा सकता है कि देश में COVID -19 संक्रमण के मामलों में झारखंड की स्थिति बेहतर है। उन्हें ज्ञात था कि कि केंद्र राज्यों की सहमति के बिना कोरोना से संबंधित निर्णय लेगा। इसलिए, उन्होंने एक सप्ताह पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी। झारखंड के शिक्षण संस्थान व सार्वजनिक स्थल पहले से ही बंद कर दिए गए थे।
जो अपेक्षित था, केंद्र ने वही किया। ज्ञात हो कि देश में झारखंड राज्य के अधिकांश श्रमिक प्रवासी हैं। उन्हें वापस आने का मौका नहीं मिला। मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत (Hemant Soren) ने उन सभी की खोज की और उनके लिए खाने की व्यवस्था की। साथ ही सभी को आश्वस्त किया कि वह उनके साथ खड़ा है।
झारखण्ड के लोगों तक भोजन पहुंचाने के लिए कई योजनाएं शुरू की
- झारखंडियों के लिए अग्रिम राशन की व्यवस्था की। जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं थे, उन्हें भी राशन दिया गया। निराश्रितों को राशन मुहैया कराने के लिए मुखिया और वार्डपार्सदों को अधिकार दिया गया।
- जनता को न केवल राशि का भुगतान किया गया, बल्कि विधायक निधि में इससे संबंधित अतिरिक्त फंड प्रदान की गई।
- इसी तरह, (Similarly,) दाल-भात योजना, पुलिस कम्यूनिटी सेंटर, मुख्यमंत्री दीदी किचन में लोगों को खाने की सुविधा दी गई।
- सबसे ऊपर, (Above all,) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी अन्य राज्य के किसी भी प्रवासी ने यह नहीं कहा कि उसे भोजन नहीं मिला। मुख्यमंत्री के पुलिस ने सभी की तलाश की और खाना दिया।
- रांची के हिंदपीरी इलाके को संभाले जाने का मामला अच्छे प्रशासक की निशानी है।
बीजेपी (BJP) ने अपने परिचित तरीके से मुख्यमंत्री के कदम को बाधित करने की कोशिश की
- इस दौरान, भाजपा (BJP) ने अपने परिचित तरीके से मुख्यमंत्री के कदम को बाधित किया। कभी उनके शीर्ष नेताओं ने बेबुनियाद आरोप लगाए, कभी उन्होंने हिंदू-मुस्लिम राजनीति की। अपने रसूख का इस्तेमाल कर लॉकडाउन के नियम तक तोड़े।
- केंद्र द्वारा सुरक्षात्मक गियर की आपूर्ति में न केवल देरी हुई, बल्कि केंद्र ने आवश्यकतानुसार मदद नहीं की। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से भी मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया।
- यहां तक कि मुख्यमंत्री ने (Hemant Soren) प्रधानमंत्री मोदी से बकाया राशि का भुगतान करने का अनुरोध किया। फिर भी कोई हल नहीं निकला।
- इसी तरह, (Similarly,) दिल्ली में फंसे भाजपा सांसदों ने वहां फंसे प्रवासियों की मदद नहीं की और तालाबंदी के नियमों को तोड़कर झारखंड चले गए। जब बीजेपी के नेता चारों ओर से परेशान होने लगे, तो इसने प्रवासियों के लिए उपवास का प्रोपगेंडा किया।
इस संकट के समय, जब सभी भाजपा जाति-आधारित राजनीति में व्यस्त थे, उसी समय हेमंत देश की अखंडता की रक्षा करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश कर रहे थे। उसके बाद, (After that,) उन्होंने सामने आकर सभी को बताया कि यह बीमारी जाति को लक्षित नहीं करती है। सभी को भूख लगती है। इसलिए, (Therefore,) झारखंड में सभी को स्वास्थ्य और राशन की सुविधा प्रदान की जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Hemant Soren को अनुसरण कर रहे हैं
बहारहाल, (In conclusion,) ऐसा प्रतीत होता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब हेमंत सोरेन का अनुसरण करने लगे हैं। यह समय बताएगा कि वह कितना खरे उतरते हैं, लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज हेमंत के बयानों को एक संदेश के रूप में दोहराने के लिए मजबूर ज़रूर हैं।
उदाहरण के लिए, (For instance,) प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने ट्वीट में कहा, “कोरोना धर्म और जाति नहीं देखता चुनौती से निपटने के लिए एकता व भाईचारा जरूरी है। किसी ने सच कहा है सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं।
कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हेमंत की रणनीति इतनी अचूक है कि झारखंड भाजपा (BJP) के लिए इसे भेद पाना (enigma) असंभव सा लगता है। वह ऐसे दलदल में फंस गई है, जहां जितना हाथ-पैर मारेंगे, उतना ही डूबते जायेंगे।